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ग्राम सभा सशक्तिकरण हेतु मार्गदर्शिका (अनुसूचित क्षेत्र)

ग्राम सभा सशक्तिकरण हेतु मार्गदर्शिका (अनुसूचित क्षेत्र)

  1. परिचय
  2. भारत में लोकतंत्र और पंचायती राज का एतिहासिक अवलोकन
    1. पुराने समय में ग्राम पंचायतों द्वारा निम्न तरह से निर्णय लिए जाते थे
    2. गाँव सभा द्वारा बनाई गई
    3. राजा से संसद तक
    4. कौन से कानून कहाँ बनते हैं?
    5. सरकार के काम
    6. झारखण्ड में स्वशासन ऐतिहासिक दृष्टि
  3. भारत में आजादी के बाद विकास का ढाँचा
  4. 73वां संशोधन संविधान की पृष्ठभूमि
  5. 73वां संविधान संशोधन
    1. अवधारणा
    2. संशोधन की विशेषताएँ
  6. स्थानीय स्वशासन क्या है ?
    1. स्थानीय स्वशासन के लिए जरूरी है कि
    2. स्थानीय स्वशासन की जरूरत क्यों
  7. झारखण्ड पंचायत राज अधिनियम, 2001 के अंतर्गत पंचायत राज के विभिन्न संस्थानों का व्यवहारिक स्वरूप
    1. ग्राम सभा
    2. ग्राम पंचायत
    3. पंचायत समिति
    4. जिला परिषद्
  8. ग्राम सभा
  9. संविधान की पांचवीं सूची वाले क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था
    1. अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पेसा अधिनियम क्यों?
    2. आइये जाने पेसा अधिनियम क्या है?
    3. पंचायत – उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996, के मुख्य आयाम
  10. झारखण्ड पंचायती राज अधिनियम 2001 के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा का गठन एवं उसका अधिकार
    1. अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा का गठन (धारा 3)
    2. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा द्वारा स्थायी समितियों का गठन
    3. समिति का गठन एवं कार्यकाल
    4. समिति की बैठक
    5. समिति के अधिकार
    6. ग्राम सभा ग्राम की वार्षिक बैठक
    7. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा द्वारा ग्राम कोष की स्थापना
    8. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की बैठक – (धारा- 5)
    9. ग्राम सभा की बैठक की सूचना देने की रीति
    10. ग्राम सभा की बैठक की तारीख, समय तथा स्थान
    11. ग्राम सभा के बैठक का कोरम (धारा 7)
    12. बैठक का संचालन (धारा 6)
    13. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभी की बैठक की अध्यक्षता
    14. ग्राम सभा अध्यक्ष के कर्तव्य एवं शक्तियाँ
    15. निम्न परिस्थिति में अध्यक्ष किसी भी सदस्य को बैठक सें निकाल सकता
    16. अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा की अतिरिक्त शक्तियाँ और कृत्य
    17. ग्राम सभा में बहुमत द्वारा निर्णय लिया जायेगा
    18. ग्राम सभा सदस्यों की उपस्थिति पंजीकरण
    19. ग्राम पंचायत के साथ तालमेल
    20. सरकारी विभागों का ग्राम सभा से तालमेल
    21. ग्राम सभा की कार्यवाही अभिलेख
  11. ग्राम सभा के कार्य एवं उसकी शक्तियाँ
  12. ग्राम सभा सदस्यों का सामाजिक दायित्व
  13. बापू के सपनों का गाँव
    1. गांधीजी पंचायत राज के बारे में क्या कहते है?
    2. पंचायत राज और ग्राम स्वराज्य
    3. गाँव कैसा हो?
    4. सफाई और स्वास्थय
    5. शिक्षा
    6. ग्रामोद्योग
  14. प्रपत्र -3

परिचय

जब अपने देश में अंग्रेज राज करते थे तो वे कहते थे कि यहाँ के लोगों को अपना शासन खुद चलाना नहीं आता है। भारत में लोगों की शासन में भागदारी नहीं रही है तो ये लोग आजादी के बाद कैसे अपना कामकाज चलाएंगे?

उन्हीं दिनों कुछ लोग भारत के इतिहास की खोज – बीन कर रहे थे।उन्हें पुराने ग्राम पंचायतों के बारे में कई चौंका देने वाली बातें पता लगीं। इन बातों से लोगों का हौसला बना।वे कहने लगे कि हम भी अपने देश की बगडोर खुद संभाल सकते हैं।

पुराने समय में भारत के गाँव के लोग आपस में मिल-जुलकर काफी कामकाज का निपटारा कर लेते थे। तालाब, पाठशाला, जंगल या चरागाह, आपसी झगड़े गाँव के अंदर ही इन सबकी व्यवस्था कर लेते थे। हाँ यह जरूर था कि अलग – अलग क्षेत्र में अलग - अलग व्यवस्था थी।

भारत में लोकतंत्र और पंचायती राज का एतिहासिक अवलोकन

पुराने समय में ग्राम पंचायतों द्वारा निम्न तरह से निर्णय लिए जाते थे

अपने देश में दो तरह के गाँव थे – एक जिसमें जमीन के मालिक किसान खुद थे और दुसरे जिसमें जमीन कई राज परिवारों के हाथों में थी। दोनों तरह के गांवों में गाँव के लोगों की सभाएं होती थी। यह सभाएं गाँव के सारे कामकाज की देखरेख करती थी। राजा को गाँव वालों से लगान इकट्ठा करके देना, अपराधियों को पकड़ना और दंड देना, तालाब और नहर की देखरेख करना, गाँव की जमीन का का लेखा-जोखा रखना आदि भी सभाएं ही देखती थी। इन गांवों पर राजा के किसी अधिकारी का नियंत्रण नहीं था। ये सब काम गाँव की लोगों द्वारा बनाई गई समितियाँ करती थी।

यही नहीं, ये सब काम कैसे जाएँ, समिति में कौन होगा यह सब बातें भी गाँव के लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से तय करते थे। सभा के फैसलों को मंदिरों की दीवारों पर खुदवाया जाता था।

उदहारण के रूप में – उस ज़माने के सोने के सिक्के चलते थे तो यह जानना बहुत जरूरी था कि सोना असली है या नकली। इसके लिए अलग से एक समिति बनाई जाती थी। इस समिति के लिए 8 लोगों का चुनाव किया जाता था। यह जानकारी हर टोले को दी जाती थी, हर टोले से पढ़े लिखे, नियम से लगान देने वाले और सोना परखने में होशियार लोगों का नाम बुलवाया जाता था। उन सबका नाम ताड़ पत्र के पर्चों पर लिखकर एक मटके के अंदर डाला दिया जाता था। फिर एक बच्चे से आठों पर्चो को निकालने को कहा जाता था। यही आठ लोग एक साल के लिए सोना परखने की समिति में रहेंगे, यह तय होता था। आप देख सकते है कि कैसे पुराने समय लोग इस बात पर जोर देते थे कि सब परिवारों को गाँव के कामकाज में भागीदार होना चाहिए। लेकिन इसमें अक्सर समस्याएँ भी आ जाती थी। कभी – कभी कुछ ही परिवार के लोग बार समितियों के सदस्य बन जाते थी या फिर वे राजा के अधिकारीयों की मदद से अपनी सदस्यता बनाए रखने की कोशिश करते थे।

ऐसी समस्या आने पर ग्रामसभा में रहने वाले लोगों द्वारा सर्वसम्मति से एक नियम बनाया जाता था और उसे गाँव के सार्वजनिक जगह पर लगाया जाता था। इसका प्रमाण दक्षिण भारत के सेंगनूर गाँव के एक अभिलेख में मिलता है। ग्राम सभा के सामने ऐसी ही कोई समस्या आयी होगी जिसके निराकरण हेतु गाँव के लोगों द्वारा क्या हाल निकाला गया, आप खुद उनके शिलालेख से जानिए।

गाँव सभा द्वारा बनाई गई

  • हमारे गाँव के कामकाज देखने के लिए जो समितियाँ बनेंगी उनमें वे ही लोग सदस्य बनेंगे जिनकी उम्र 40 से अधिक है।
  • अगर कोई एक साल सदस्य रहा तो, वह अगले 5 साल तक सदस्य नहीं बनेगा, उसका पुत्र अगले 4 साल तक सदस्य नहीं बनेगा, उसका भाई 3 साल तक सदस्य नहीं बनेगा।
  • जब ये समितियाँ बनाई जाएंगी, तब पूरे गाँव के लोग इकट्ठा होकर अपनी स्वीकृति देंगे।
  • जो लोग इन नियमों को तोड़ कर, अधिकारीयों की मदद से सदस्य बनते हैं, उन्हें गाँव का दुश्मन माना जाएगा और उनकी सारी संपति गाँव के काम के लिए जब्त की जाएगी।
  • समिति के लोग शासन द्वारा तय किए गये करों से अधिक नहीं वसूल करेंगे। गाँव के कम के लिए जो भी खर्च किया जाएगा, वह लिखित रूप में लेखापाल को सूचित किया जाएगा।
  • 2000 सिक्कों से अधिक कोई भी खर्च करना हो तो पूरे गाँव के लोगों की महासभा में आम राय होने पर ही किया जाएगा। जो लोग अधिक खर्च करेंगे उन्हें उस राशि का पांच गुना दंड भरना पड़ेगा।
  • गाँव का हिसाब लिखने वाला, विभिन्न काम के लिए समिति और प्रत्येक मोहल्ले के सदस्य हर साल बदले जाएंगे।

गाँव के कामकाज गाँव के सभी लोगों की सक्रिय भागदारी से चले, इसके लिए ये नियम बनाए गए थे। आज जब हम इन शिलालेख को पढ़ते हैं तो हमें आश्चर्य होता है। कितना सोच समझकर उन लोगों ने ये नियम बनाए। इनमें से कई नियम तो आज भी कम के हैं। लेकिन उस समय की गई बातें, जो हमें आज ठीक नहीं लगती हैं। जब पुराने समय की अच्छी बातों से हम सीखते हैं तो उनकी कमजोरियों पर भी ध्यान देना चाहिए।

सबसे पहले तो यह कि सभाओं व समितियों में महिलाएँ नहीं होती थी, न ही कमजोर वर्ग के लोग हो सकते थे। केवल ऊँची मानी गई जाति के लोग उनमें हो सकते थे, खासकर वे जिनके पास जमीन थी। इसलिए वे ही सभा व समितियों के सदस्य बन सकते थे। जो लोग उस गाँव की जमीन पर वास्तव में मेहनत करते थे- वे सदस्य नहीं बन सकते थे। यानी उस समय लोकतंत्र केवल जमीन के मालिकों के लिए था, महिलाओं या कमजोर वर्ग के लिए नहीं था।

एक और ध्यान देने की बात है की इस तरह की सभा और समितियों का उल्लेख उत्तर भारत से नहीं मिले हैं। उत्तर भारत के गाँवों का कामकाज वहाँ के मुखिया या जमींदार देखते थे। बाप के बाद बीटा मुखिया बनता था। इनका परिवार काफी ताकतवर होता था। और गाँव वालों पर उनका दबदबा और रौब होता था।ऐसे में लोकतंत्र कैसे पनपे?

दूसरी ओर दक्षिण भारत के साधारण गाँव के किसान सब बराबर हैसियत के थे। लोगों की जमीनें तो कम – ज्यादा थी।मगर किसी एक या दो परिवारों के अधीन पूरा गाँव नहीं था तभी तो गाँव की सभा लोकतांत्रिक बन पायी। हालाँकि इन गांवों में कुछ दलित परिवार भी होते थे जिन्हें सभा में भाग लेने नहीं दिया जाता था, फिर भी गाँव के अधिकांश परिवार ग्राम सभा में भाग ले सकते थे।

इससे यह बात समझ में आती है iकि लोकतंत्र की मदद वे सभी लोगों के बीच बराबरी लेन की कोशिश करना जरूरी है और बराबरी लाने से ही लोकतंत्र मजबूत होगा ।

राजा से संसद तक

पुराने जमाने में राजा राज करते थे। राजा अपनी मर्जी से कानून बनाते और राज चलाते। राजा की मर्जी ही सबसे ऊँचा कानून था। पर राजा से खुद किसी कानून से बंधा नहीं होता था। कभी लोग राजा से खुश रहते थे और कभी दुखी। पर कानून बनाने या कानून लागू करने में लोगों की कोई भागीदारी नहीं होती थी।

राजा के मरने के बाद उसका ही गद्दी पर बैठता था। कई बार तो एक रजा दुसरे को हरा कर उसका राज्य हड़प कर लेता था। जैसे- जैसे कुछ देशों में उद्योग धंधे बढ़ने लगे तो पढ़े – लिखे वर्ग का विकास हुआ। कभी लोगों के मन में यह विचार आया कि राजा की मनमानी पर रोक लगनी चाहिए। सरकार चलाने में और लोगों की भागदारी होनी चाहिए।

सन 1600 से लेकर 1900 तक यूरोप में कई देशों में लोगों ने राजा के राज्य को खत्म कर दिया। लोगों द्वारा चुनी गई सरकारें बनी। शासन चलाने के लिए वहाँ संसद बनी और संसद के सदस्य लोगों द्वारा चुने गए। पर उस समय वोट डालने के अधिकार सब को नहीं था। महिलाओं और मजदूर वर्ग को वोट डालने का अधिकार नहीं था।यह अधिकार उन्हें बाद में मिला।

सवाल यह था कि लोकतंत्र में सरकार कैसे बने? ऐसे समाज में लोगों का क्या अधिकार होंगे। शासन का मुखिया कैसे चुना जाएगा?

सरकार बनाने और शासन चलाने के लिए कायदे कानून की जरूरत होती है। पूरे देश की सरकार चलाने के जो कायदे कानून हैं उन्हीं को संविधान कहते हैं। आजादी के बाद पहली बार संविधान बनाने वालों को भी लोगों ने चुना था।

संविधान में केंद्र की और राज्यों की दोनों तरह की सरकार बनाने और चलाने के नियम दिए गए हैं। संविधान के कानून, सब से ऊँचे कानून हैं। संविधान के अनुसार चुने हुए लोग पूरे देश के लिए नियम व कानून बनाते हैं।यदि कोई भी व्यक्ति ये कानून तोड़े तो उसे कानून सजा मिलनी चाहिए।

हर राज्य या प्रांत का कानून विधान सभा के सदस्य मिल कर बनाते हैं। विधानसभा के सदस्य उस राज्य के लोगों द्वारा चुने हुए होते हैं।

कौन से कानून कहाँ बनते हैं?

कौन से कानून राज्य की विधानसभा बनाएगी और कौन से कानून देश की संसद? इन बातों की सूची संविधान में दी गयी हैं।ऐसी सूची नीचे दी गई है –

(i) केन्द्रीय सूची – कुछ ऐसे विषय हैं जिन पर संसद कानून बना सकती है। और राज्य कानून नहीं बना सकते। इसका मतलब यह है कि इन विषयों पर पूरे देश में एक ही कानून होंगे। ऐसे विषयों के कुछ उदहारण हैं – देश की सुरक्षा, दूसरे देशों से संबंध, मुद्रा, दूर संचार, रेल और समुद्री यातायत इत्यादि।

(ii) राज्य सूची – कुछ ऐसे विषय हैं जिन पर राज्य की विधान सभा ही कानून बना सकती है और संसद कोई कानून नहीं बना सकती। यानी इन विषयों पर हर राज्य में अलग- अलग कानून हो सकते हैं। ऐसे विषयों के कुछ उदहारण हैं कृषि, सिंचाई, वन, पुलिस, स्वास्थय इत्यादि।

(iii) मिली जूली सूची - बाकी ऐसे विषय है जिन पर संसद और विधान सभा दोनों ही कानून बना सकती है। यदि दोनों के कानून में मतभेद जो तो कानून मान्य होता है। इस प्रकार के विषयों के उदहारण हैं- मजदूर कल्याण, बिजली, शिक्षा, अख़बार, उद्योग, दीवानी कानून।कौन किस विषय पर कानून बना सकता है यह अक्सर केंद्र और राज्यों के बीच विवाद का मुद्दा रहता है दोनों ही अधिक से अधिक विषयों पर कानून बनाना चाहते हैं।

सरकार के काम

संसद द्वारा बनाये गए कानून और नीति लागू करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। यानी यह जिम्मदारी प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद की है। इसके लिए मंत्रिपरिषद के कई न मंत्रालय और विभाग हैं। उदहारण के लिए रेल मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय इत्यादि। मंत्रालय और विभागों में कई हजार अधिकारी व कर्मचारी काम करते हैं। कर्मचारी पूरे भारत में फैले हुए हैं।

इन सब कामों के लिए कई हजार करोड़ रूपये खर्च होते हैं। हर एक विभाग साल भर में सैकड़ों रूपये खर्च करता है। इस पूरे खर्चे की जिम्मेदारी भी केंद्र के मंत्रियों और प्रधानमंत्री की है। खर्चे और आमदनी की देखरेख करने का एक और मंत्रालय है- वित्त मंत्रालय।

पूरे भारत के लिए रेल, डाल, टीवी, टेलीफोन आदि का प्रबंध करना,देश की रक्षा करना- ये सभी कम केंद्र सरकार के हैं।

ठीक इसी प्रकार से राज्य स्तर पर कानून और नीति लागू करने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद की है।

लोकसभा के सदस्यों द्वारा मंत्रिमडल पर दबाव ताकि वे लोकतांत्रिक ढंग से कार्य करें-

देश की सर्वोच्च संस्था के पास नियम बनाने से लेकर लोगों की विकास को मुख्यधारा में लाने की जिम्मेदारी है।इतने संसाधन एवां पैसे होने से केन्द्रीय मंत्रिमंडल कपास काफी ताकत हो जाती है।ऐसे में वे मनमानी न करें एवं पैसों का गलत उपयोग न करें इसलिए उन निगरानी रखना जरूरी होता है।

संसद के सदस्य मंत्रिमंडल पर निगरानी रखते हैं।प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल बने रहें, इसके लिए जरूरी है कि लोकसभा के अधिकतर सदस्यों का उनके ऊपर विश्वास हो।यदि मंत्रिमंडल और प्रधानमंत्री ठीक से कम न करें तो उन्हें लोकसभा द्वारा हटाया भी जा सकता है।इसके लिए लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।अगर यह प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया तो मंत्रिमंडल हटा दिया जाता है।

इसके अलावा संसद के सदस्य लोकसभा या राज्यसभा में मंत्रियों से सवाल पूछ सकते हैं और जानकारी मांग सकते हैं।मंत्री लोग किसी भी सवाल का जवाब देने से इंकार नहीं कर सकते।और न ही मंत्री गलत जवाब दे सकता है।यदि जानकारी गलत साबित हुई तो मंत्रिमंडल के खिलाफ कार्यवाही हो सकती है।

केन्द्रीय स्तर पर जो कम संसद करती है वही काम राज्य के स्तर पर विधानसभा करती है।विधान सभा के सदस्य राज्य सरकार के कम – काज और पैसों के उपयोग पर निगरानी रखते हैं।वे मंत्रियों से उनके काम के बारे में सवाल पूछते हैं और जानकारी लेते हैं।

हमने ऊपर देखा कि केंद्र स्तर पर सब कामकाज केंद्र की सरकार देखती हैं।राज्य के स्तर पर सारे कामकाज राज्य सरकार देखती है।पर राज्य के नीचे जिला, तहसील और ग्राम स्तर पर कौन कामकाज संभालता है?

देश की आजादी के बाद जब देश के कायदे कानून बनाने पर बहस चल रही थी न तो यह माना गया था कि जिले, प्रखंड और गाँव में भी पंचायत के रूप में स्वशासन होगा। इस का मतलब हुआ कि क्षेत्र के लोग पंचायत बनाकर अपनी सरकार खुद चलायेंगे।

पर देश के संविधान में गांव और जिले स्तर पर शासन के कायदे कानून बनाने की पूरे जिम्मेदारी राज्य सरकार पर छोड़ दी गयी थी। इस का नतीजा यह हुआ कि आजादी के बाद 1952 में जब आम चुनाव हुए तो पंचायतें स्थाई रूप से उभर कर आगे नहीं आ पाई।

हमें आजादी तो मिली और अपनी सरकार भी बनी।पर वह सरकार लोगों की पंहुच से दूर दिल्ली और पटना में बनी, और इसकी बाद कई

  • क्या जो योजनाएँ बनती हैं वह ठीक प्रकार से बनाई जाती हैं?
  • क्या योजना बनाने वाले गाँव की समस्या को अच्छे तरह समझते और जानते हैं?
  • क्या योजना को चलाने के लिए जरूरी साधन और लोग मिल रहे हैं?

शिक्षा देने के लिए बड़ी संख्या में स्कूल खुले।गांव के स्तर तक स्वास्थय केंद्र बने, सड़कों का और रेलवे लाइन का देश भर में जल बिछा।

  • आज भी देश की लगभग आधी आबादी निरक्षर है।
  • बहुत से गाँव में अभी भी स्वास्थ्य सेवा और पीने के साफ पानी की कमी है।
  • बेरोजगारी और गरीबी अभी भी बरकरार है।
  • बहुत से परिवारों के पास रहने को घर नहीं है।
  • समाज में महिलाओं और लड़कियों की स्थिती आज भी दयनीय है।

आइए जानें की इन समस्याओं का कारण क्या है?

  • क्या कारण है कि ढेर सारी विकास की योजनाओं के बाद भी इतनी बड़ी समस्याएँ बनी हुई न?
  • क्या कारण है कि विकास पर इतना सारा धन खर्च होने के बाद भी लोगों की समस्याएँ बनी हुई हैं?
  • विकासीय हिस्सेदारी में लोगों की भागीदारी अभी भी एक लाभार्थी के रूप में ही दिख रही है।जब तक विकासीय हस्तक्षेप में आम लोगों की भागदारी नहीं होगी तब तक समस्याओं का निराकरण संभव नहीं है।

योजनाओं की मदद से बड़े पैमाने पर गाँव की हालत न बदलने के कई और कारण हो सकते हैं।जिस पर देश और विदेश में बड़ी चर्चा होती रही परंतु जिनकी हालत बदलनी हैं उनसे चर्चा नहीं हो पाती है। इन्हीं चर्चाओं के बाद सर्वसम्मती से आम धारणा उभर रही है कि स्थानीय स्तर पर विकासीय हस्तक्षेप में जब तक लोगों की भागदारी नहीं होगी तब तक इन समस्याओं का निराकरण संभव नहीं है।

झारखण्ड में स्वशासन ऐतिहासिक दृष्टि

झारखण्ड के निवासी धातु के बर्तनों में पानी पीते हैं। सखूआ के पत्तलों पर भोजन करते और खजूर की चटाई पर सोते हैं।

पुरातात्त्विक उत्खननों में इस क्षेत्र में पूर्व पाषाणकाल से ही मानव सभ्यता की उपस्थिति प्रमाणित की है। पुनरातात्त्विक सामग्रियों के विश्लेषण ने यह स्पष्ट किया कि अन्य नदी या जल केन्द्रित संस्कृति से भिन्न झारखंडी संस्कृति वन केन्द्रित थी।

इस क्षेत्र में बसने वाली प्राचीनतम जनजाति असुर थी। जो कारीगर जनजाति थी और लोहा पिघलाया करती थी। बाद मुंडा और उराँव का आगमन इस इलाके में हुआ। उराँव की ही एक शाखा संथालपरगना की ओर गई जो पहाड़िया कहलाई।

छोटानागपुर में नागवां शियों के प्रवेश 64 ई. माना गया है। मुंडाओं के राजा मदिराय मुंडा से नागवां शी फाणिमुकूट राय के हाथों सत्ता हस्तांतरण हुआ। किन्तु इस क्षेत्र के राजाओं का चरित्र और शासन – चिंतन मगध से लेकर दिल्ली तक के सम्राटों और शासन व्यवस्था से अलग था।यहाँ राजा और प्रजा की जीवन शैली अभिन्न थी, उन्हें अलग-अलग पहचानना कठिन था।

मध्यकाल में शेरशाह ने सफेद हाथी के लिए अपनी सैन्य टुकड़ी झारखण्ड में भेजी। 1585 ई. में अकबर की सेना ने झारखण्ड आक्रमण किया और नागवांशी राजा मधुसिंह ने कर देना स्वीकार कर लिया।

1616 ई. जहाँगीर ने हीरों के लिए आक्रमण किया नागवांशी राजा दुर्जनसाल को गिरफ्तार कर 12 साल तक ग्वालियर के जेल में रखा। राजा दुर्जनसाल जब छूटकर छोटानागपुर लौटे तो उन्होंने अपने दरबार और जीवन शैली में दिल्ली के राजाओं की नकल करनी शुरू की।इसने झारखण्ड के जनजीवन पर व्यापक असर डाला।राज दरबार की आडम्बरपूर्ण जीवनशैली का खर्च आमजनों को करों के रूप में उठाने की शुरूआत हुई।सेना – सिपाही, पुरोहित – पुजारी, व्यापारी और अनके प्रकार के लोग राजव्यवस्था के पोषक और आश्रित रूप में आये।

उधर संथालपरगना ने भी इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।1592 ई. में अकबर के सेनापति और मंत्री मानसिंह ने राजमहल को बंगाल की राजधानी बनाया।यहाँ के पहाड़ियों ने (सौरिया पहाड़िया, कुमारभाग पहाड़िया, मालपहाड़िया) बाहरी हस्तक्षेप का हमेशा संघर्षपूर्ण प्रतिरोध किया।

1765 ई. ईस्ट इंडिया कंपनी की दीवानी बंगार – बिहार – उड़ीसा के साथ – साथ झारखण्ड में भी कायम हुई।1793 ई. के स्थायी बंदोबस्ती एवां 1865 के वन कानून ने झारखण्ड के जनजीवन में अंदोनल ला दिया।भूमि एवां वन से संबंध इतने व्यवसायिक और इतने अपरिचित शोषण कर दिए गए जिसे यहाँ की निवासियों ने इस बर्दाश्त नहीं किया।1766-80 ई. के पहड़िया विद्रोह, 1783 तिलका मांझी विद्रोह, 1755 – 1800 तमाड़ विद्रोह, 1798 – 91 भूमिज आंदोलन, 1800 चेरो विद्रोह, 1831 – 32 कोल विद्रोह, 1855-56 संताल हूल, 1895 - 1900 बिरसा उलगुलान, 1913-14 टाना भगत आंदोलन की श्रृंखला उस प्रतिकार के रूप में हम झारखंड में देख सकते हैं।

भागलपुर का अंग्रेज कलेक्टर अगस्टिन क्लीवलैंड थे जिन्होंने सबसे पहले पहाड़िया समुदाय की स्वशासी पद्धति को समझा और मन्यता दी। उसने ग्राम प्रधान मांझी और 12 से 15 गांवों के मांझियों के ऊपर सरदार या नाईब के पद के अधिकारों को मान्यता दी। उनके मानदेय की व्यवस्था की। इस प्रकार पहाड़ियों के प्रतिकार को शांत किया।

1831 – 32 ई. के कोल विद्रोह के बाद विल्किंसन रूल के तहत कोल्हान में परंपरागत प्रधानों (मुंडा – मानकी व्यवस्था) के अधिकारों को मान्यता दी गई।

1855-56 ईस्वी के संथाल हूल की आंच से संथालपरगना टेनैंसी एक्ट सामने आया और ‘मांझी परगैनेत’ की स्वशासी परंपरा मान्य हुई।

बिरसा उलगुलान के बाद छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम ने खुंटकट्टी – भूइहरी अधिकारों को मान्यता मिली।

विल्किंसन रूल और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के प्रभाव से उन इलाकों में स्वशासी पद्धति अपने को कायम रखने में सफल हो जो पेसा कानून के कारण पंचायती राज का हिस्सा बन गई है।

भारत में आजादी के बाद विकास का ढाँचा

भारत के संविधान में कहा गया है कि सभी नागरिकों को राजनैतिक, समाजिक और आर्थिक समानता मिलेगी।आजादी के बाद इस सपने को पूरा करने के लिए विकास के काम शुरू किए गए।

देश और राज्य के स्तर पर विकास की कई योजनाएँ बनी। जिला स्तर पर कलेक्टर और अलग – अलग विभागों ने इन योजनाओं के लगू करने की जिम्मेदारी संभाली। विकास का कम करने के लिए प्रखंड बनाये गये। और तीन स्तरों पर पंचायतों ने कम शुरू किया –

  1. केंद्र
  2. राज्य
  3. जिला
  4. प्रखंड
  5. ग्राम पंचायत
  6. ग्राम सभा

पर इन पंचायतों को संविधान के तहत अधिकार नहीं थे। यह पंचायतें सरकारी अफसरों के नीचे काम करती थी।

पिछले तिरसठ सालों में विकास के कामों से हमने चीजें हासिल की। आज हम दुनिया के कई देशों की अपेक्षा काफी बेहतर हैं लेकिन इसके बावजूद भी, अभी हम कई मामलों में पीछे हैं, आम आदमी की बुनियादी जरूरतों के मामले में हम काफी पीछे हैं। ऐसा नहीं है की सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि इन योजनाओं के सफल न होने का एक बड़ा कारण यह है कि विकास के कामों में आम लोगों की भागदारी नहीं रही है।

पिछले तिरसठ सालों में सरकार ने सारी समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। ऊपर से नीचे सरकार तथा विभाग के अधिकारीयों ने सब बातें खुद ही तय की।

इसका नतीजा यह हुआ कि लोगों ने सरकार से सेवाएँ और सुविधा तो हासिल की, पर वे सरकार और सरकारी विभागों पर निर्भर होकर रह गए।

  • लोगों का पानी ताकत पर विश्वास कम होता गया।
  • विकास और सामाजिक बदलाव में गाँव के लोगों की भागदारी लगभग नहीं रही।
  • लोगों की समस्याएँ समझना और उनके हाल ढूँढ़ने का सारा काम सरकारी विभागों और विशेषज्ञों ने किया पर इस तरह तो समस्या के सही नहीं मिल सकते। साथ ही जो साधन और क्षमता लोगों के पास मौजूद हैं उनका सही उपयोग भी नहीं होता। इस कमी को दूर करने के लिए सरकार ने कई समितियाँ इस पर सुझाव देने के लिए गठित किया और सभी समितियों ने स्थानीय स्तर पर लोगों की भागदारी को बढ़ाने के लिए स्थानीय स्तर पर भी एक सरकार बनाने पर जोर दिया ताकि लोगों की विकास की प्रक्रिया में भागदारी हो सकें, और इसके लिए संविधान के 37वें संशोधन 1992 का इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम रहा।

73वां संशोधन संविधान की पृष्ठभूमि

साठ साल से विकास और सामाजिक बदलाव में जो संस्थाएं लगी थी जैसे कि योजना आयोग, सरकार तथा देश की संसद उन सबको नयी दिशा में सोचने की जरूरत महसूस हुई।इस सोच में राजनीतिज्ञों, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं, स्वयंसेवी संस्थाओं और विशेषज्ञों नई भी भूमिका अदा की।इन सब लोगों को लगा कि

  • देश की समस्याओं में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ रहा है।समस्याएँ ज्यों की त्यों बनी हुई है।
  • लोग सरकार पर अधिक निर्भर होते जा रहे हैं।
  • विकास करने के जो लक्ष्य या उद्देश्य थे वे हम हासिल नहीं कर पा रहे हैं।

इन बातों पर चर्चा और विचार से यह नतीजा निकला कि

  • जिले और उससे निचले स्तर की पंचायत इकाइयों को और शक्ति मिलनी चाहिए।
  • इसके लिए देश में लोकतंत्र का जो ढाँचा है उसमें बदलाव लाने जी जरूरत थी।
  • इन बातों को ध्यान में रखते हुए लगा कि देश के संविधान में, मतलब कि देश के कायदे- कानून में कुछ जरूरी बदलाव होने चाहिए।
  • तब 1993 में देश की संसद ने संविधान में 73वां और 74वां बदलाव करके जिला स्तर पर पंचायतों और नगर पालिकाओं को बनाने का रास्ता निकाला।

73वां संविधान संशोधन

पंचायत राज के इतिहास में 24 अप्रैल 1993 बहुत महत्वपूर्ण तारीख है इस दिन संविधान में 73वां संविधान कर पंचायत राज व्यवस्था को स्थायी कर पहले से अधिक अधिकार देकर जिम्मेवार बनाने का रास्ता साफ किया गया है।

संविधान में संशोधन करके ये बातें तो पूरे देश में लागू कर दी गई है।देश तो बहुत बड़ा है।प्रदेशों की अपनी परिस्थितियों और जरूरतों के अनुसार पंचायतें अपने- अपने यहाँ काम कर सकें इसके लिए संशोधन के अनुच्छेद 40 में कहा है कि “राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा, जो उन्हें स्वयात्व शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने के योग्य बनाने के लिए आवश्यक हो।”

इसलिए सभी प्रदेशों ने पंचायतों को कुछ शक्तियाँ और अधिकार सौंपे हैं झारखण्ड में सरकार ने पंचायत राज अधिनियम 2001 बनाकर पंचायतों के लिए शक्तियाँ और अधिकार सौंपे हैं।

आईये 73वें संविधान की मुख्य बातों को जानें, जिसने पंचायतों की स्थायी करके महत्वपूर्ण भूमिकाएँ प्रदान की।

अवधारणा

  • स्थानीय स्तर पर शासन में लोगों की भागदारी सुनिश्चित करना।
  • ग्रामीण की सहभागिता से ग्राम विकास के क्रियान्वयन में गाँव के लोगों को जिम्मेदारी का आभास कराना।
  • ग्राम विकास योजनाओं, कार्यक्रमों, नियोजन आदि से गाँव वालों का लाभान्वित कराना।
  • शक्तियों का विकेंद्रीकरण “केंद्र से स्थानीय स्तर तक” कराना।
  • ग्राम सभा तथा पंचायतों को सशक्त करने की दिशा में संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरूआत कराना।

उपरोक्त सोच के परिणामस्वरुप संशोधन में मुख्य रूप से निम्नवत प्रावधान किए गए।

संशोधन की विशेषताएँ

  • नये पंचायत राज अधिनियम के अनुसार स्थानीय शासन की इकाइयों (ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायत) सामाजिक तथा आर्थिक विकास की योजनाओं को क्रियान्वित करने की संभावाएं हैं।
  • महिलाओं तथा गरीब तबकों को सशक्त करने दिशा में यह एक अच्छा कदम है।इसने देश की शासन व्यवस्था को अधिक संतुलन बना दिया है।
  • इस संशोधन के अनुसार स्थानीय स्व- शासन को तीन स्तरों पर गाँव, प्रखंड एवं जिला में विभाजित किया गया है।
  • पंचायत के तीनों स्तर की सभी जगहें सीधे चुनाव के द्वारा भरी जाएँगी।
  • तीनों स्तरों पर महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत स्थान आरक्षित हैं।इसके अलावा अनुसूचित जाति/जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के लिए भी उनकी जनसंख्या के आधार पर तीनों स्तरों पर स्थान आरक्षित किए गए हैं।
  • सभी पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष तक होगा और अवधि समाप्त होने के पहले नई पंचायत का चुनाव होना चाहिए।
  • गाँव में सब मतदाताओं का मिला कर ग्राम सभा बनाई जाएगी और इसको भी संविधान के कानूनों में मान्यता होगी।
  • अवधि समाप्ति से पहले विद्यमान किसी भी पंचायत को अंसवैधानिक तरीके से भंग नहीं किया जा सकेगा।
  • हर राज्य में हर स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की स्थापना होगी, जो निर्वाचन प्रक्रिया एवं निर्वाचन कार्यों का निरीक्षण एवं नियंत्रण करेगा।
  • ग्राम पंचायत के दो तिहाई सदस्य मुखिया के विरूद्ध अविश्वासी प्रस्ताव ला सकता है।
  • सामाजिक तथा आर्थिक विकास योजनाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थय एवं सफाई, भूमि सुधार कुटीर उद्योग, लघु सिंचाई आदि, के उद्देश्यों को मद्देनजर रखते हुए पंचायतों को ग्यारहवीं सूची के अंतर्गत अधिकार दिए गए हैं।इन अधिकारों के अतिरिक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार समय – समय पर ग्राम पंचायतों को कुछ योजनाएँ जैसे मनरेगा, बी. आर. जी. एफ. आदि सौंप सकती है।
  • पंचायतों द्वारा कार्यों को क्रियान्वित करने के लिए राज्य वित्त आयोग का भी गठन किया गया है, जो पंचायतों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के उपाय बतलाएगी।हर पांच साल बाद नये वित्त आयोग का पुर्नगठन होगा।
  • पंचायत अपनी कार्य प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में धन मद भी प्राप्त करती रहेंगी।
  • एक साल के भीतर ही हर राज्य में एक राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाएगा जो पंचायतों के लिए आर्थिक संसाधन सुनिश्चित कराने के लिए कार्य करेगा।तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री ने विधेयक को संसद में प्रस्तुत करते हुए कहा था कि पंचायतों को स्वायत्त शासन की संस्थाएँ बनाने की जिम्मेदारी केंद्र तथा राज्य दोनों की है।यह अधिनियम गाँव में पंचायतों को स्वायत्त शासन की संस्थाएँ बनाते हुए महात्मा गाँधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने की ओर प्रयास है।पंचायतों को स्वायत्त शासन की संस्थाएँ बनने के लिए तीन बातें पूरी करना आवश्यक है।

संस्थागत अस्तित्व

अर्थात निर्णय जा प्रतिनिधियों द्वारा लिया जाना

संस्था की क्षमता

अर्थात संस्था को स्वतंत्र रूप से नियम बनाने की शक्ति प्राप्त होना

वित्तीय रूप में सक्षम

अर्थात अपनी दायित्व के निर्वाह के लिए आवश्यक स्रोत उपलब्ध होना।

अधिनियम में पंचायतों को शक्ति व दायित्व देने का अधिकार राज्य की विधायिक को दिया गया तथा वह निर्देशित किया कि राज्य सरकारें एक वर्ष के दौरान इस अधिनियम को ध्यान में रखकर पंचायत अधिनियमों को संशोधन करेंगी।अत: राज्य सरकारों ने अपने - अपने पंचायत राज्य अधिनियम में आवश्यक संशोधन किए।

संविधान के इन कानूनों के तहत यह जिम्मेदारी राज्य की विधान सभा को सौंपी गयी कि पंचायत चलाने के लिए अपने राज्य की जरूरतों के हिसाब से और नियम बनाये जाएँ।

इन नियमों को पंचायत राज कानून कहते हैं।इस कानून की जानकारी हम पुस्तक में आगे दे रहे हैं।

स्थानीय स्वशासन क्या है ?

  • स्थानीय स्वशासन का मतलब है लोगों का अपना शासन यानि खुद के लिए खुद के द्वारा संचालित की जाने वाली शासन व्यवस्था जिसमें व्यक्ति एक समूह के रूप में अपने समूहिक हित के मुद्दों पर विचार करें, निर्णय लें और उसे लागू करें।
  • पर, इसका यह मतलब नहीं है कि पंचायतें पूरी तरह से स्वच्छंद होंगी।पंचायतों को संविधान और राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून के मुताबिक उसी तरह काम करना है, जिस तरह से राज्य सरकार को केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियम कानूनों के हिसाब से काम करना होता है।
  • स्थानीय स्वशासन में पंचायतों को लोगों यानि ग्राम सभा सदस्यों के साथ मिलकर गाँव के विकास से जुड़े गूए मुद्दों पर नियम और उप – नियम बनाने होते हैं, उनको लागू करना होता है और अगर जरूरी हो तो उसमें बदलाव करना होता है।

स्थानीय स्वशासन के लिए जरूरी है कि

  • लोगों के पास वे अधिकार हों जिससे कि वे अपने क्षेत्र के विकास की प्रक्रिया का निर्धारण खुद कर सकें।
  • गाँव के लोग अपने प्रतिनिधियों के साथ मिलकर अपने गाँव के विक्स की खुद ही योजना बनायें और खुद ही उसको लागू करें।
  • गाँव में उपलब्ध संसाधनों पर गाँव के लोगों का नियंत्रण हो।
  • यानी के गाँव में रहने वाले लोग वहां उपलब्ध संसाधनों के उपयोग के बारे में नियम बना सकें, उनको लागू कर सकें और अगर जरूरी हो तो उसमें फेरबदल करे सकें।
  • विकास कार्यों को लागू करने के लिए पंचायतों के पास अपने वित्तीय संसाधन हों, जिनको वे अपने क्षेत्र की जरूरतों के हिसाब से खर्च कर सकें।

स्थानीय स्वशासन की जरूरत क्यों

  • गाँव के विकास की योजनाएं गाँव में ही लोगों के साथ मिल बैठकर और वहां प्र्ढ़ रह लोगों की जरूरतों के हिसाब से बनें।
  • गाँव के विकास की योजनाओं को लागू करने में गांव के लोगों की सक्रिय भागीदारी हो।
  • योजनाओं का आंकलन गाँव के लोगों द्वारा किया जाए।
  • योजनाओं को लागू करने में आ रही परेशानियों को हाल गाँव के लोग खुद ढूंढें।
  • गाँव के विकास में भी सभी को और खासकर महिलाओं और कमजोर एवं पिछड़े वर्गों की भी भागदारी हो।
  • विकास से समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुंचे।
  • गाँव की समस्याएँ गाँव के स्तर पर ही लोग खुद हल करें।

झारखण्ड पंचायत राज अधिनियम, 2001 के अंतर्गत पंचायत राज के विभिन्न संस्थानों का व्यवहारिक स्वरूप

नई पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत त्रिस्तरीय पंचायत राज के चार स्तंभ है।

ग्राम सभा

ग्राम सभा व्यवहार के आधार पर पंचायत राज का लोक तांत्रिक स्वरूप हैं।यहाँ जनता द्वारा चुने गए ग्राम पंचायत प्रतिनिधि जनता के समक्ष उपस्थित होकर उनके प्रश्नों के उत्तर से एवं उनकी जिज्ञासाओं को पूरा करने की चेष्टा करते हैं। यह गणतंत्र की सबसे अनूठी और पंचायत राज का सबसे मौलिक स्वरुप है।ग्राम सभा ही वह आधारशिला है जिस पर पंचायत राज का पूरा विकसित ढाँचा अवस्थित है।

ग्राम पंचायत

ग्राम पंचायत राज का सबसे जमीनी संस्थागत स्वरूप है।यही एक मात्र विशुद्ध निर्वाचित सदस्यों की संस्था है। यहाँ तक कि इस संस्था के प्रधान, मुखिया, भी सीधे जनता से चुनकर आते हैं।ग्राम पंचायत एक विशुद्ध संस्था इसलिए भी है कि इसमें बाहर का कोई अन्य व्यक्ति सदस्य नहीं होता।यह जनता द्वारा सीधे निर्वाचित सदस्यों की संस्था ही जो जनता के बीच रहकर संस्थागत स्तर से काम करती है।

पंचायत समिति

पंचायत समिति ग्राम पंचायतों की समूहिक संस्था है।यह ग्राम पंचायतों को नियमित एवं सुचारू ढंग से चलने में सहायक की भूमिका में भी है और समूह नायक की भूमिका में भी।पंचायत समिति स्तर पर पहली बार पंचायत राज प्रशासन से संपर्क में आता है और उसके माध्यम से उठकर क्षेत्र के आधार पर कार्यकलापों का संकलन एवं सम्पादन करता है यहाँ पंचायत राज अपने नियामक स्वरुप में अवस्थित है।

जिला परिषद

जिला परिषद् पंचायत राज में समन्वयक स्वरूप में अवस्थित है।यह तीन स्तरों पर समन्वय करता है –

पहला, पंचायत समितियों के बीच जिसका प्रतिफल जिला स्तरीय योजना निर्माण होता है।

दूसरा, विभिन्न विभागों के बीच समन्वय जिसका प्रतिफल पंचायत समितियों एवं ग्राम पंचायतों के क्रियाकलापों के निर्धारण होता है।

तीसरा, प्रशासन एवं शासन के साथ समन्वय जिसका प्रतिफल पंचायत राज का नीतिगत स्वरूप होता है।

पंचायत राज के इन चारों स्वरूपों में एकरूपता भी है और विधिवत भी।एकरूपता इसीलिए कि ये सभी निकाय हैं।विधिवत इसलिए की सभी अपने आप में स्वतंत्र भी हैं और एक दूसरे से जुड़े हुए भी।स्थानीय स्वशासन, स्थानीय विकास एवं स्थानीय एकजुटता के माध्यम से समाज का कायाकल्प हो सकता है।इसके लिए थोड़ी और स्वायत्तता थोड़ा प्रशिक्षण और थोड़ा मार्गदर्शन पंचायतों की क्षमता – वृद्धि में सहायक होगा।इन तीनों स्तरों पर पंचायतों में आपसी समझ, समन्वय और समर्पण की भी जरूरत होगी।

ग्राम सभा

ग्राम सभा क्या है?

  • ग्राम सभा पंचायत राज की मूल संवैधानिक संस्था है।पंचायत राज की अन्य संस्थाएँ ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद् जनता प्रतिनिधियों वाली संस्था है।परंतु, ग्राम सभा स्वयं जनता की सभा है।
  • हमारे गणतंत्र में चार सभाएं हैं –

(i) राज्य सभा

(ii) लोक सभा

(iii) विधान सभा

(iv) ग्राम सभा

इन चारों में भी ग्राम सभा एक मूल सभा है क्योंकि पहली तीनों सभाओं में जनता के सीधे या घुमाकर (अप्रत्यक्ष रूप से) चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। परंतु ग्राम सभा में तो स्वयं जनता उपस्थित होती है।

इसके अलावा, ग्राम सभा हमारे गणतंत्र की इन चारों सभाओं में सदस्यों की संख्या के हिसाब से सबसे बड़ी है और तो और, हमारे गणतंत्र की सारी सभाओं में केवल ग्राम सभा ही ऐसी सभा है जो शाश्वत है, यानि की हमेशा बनी रहती है। इसकी अवधि का कोई परिसीमन नहीं। अखंड है, चिर है।

संविधान की पांचवीं सूची वाले क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था

पृष्ठभूमि

झारखंड के कुल 24 जिलों में 13 जिले पूर्ण रूप से एवं 3 जिलें आंशिक रूप से संविधान के पांचवी अनुसूची में आता है।(सूची संलग्न है)।संविधान में यह व्यवस्था इसलिए है क्योंकि पांचवीं अनुसूची वाले क्षेत्रों में ज्यादातर अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं और संविधान में यह व्यवस्था है कि इन जनजातियों की परंपरा और संस्कृति को बचाए रखने की कोशिश होना चाहिए। इसलिए अगर देश का कोई नियम या कानून जनजातीय परंपरा के खिलाफ है तो राज्यपाल को यह अधिकार है की वे उसे इन क्षेत्रों में लागू नहीं होने दें। 73वें संविधान संशोधन में इन क्षेत्रों को ध्यान में नहीं लिया गया था। बाद में संसद ने दिसंबर 1996 के नाम से जाना जाता है।

अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पेसा अधिनियम क्यों?

आजादी के बाद से अनुसूचित जनजाति के लोग सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए लगातार अपनी आवाज उठाते रहे है। इनके इतिहास को देखा जाए तो स्पष्ट समझ में आता है कि अनुसूचित जनजाति ने कभी भी किसी के अधीन हो कर जीना नहीं सीखा यहाँ तक कि उन्होंनें अंग्रेजों के शासन भी स्वीकार नहीं किया।उनका जीवन सुदूर क्षेत्रों में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से ही चलता है एवं बाहरी दुनिया की जटिलता से इनका कोई मतलब नहीं होता है।इसलिए इनका कहना है कि प्राकृतिक संसाधनों पर इन्हीं का नियंत्रण होना चाहिए।परंतु इन्हें अपने ही वनों में जाने की अनुमति नहीं है, वन सुरक्षा अधिनियम व उसके प्रावधानों के कारण वहाँ से लड़की व अन्य वनोपज इकट्ठा कर लें तो इन पर अतिक्रमण का आरोप लगा दिया जाता है। वनों एवं जमीन पर अधिकार न रह जाने के कारण आजीविका के लिए इन्हें पलायन के लिए विवश होना पड़ा।

आजादी के बाद भी अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए नियम कानून चलते रहे जिसकी वजह से इनका शोषण बढ़ता गया और इनकी परंपरा समाप्त होती चली गई। विकास के नाम पर इन्हें लोकतंत्र की प्रमुख धारा में शामिल करने के लिए इन्हें वोट डालने का अधिकार तो दिया गया परंतु सामाजिक न्याय से ये कोसों दूर रहे। काफी समय तक अंग्रेजों के समय बने गए नियम कानून के खिलाफ अनुसूचित जनजाति के समोदय ने आवाजें उठाई जिनमें से कुछ मुख्य है भारत जन आंदोलन, नेशनल फ्रंट फॉर ट्राइबल सेल्फ रूल, आदिवासी संगम। 1980 के दश में उस समय के अनुसूचित जनजाति के कमिश्नर श्री . बी. डी. शर्मा ने अपने पड़ का इस्तेमाल करते हुए अनूसूचित जनजाति की दयनीय स्थिति की सबके सामने प्रस्तुत करने का अत्यधिक प्रयास किया जिससे की उनके हित में उचित कदम उठाया जा सके।समय के साथ आंदोलन बढ़ते चले गए और आदिवासियों का हमारा गाँव हमारा राज का नारा बुलंद होता चला गया। उभरते जन आंदोलनों को देखते हुए संसद ने अनुसूचित जनजाति की स्थिति जाने के लिए एवं इस दिशा में उनके लिए उपयोगी कदम उठाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जिसका नेतृत्व अनुसूचित जनजाति के श्री दिलीप सिंह भूरिया के हाथों सौंपा।भूरिया कमेटी ने ग्राम सभा को सर्वोच्च अधिकार देने की मांग की जिससे की उनकी स्वशासन की परंपरा बरकरार रहे और साथ ही इस बात की भी पैरवी किया कि उपजाऊ भूमि एवं जंगल उनके ही अधीन होना चाहिए जिससे जिससे उनकी जीविका का साधन बना रहे।भूरिया कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर दिसंबर 1996 में संसद ने अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पंचायतों के विशेष अधिनियम पास किया जिसे पेसा के नाम से जाना गया।यह अधिनियम अनुसूचित जनजाति के स्वशासन को मजबूती प्रदान करने किए लिए एक नई पहल थी।

आइये जाने पेसा अधिनियम क्या है?

  • जनजातीय समूहों के स्वशासन में उनकी लोक परंपराओं व रीति रिवाजों को महत्वपूर्ण स्थान होता है।अनुसूचित जनजाति अभिशासन के पहलू में प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण व सूप्रबंधन सर्वोपरी होता है। स्वशासन की जनजातीय व्यवस्थाएं प्रकृतिक संसाधनों से समंजस्य बनाए रखने को प्राथमिकता देती है।इसी तथ्य को ध्यान में रखकर, पंचायतों से संबंधित संविधान के नौंवे अध्याय के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करने हेतु बने इस अधिनियम को आम तौर पर पेसा का नाम से जाना जाता है।
  • पेसा अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए एक नई पहल हैं क्योंकी इसके द्वारा उन्हें उनके अनुसूचित जनजाति के स्वशासन को संवैधानिक दर्जा मिला और इसके साथ ही उनका एक बार फिर से उनकी परंपरा एवं संपदा पर नियंत्रण स्थापित हो गया है।
  • दिए गए प्रावधानों में स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अनूसूचित क्षेत्रों के पंचायतों में काफी लचिलापन है।पेसा क्षेत्रों की ग्राम सभाओं को प्रजातांत्रिक दृष्टिकोण से बड़े पैमाने प्रधिकर दिए गए हैं स्थानीय स्वशासन के इस प्रावधान में लोग अपनी सूविधानुसार अधिकारों का उपयोग कर अपनी दशा में परिवर्तन करने की बात सोच रहे हैं।पैसा क्षेत्र की ग्राम सभाओं को यह अधिकार है कि वे क्षेत्र के विकास के लिए विकासीय योजनाएँ बनाएँ जो एजेंसी योजनाओं को क्रियान्वित कर रही है उन पर नियंत्रण करें, इसके अलावा लघुवनोपज, लघु जल निकायों एवं लघु खनिजों पर नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं। पेसा क्षेत्र के प्रावधानों के यह भी उल्लेखित है कि ग्रामपंचायतें स्थानीय बाजारों, शराब बनाने एवं बिक्री पर नियंत्रण आदि पर भी अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकती है।

पंचायत – उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996, के मुख्य आयाम

संविधान के भाग अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी किसी राज्य का विधान मंडल, उक्त विभाग के अधीन ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो निम्नलिखित विशिष्टियों में से किसी से असंगत हो, अर्थात –

  • यदि ग्राम पंचायतों पर राज्य द्वारा कोई विधान बनाए जाए तो वह रूढ़ीजन्य विधि, सामाजिक और धार्मिक पद्धतियों और समुदायिक सम्पदाओं की परंपरागत प्रबंध पद्धितियों के अनुरूप होगा।
  • प्रत्येक ग्राम में एक ग्राम सभा होगी जो ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनेगी जिनके नामों का समावेश ग्राम स्तर पर पंचायत के लिए निर्वाचक नामावलियों में किया गया है।
  • ग्राम साधारणतया आवास या आवासों के समूह अथवा छोटे गांवों के समूह से मिलकर बनेगा जिसमें समुदाय समाविष्ट हो और जो परंपराओं तथा रूढ़ियों के अनुसार अपने कार्यकलापों के प्रबंध करता हो।
  • प्रत्येक ग्राम सभा, जनसाधारण की परंपराओं तथा रूढ़ियों, उनकी संस्कृतिक पहचान, समुदायिक संपदाओं तथा विवाद निपटान परंपरागत ढंग से करने में सक्षम होगी।

प्रत्येक ग्राम सभा

  • समाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं का अनुमोदन एवं क्रियान्वयन करेगी।
  • गरीबी उन्मूलन और अन्य कार्यक्रमों के अधीन लाभार्थियों के रूप में व्यक्तियों की पहचान या चयन के लिए उत्तरदायी होगी।
  • ग्राम स्तर पर प्रत्येक पंचायत से यह अपेक्षा की जाएगी कि वह ग्राम सभा से, प्रखंड में निर्दिष्ट योजनों कार्यक्रमों और परियोजनाओं के लिए उक्त पंचायत द्वारा निधियों के उपयोग का प्रमाणन प्राप्त करें।
  • प्रत्येक पंचायत पर अनुसूचित क्षेत्र में स्थानों का आरक्षण, उस पंचायत में उन समुदायों की जनंसख्या के अनुपात में होगा जिनके लिए संविधान के भाग नवीं के अधीन आरक्षण दिया जाना चाहा गया है।परन्तु अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण, स्थानों की कुल संख्या के आधे से कम नहीं होगा।परंतु यह और कि अध्यक्षों के पद सभी स्तरों पर अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित होंगे।
  • राज्य सरकार ऐसी अनूसूचित जनजातियों के व्यक्तियों का जिनका मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत में प्रतिनिधित्व नहीं है नाम – निर्देशित कर सकेगी।परंतु ऐसा नाम - निर्देशित उस पंचायत में निर्वाचित किए जाने वाले कुल सदस्यों के दसवें भाग से अधिक नहीं होगा।
  • ग्राम सभा द्वारा समुचित स्तर पर पंचायतों से विकास परियोजना के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अर्जन करने से पूर्व अनुसूचित क्षेत्रों में ऐसी परियोजनाओं द्वारा प्रभावित व्यक्तियों को पुनर्स्थापित या पुनर्वास करने से पूर्व परामर्श किया जाएगा, अनुसूचित क्षेत्रों में परियोजनाओं की वास्तविक योजना और उनका कार्यान्वयन राज्य स्तर पर समन्वित किया जाएगा।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में लघु जल निकायों का योजना और प्रबंध समुचित स्तर पर पंचायतों को सौंपा जाएगा।
  • ग्राम सभा या समुचित स्तर पर पंचायतों की सिफारिशों को अनूसूक्स्हित क्षेत्रों में गौण खनिजों के लिए पूर्वेक्षण अनुज्ञप्ती या खनन पट्टा प्रदान करने के पूर्व आज्ञापक बनाया जाएगा।
  • नीलामी द्वारा गौण खनिजों के समुपयोजन के लिए रियायत देने के लिए ग्राम सभा या समुचित स्तर पर पंचायतों के पूरे सिफारिश को आज्ञापक बनाया जाएगा।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों को ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करने के दौरान, जो उन्हें स्वायत्तशासन की संस्थाओं के रूप में, कृत्य करने के लिए समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों, राज्य विधान-मंडल यह सुनिश्चित करेगा की समुचित स्तर पर पंचायतों और ग्राम सभा को विनिर्दिष्ट रूप में निम्नलिखित अधिकार प्राणदा किया जाए –
    • मद्यनिषेध परावर्तित करने या किसी मादक द्रव्य के विक्रय और उपभोग को विनियमित या निर्वंधित करने की शक्ति।
    • गौण वन उपज का स्वामित्व।
    • अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के अन्य संक्रमण के निवारण की और किसी अनुसूचित जनजाति की किसी विधि विरूद्ध तथा अन्य संक्रामित भूमि को प्रत्यावर्तित करने के लिए उपयुक्त कार्यवाही करने की शक्ति।
    • ग्राम बाजारों को, चाहें वे किसी भी नाम से ज्ञात हों, प्रबंध करने की शक्ति।
    • अनुसूचित जनजातियों को धन उधर देने पर नियंत्रण करने की शक्ति।
    • सभी सामाजिक सेक्टरों में कार्यरत संस्थाओं और कार्यकर्त्ताओं पर नियंत्रण करने की शक्ति।
    • स्थानीय योजनाओं और ऐसी योजनाओं के लिए जिनमें जनजातीय उपयोजनाएं हैं, पर नियंत्रण रखने की शक्ति।

झारखण्ड पंचायती राज अधिनियम 2001 के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा का गठन एवं उसका अधिकार

अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा का गठन (धारा 3)

अनुसूचित क्षेत्र के राजस्व ग्राम व वन ग्राम के भीतर भी एक या एक से अधिक ग्राम सभा का गठन किया जा सकता है।यानी एक गाँव के छोटे-छोटे, टोलों में ग्राम सभी का गठन किया जा सकता है।जब उनका उस ग्राम सभा में ऐसे समूह अथवा छोटे गांवों/टोलों का समूह होगा जिसमें एक ही समुदाय के लोग परंपरा एवं रूढ़ियों के अनुसार अपने क्रियाकलाप का प्रबंध करते हैं।छोटे गाँव में ग्राम सभा गठित होती या नहीं यह उस ग्राम सभा के सदस्यों पर निर्भर करेगा।

अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा की बैठक बुलाने का दायित्व रो मुखिया/उप – मुखिया का होगा लेकिन इन बैठकों की अध्यक्षता परंपरा प्रधान ही करेंगे।अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभाओं को कुछ अतिरिक्त शक्तियाँ दी गई है।

अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा द्वारा स्थायी समितियों का गठन

ग्राम सभा अपने कार्यों एवं जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से निर्वहन करने के लिए निम्नलिखित स्थायी समितियों का गठन कर सकेगी,

  • ग्राम विकास समिति
  • सार्वजनिक संपदा समिति
  • कृषि समिति
  • स्वास्थय समिति
  • ग्राम रक्षा समिति
  • आधारभूत संरचना समिति
  • शिक्षा समिति एवं सामाजिक न्याय समिति
  • निगरानी समिति

समिति का गठन एवं कार्यकाल

  • गफम सभा की प्रत्येक स्थायी समिति में चार सदस्य होंगे जो इस प्रयोजन के लिए ग्राम सभा द्वारा बुलाये गए बैठक में सदस्यों द्वारा अपने बीच में से ही बहुमत द्वारा मनोनीत किए जाएंगे। इन चार सदस्यों में से एक को अध्यक्ष के रूप में मनोनीत किया जाएगा।

परंतु इन भूमिकाओं को निभाने के लिए हर एक नागरिक को अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति चौकस और सजग रहना होगा।उनकी सक्रिय भागीदारी पंचायत राज की सफलता के लिए पहली आवश्यकता है।ग्राम सभा की सक्रियता और सदस्यों की नियमित भागीदारी से ही पंचायतीराज सशक्त और सक्षम हो सकेगा।

  • ग्राम सभा की प्रत्येक स्थायी समिति के सदस्यों का कार्यकाल बैठक में मनोनीत होने की तिथि से एक वर्ष के लिए होगी, परन्तु पुनर्निर्वाचित का पात्र होगा।
  • ग्राम सभा के स्थायी समितियों के सदस्यता के लिए कोई आरक्षण नहीं होगा।
  • ग्राम सभा की किसी स्थायी समिति के सदस्यों में से किसी सदश की मृत्यु, त्यागपत्र या उसके कार्यकाल के समाप्ति के पूर्व कार्य करने में असमर्थ होने की दशा में, ऐसे पड़ में आकस्मिक रिक्त हो गई समझी जाएगी और ऐसी रिक्त को उप नियम (ख) में वर्णित रीति में यथाशक्य शीघ्रता से भरी जाएगी।
  • ग्राम सभा के प्रत्येक स्थायी समिति का एक सचिव होगा जो उस ग्राम सभा की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति द्वारा मनोनीत किया जाएगा, परंतु ऐसा मनोनीत सदस्य ग्राम सभा के सदस्यों के बीच का ही होगा, तथा उसका कार्यकाल उसकी सदस्यता की अवधि तक रहेगा।

समिति की बैठक

  • साधारणत: कामकाज के संचालन के लिए प्रत्येक स्थायी समिति की बैठक ग्राम सभा क्षेत्र के अंदर जो ग्राम सभा की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति निर्धारित होगी, स्थान पर माह में कम से कम एक बार ऐसी तारीख एवं समय पर होगी जैसा कि ग्राम सभा के अध्यक्षता करने वाला व्यक्ति द्वारा निर्धारित किया जायेगा।
  • बैठक की सूचना बैठक की तारीख से पूरे तीन दिन पूर्व उसकी तारीख, समय तथा स्थान और उसमें किए जाने वाले कामकाज दर्शाते हुए समिति के प्रत्येक सदस्य को को जाएगी और ग्राम सभा के क्षेत्र के सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित की जाएगी।
  • बैठक की तारीख नियत करते समय इस बात का ध्यान रखा जायेगा कि अन्य स्थायी समितियों के बैठक की तारीखों से टकराव न हो।
  • स्थायी समिति की बैठक के लिए कोरम, स्थायी समिति के आधे सदस्यों से होगी।यदि किसी बैठक में कोरम न हो तो समिति के सभापति बैठक को ऐसी तारीख तथा समय के लिए स्थागित करेगा जो उसके द्वारा नियत किया जायेगा।
  • नियत किए गए बैठक की सूचना ग्राम सभा के सार्वजनिक स्थानों पर चिपकाई जायेगी तथा इस प्रकार स्थागित किए गए बैठक के लिए कोई कोरम की आवश्यकता नहीं होगी तथा ऐसे बैठक में कोई नया विषय विचारार्थ नहीं लाया जायेगा।

समिति के अधिकार

  • स्थायी समिति द्वारा नहीं बिंदूओं पर निर्णय आ जाएगा जो उनके अधिकार क्षेत्र में है।यदि मामला वित्तीय पहलु से जूडा है तो वह उस मामले को अपनी सिफारिश के साथ आगे विचारार्थ ग्राम सभा को भेज देगी।
  • स्थायी समितियों में से प्रत्येक स्थायी समिति बैठक की कार्यवाहियां, इस प्रयोजन के लिए रखी गई कार्यवृत्त पुस्तकमर लिखी जाएगी।
  • बैठक का सभापति, बैठक की समाप्ति होने के पश्चात् यथा संभव शीघ्र कार्यवृत पुस्तक पर हस्ताक्षर करेगा।
  • कार्यवृत पुस्तिका स्थायी समिति के समक्ष विचारण के लिए उसके अगले बैठक में रखी जाएगी जब तक कि इस बीच ग्राम सभा के बैठक में उसकी पुष्टि न कर दी जाए।

ग्राम सभा ग्राम की वार्षिक बैठक

ग्राम सभा की वार्षिक बैठक, जो आगामी वित्तीय वर्ष के प्रारंभ होने के कम – से – कम तीन माह पूर्व किया जाएगा, जिसमें निम्नलिखित बातें रखेंगी –

  • ग्राम पंचायत के सालाना लेखा – जोखा विवरण के बारे में ।
  • पिछले वित्तीय वर्ष की प्रशासन रिपोर्ट पर।
  • ऑडिट रिपोर्ट पर ओर उसके उत्तर पर, यदि हो तो।
  • आगामी वित्तीय वर्ष के लिए प्रस्तावित विकास तथा अन्य कार्यों से संबंधित कार्यक्रम।
  • ग्राम पंचायत का वर्षिक बजट तथा अगले वित्तीय वर्ष के लिए वार्षिक योजना।
  • निगरानी समिति का प्रतिवेदन।
  • ग्राम पंचायत का मुखिया और सदस्यों से किसी विशेष क्रियाकलापों, योजन, आय और व्यय के संबंध में मांगा गया स्पष्टीकरण।
  • ग्राम सभा के समक्ष ग्राम पंचायत ऐसे मामले भी रखेगी, जिन्हें पंचायत समिति, जिलापरिषद्, उपायुक्त/जिला दंडाधिकारी या इस हेतु प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी ऐसी बैठक के समक्ष रखे जाने की अपेक्षा करें।
  • ग्राम पंचायत इस धारा के अधीन अपने समक्ष के मामलों के संबंध में ग्राम सभा द्वारा की गयी सिफारिशें को, यदि कोई हों, तत्समय राज्य सरकार के प्रवृत नियमों के आलोक में क्रियान्वित करेगी।

अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा द्वारा ग्राम कोष की स्थापना

प्रत्येक ग्राम सभा एक निधि स्थापित कर सकेगी जो निम्नलिखित चार भागों से मिलकर ग्राम कोष कहलाएगा –

अन्न कोष

श्रम कोष

वस्तु कोष

नगद कोष

जिसमें निम्नलिखित जमा होंगे –

दान

प्रोत्साहन राशि

अन्य आय

 

  • ग्राम सभा की निधि में शामिल कोष में ग्राम को प्राप्त होने वाले दान, प्रोत्साहन राशि एंव अन्य आय सम्मिलित किए जाएंगे।
  • ग्राम कोष का संचालन संबंधित ग्राम सभा द्वारा बहुमत से मनोनीत एक ग्राम सभा कोषाध्यक्ष के द्वारा किया जाएगा।ग्राम सभा के कोषाध्यक्ष की यह जिम्मेवारी होगी कि वे ग्राम सभा की निधि को सरकार द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों के अधीन ग्राम सभा के क्षेत्र या सबसे नजदीक के राष्ट्रीयकृत बैंक की बचत खाता में रखेगा।यह बचत कहता संबंधित ग्राम सभा के नाम से होगा।
  • ग्राम कोष में जमा धन का लेखा एक रजिस्टर मर रखा जाएगा तथा उक्त रजिस्टर में ग्राम सभा के अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष एवं संबंधित ग्राम पंचायत सचिव का हस्ताक्षर होगा।उक्त रजिस्टर संबंधित ग्राम पंचायत के सचिव की अभिरक्षा में रखा जाएगा।
  • ग्राम कोष के खाते का संचालन संबंधित ग्राम पंचायत सचिव एवं ग्राम सभा कोषाध्यक्ष के हस्ताक्षर से किया जाएगा।
  • ग्राम कोष में जमा धन का उपयोग राज्य सरकार के निर्देश के आलोक में अधिनियम की धारा 10 में वर्णित कृत्यों के लिए किया जाएगा।
  • ग्राम सभा कोषाध्यक्ष का कार्यकाल मनोनयन की तिथि से एक वर्ष का होगा, परंतु इस बीच मृत्यु, त्यागपत्र से उसके कार्यकाल के समाप्ति के पूर्व कार्य करने में असमर्थ होने की दशा में, आकस्मिक रिक्ति होने पर उप नियम – (ख) के अनुसार कोषाध्यक्ष माँ मनोनयन किया जायेगा।
  • ग्राम सभा के साधन के विभिन्न स्रोतों एवं इसके बहिर्गमन तथा बहरत के नियंत्रक महालेखा नियंत्रक के विहित प्रपत्र में अंकेक्षण प्रक्रिया के तरत लेखा का संधारण किया जायेगा।

अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की बैठक – (धारा- 5)

ग्राम सभा की बैठक कम से कम तीन माह में एक बार होगी, परंतु ग्राम सभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई से अधिक सदस्यों द्वारा लिखित में अपेक्षा किए जाने पर या पंचायत समिति, जिला परिषद् या जिला दंडाधिकारी/ उपयुक्त द्वारा अपेक्षित किए जाने पर, ग्राम सभा की बैठक ऐसी अपेक्षा के तीस दिनों के भीतर बुलाई जा सकेगी।

आम तौर पर ग्राम सभा की बैठक साल में कम से कम चार बार की जानी है जिसके लिए 26 जनवरी, 1 मई, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर की तिथि तय की गई है।पर आवश्यकता पड़ने पर ग्राम सभा की बैठक कभी भी और जितनी बार मुखिया या सदस्य चाहें प्रक्रियानुसार बुला सकते हैं।

ग्राम सभा की बैठक की सूचना देने की रीति

  • ग्राम सभा की प्रत्येक बैठक की सूचना जिसमें तारीख, समय तथा स्थान की सूचना बैठक की तारीख से कम से कम सात दिन पूर्व (संलग्न प्रपत्र – 4) में दी जाएगी, परन्तु आपातकालीन स्थिति में ग्राम सभा की बैठक तीन दिन की पूर्व सूचना देकर भी बुलायी जा सकेगी।
  • बैठक की सूचना संबंधित ग्राम पंचायत के प्रत्येक ग्रामों में सार्वजनिक स्थानों पर और ग्राम पंचायत के कार्यालय पर इसकी एक प्रति को चिपकाया जाएगा और ग्राम पंचायत क्षेत्र में डुगडुगी या ढोल पिटवाकर घोषणा करते हुए प्रकाशित की जाएगी।

ग्राम सभा की बैठक की तारीख, समय तथा स्थान

  • ग्राम सभा के बैठक की तारीख, समय तथा स्थान मुखिया द्वारा तय कियाजाएगा, मुखिया की अनुपस्थिति में उप मुखिया द्वारा मुखिया तथा उप – मुखिया दोनों की अनुपस्थिति में पंचायत समिति के कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा या उनके द्वारा अधिकृत पंचायत समिति के सहायक सचिव द्वारा तय किया जायेगा।।
  • कानूनी रूप से ग्राम पंचायत काम मुखिया ही ग्राम सभा की बैठक बुलवाए जाने के लिए जिम्मेवार होगा।इसलिए इस जिम्मेवारी को निर्वहन करने के लिए उसे सतर्क और सावधान रहना चाहिए।
  • यदि मुखिया द्वारा पंचायत अधिनियम के अधीन निश्चित समय अंतरालों पर बैठक बुलवाने में असफल रहता है तो संबंधित पंचायत समिति के कार्यपालक पदाधिकारी की निर्देश पर संबंधित अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा मुखिया को अयोग्य करार करते हुए उसे पद से हटा दिया जाएगा।

परंतु मुखिया को अयोग्य करार करने के पूर्व संबंधित अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा निलंबन करने के आधार पर मुखिया को अपनी बात रखने का सबूतों के आधार पर अवसर देना होगा

ग्राम सभा के बैठक का कोरम (धारा 7)

  • अनुसूचित क्षेत्रों में कोरम पूरा होने के लिए ग्राम सभा के कुल सदस्यों के एक तिहाई सदस्यों का हाजिर होना जरूरी है और एक तिहाई सदस्यों में भी एक तिहाई महिलाओं का होना जरूरी है।
  • यानि अगर ग्रामसभा कके 300 सदस्य हैं तो कोरम पूर्ति के कम से कम 100 सदस्य होने चाहिए।इन 100 सदस्यों में से 33 महिलाएँ होना जरूरी है।

उदारण स्वरूप यदि बैठक में सदस्यों की कुल संख्या 91 है।तो एक तिहाई सदस्य से कम की पूर्ति करने के लिए 30. 3 अर्थात पूर्ण संख्या 30 सदस्य एक तिहाई से कम होंगे, इसलिए 31 सदस्यों की उपस्थिति कोरम के लिए आवश्यक है तथा इन 31 सदस्यों में से एक तिहाई महिला सदस्य की अर्थात 11 महिला सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य है।

बैठक का संचालन (धारा 6)

  • ग्राम सभा बैठक का आयोजन करने की जिम्मेदारी मुखिया की है।यदि वह बैठक का आयोजन नहीं कर पाते हैं तो पंचायत समिति के कार्यपालक पदाधिकारी (बी.डी.ओ.) बैठक का आयोजन करेंगे।मुखिया की असमर्थता की दशा में ग्राम सभा के सदस्यगण को कायर्पालक पदाधिकारी को सूचित कर ग्राम सभा की बैठक बुलाने का अधिकार है।
  • कार्यपालक पदाधिकारी (बी.डी.ओ.) ऐसी बैठक में अपने स्थान पर किसी सरकारी सेवक को भेज सकेंगे।
  • ग्राम सभा की बैठक का संचालन उसकी अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति द्वारा किया ही किया जाएगा, जो अध्यक्ष के नाम से संबोधित किया जायेगा।
  • अध्यक्ष द्वारा ग्राम सभा की राय से ग्राम सभा के समक्ष विचार्राथ लिए जाने वाले मुद्दों पर चर्चा की प्रक्रिया की शुरूआत किया जाएगा।
  • बैठक में लिए गए निर्णयों को संक्षिप्त जानकारी के लिए पढ़कर सुनाया जायेगा।संबंधित ग्राम पंचायत के सचिव द्वारा उसी के अनुसारसभी सभी निर्णयों को कार्यवाही पणजी में अभिलिखित करेगा।

अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभी की बैठक की अध्यक्षता

  • अनूसूचित क्षेत्रों मर ग्राम सभा के बैठक की अध्यक्षता, उस ग्राम सभा के अनुसूचित जनजातियों के सदस्य द्वारा की जाएगी, जो संबंधित पंचायत का मुखिया, उपमुखिया या प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के सदस्य नहीं हो, और उस ग्राम सभा क्षेत्र में परंपरा से प्रचलित रीति – रिवाज के अनुसार मान्यता प्राप्त व्यक्ति हो जो ग्राम प्रधान जैसे मांझी, मुंडा, पाहन, महतो या किसी अन्य नाम से जाना जाता हो या उनके द्वारा मनोनीत/समर्थित व्यक्ति हो।यदि परंपरागत प्रधान गैर अनुसूचित जनजाति के सदस्य हों तो भी वे ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता के लिए योग्य माने जायेंगे (झारखण्ड पंचायत राज एक्ट में 2003 में संशोधन के अनुसार)।
  • अनुसूचित क्षेत्र की ग्राम सभा की अध्यक्षता करने वाला व्यक्ति या तो परपंरागत ग्राम प्रधान हो या उसके द्वारा प्रस्तावित स्थायी अध्यक्ष हो जिसको संबंधित पंचायत समिति के सचिव द्वारा प्राधिकृत पदाधिकारी/कर्मचारी, ग्राम सभा की प्रथम बैठक के पूर्व शपथ ग्रहण/प्रतिज्ञा कराएगा।शपथग्रहण/प्रतिज्ञा करने वाले ग्राम सभा के अध्यक्षों की सूची संबंधित प्रखंड विकास कार्यालय में संधारित की जाएगी।

नोट : किसी व्यक्ति के ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित होने के हक़ के संबंध में विवाद की स्थिति में बैठक की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति, उस ग्राम सभा क्षेत्र की मतदाता सूची में प्रविष्टि के आलोक में, विवाद का निराकरण करेगा, और उसका निर्णय अंतिम होगा।(धारा 9)

ग्राम सभा अध्यक्ष के कर्तव्य एवं शक्तियाँ

  • यदि संबंधित ग्राम पंचायत का सचिव ग्राम सभा की बैठक के अध्यक्ष के आदेशों का जो अधिनियम के अधीन दायित्वों के निर्वहन या क्रियान्वयन करने का कम में पंचायत के सचिव के कृत्यों में आते हैं, उन्हें वह पालन नहीं करता है तो अध्यक्ष द्वारा संबंधित पंचायत समिति के कार्यपालक पदाधिकारी से उस पर नियंत्रण करने की अपेक्षा की जा सकती है। यदि राज्य सरकार अपने विवेक पर पंचायत के कार्यकलापों की जाँच करती है, तब जांचकर्ता प्रधाकारी के समक्ष लिखित में अध्यक्ष के समस्याओं का समाधान चाहने हेतु निवेदन कर सकता है और बता सकता है कि उसे अपने कर्तव्यों के पालन में अमुक बाधाएँ हैं, जिनसे अधिनियम के उद्देश्यों के अनुकूल कार्य होने में समस्या आ रही है।

निम्न परिस्थिति में अध्यक्ष किसी भी सदस्य को बैठक सें निकाल सकता

  • ग्राम सभा के बैठक में यदि कोई सदस्य अभद्रता से पेश आता है,
  • आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करता है और उन्हें वापस लेने या क्षमा मांगने से इंकार करता है।
  • अध्यक्ष के किसी आदेश का पालन करने से इंकार करता है।
  • अध्यक्ष द्वारा स्थान ग्रहण के लिए आदेशित किए जाने पर भी अपना स्थान ग्रहण नहीं करता है तो वह सदस्य व्यवस्था भंग करने का धोषि होगा तथा अध्यक्ष द्वारा ऐसी किसी भी सदस्य को बैठक से तुरंत निकल जाने का निर्देश देगा जो उस दिन की बैठक की शेष अवधि के दौरान अनुपस्थित रहेगा।
  • बैठक में गंभीर अव्यवस्था उत्पन्न होने की दशा में अध्यक्ष किसी बैठक को स्थागित कर सकेगा।

अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा की अतिरिक्त शक्तियाँ और कृत्य

अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा को सामान्य क्षेत्रों की ग्राम सभा को मिले अधिकारों के साथ – साथ कई और भी अधिकार मिले हैं। ये अधिकार इस प्रकार हैं –

  • अनुसूचित क्षेत्र में सभा को यह अधिकार है कि वह अपने यहाँ के जनजातीय समुदाय तथा व्यक्तियों की परंपरा, संस्कृतिक पहचान तथा समुदायिक साधनों को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक कदम उठाए।
  • ग्राम सभा (अनुसूचित जनजाति समुदाय) में आपसी झगड़ों तथा विवाद निपटाने के लिए जो पुराने रिवाज अनुसूचित जनजाति के बीच में चले आ रहे हैं उन्हें भी बचाएगी।इसका मतलब यह है कि ग्राम सभा आपसी विवाद व झगड़े की स्थिति में ग्राम सभा की बैठक में इन विषयों पर फैसला ले सकती है।और यह फैसला दोनों पक्षों को मानना पड़ेगा।जो भी पक्ष ग्राम सभा के इस फैसले से संतुष्ट नहीं है यह इसके लिए खिलाफ जिला स्तर के न्यायालय में अपील कर सकता है।ग्राम सभा के फैसलों को कोई भी सरकारी अधिकारी बदल नहीं सकता।
  • ग्राम सभा अपनी सीमा के भीतर आने वाले जल, जंगल तथा जमीन की प्रचलित नियम के अनुसार इनकी देखभाल करेगी।इनकी व्यवस्था करते समय या इनसे जुड़े किसी भी विवाद का निपटारा करते समय ग्रामसभा यह ध्यान रखेगी कि उसका फैसला संविधान की मूल भावना के खिलाफ न हो।
  • ग्राम सभा अपनी सीमा के भीतर आने वाले सभी बाजारों और सभी प्रकार के पशुमेलों का प्रबंधन करेगी इसका मतलब यह हुआ कि ग्राम सभा यह तय कर सकेगी कि मेला कब, कहाँ और कैसे लगेगा।
  • ग्राम में लागू की जाने वाली सभी प्रकार की योजनाओं (जनजातीय-उपयोजना सहित) पर ग्राम सभा का नियंत्रण रहेगा।यानी ग्राम सभा ही यह तय करेगी कि कौन सी योजना ग्राम सभा लागू होंगे।
  • ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कृत्यों, जिसे राज्य सरकार तत्समय प्रवृत किसी विधि के अधीन उसे प्रदत्त करे या न्यस्त करे का पालन करेगी।
  • धारा 10 (1) (क) में विनिर्दिष्ट कृत्य तथा धारा 10 (5) में वर्णित अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा के अतिरिक्त शक्तियों एवं कृत्यों के अलावा राज्य सरकार समय – समय अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा को अन्य अतिरिक्त शक्तियाँ तथा कृत्य निर्धारित कर सकेगी।
  • ग्राम सभा, ग्राम पंचायत के कृत्यों से संबंधित किसी विषय पर विचार करने के लिए स्वतंत्र होगी तथा ग्राम पंचायत इनकी सिफारिशें को तत्समय प्रवृत नियमों के आलोक में कार्यान्वित करेगी।
  • धारा 10 (1) तथा धारा 10 (5) में ग्राम सभा के वर्णित कृत्य तत्समय प्रवृत सरकार / के अधिनियमों/नियमों एवं उनके क्षेत्राधिकार को प्रभावित नहीं करेगा।

ग्राम सभा में बहुमत द्वारा निर्णय लिया जायेगा

  • ग्राम सभा की बैठक में ले गए समस्त विषय उपस्थित सदस्यों की बहुमत से तय किए जाएंगे और उसपर हाथ उठाकर सबकी सहमति ली जाएगा।मतों की समानता की दशा में बैठक के अध्यक्ष को निर्णायक मत देने का अधिकार होगा।
  • यदि ऐसा कोई विवाद उत्पन होता है जिससे कोई व्यक्ति मतदान का हक़दार है या नहीं, तो ऐसी स्थिति में ग्राम सभा क्षेत्र के मतदाताओं की सूची में को ध्यान में रखते हुए, अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति द्वारा उसका निर्णय किया जाएगा और उसका निर्णय अंतिम होगा।

ग्राम सभा सदस्यों की उपस्थिति पंजीकरण

ग्राम सभा के बैठक मर उपस्थिति होने वाले सभी सदस्यों के नाम प्रपत्र 5 में रखे गए उग्रा पस्थिति पंजी में दर्ज किए जायेंगे।

ग्राम पंचायत के साथ तालमेल

अनुसूचित क्षेत्रों में भी ग्राम सभा अपनी बैठक में जो भी फैसला लेगी उसे लागू करना और करवाना ग्राम पंचायत का काम है। इसीलिए मुखिया तथा सदस्य पूरी तरह से ग्राम सभा के अधीन होकर काम करते हैं।

सरकारी विभागों का ग्राम सभा से तालमेल

कोई भी सरकार विभाग अनुसूचित क्षेत्र में बिना ग्राम सभा की अनुमति या निर्णय के आपने मन से कोई कम नहीं कर सकता।जल, जंगल और जमीन से जुड़े हर विषय पर विभाग इन विषयों पर निर्णय लेते समय ग्राम सभा की सहयता कर सकते हैं।

ग्राम सभा की कार्यवाही अभिलेख

  • ग्राम सभा के प्रत्येक बैठक की, कार्यवाहियों की रिपोर्ट तथा लिए गए निर्णयों एवं उपस्थिति सदस्यों की संख्या, ग्राम पंचायत के सचिव द्वारा (संलग्न प्रपत्र 6) में किया जायेगा जिसकी पुष्टि उस बैठक में अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति द्वारा की जाएगी।
  • ग्राम सभा की कार्यवाही हिंदी में लिखी जाएगी।
  • ग्राम सभा की कार्यवाही की प्रति सचिव द्वारा ग्राम पंचायत को प्रस्तुत की जाएगी।
  • ग्राम सभा की सिफारिशों को ग्राम पंचायत कार्यान्वित करेगी अथवा कराएगी।

ग्राम सभा के कार्य एवं उसकी शक्तियाँ

ग्राम सभा के निम्नलिखित कृत्य है –

  1. सामाजिक तथा आर्थिक विकास के लिए ऐसी योजना, जिसमें ग्राम पंचायत स्तर की सभी वार्षिक योजनाएँ सम्मिलित हैं, कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं का क्रियान्वयन करने से पूर्व अनुमोदित करना।
  2. ग्राम पंचायत के वार्षिक बजट पर विचार- विमर्श पर उस पर सिफारिशें करना।
  3. ग्राम पंचायत के अंकेक्षण रिपोर्ट तथा वार्षिक लेखाओं पर विचार करना।
  4. ग्राम पंचायत के द्वारा 10 (1) क (2) में विनिर्दिष्ट योजनाओं, कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं के लिए निधियों के समुचित उपयोग को अभिनिश्चित करना तथा अभिप्रमाणित करना।
  5. लाभुकों को निधियों या परिसम्पत्तियों के समुचित उपयोग तथा वितरण को सुनिश्चित करना।
  6. ग्राम में किए जाने वाले विकास के कार्यों में सहायता करना।
  7. गाँव में किए जाने वाले विकास कार्यों की योजना निर्माण प्रस्तावित करना और उसे पारित करना।
  8. कार्यों का प्राथमिकीकरण करना (यानी कि कौन सा काम पहले किया जाए)।
  9. कल्याण एवं विकास योजनाओं व कार्यक्रमों के लिए लाभार्थियों के पहचान एवं चयन करना।यदि ग्राम सभा यह काम समय से नहीं कर पाती है तो फिर ग्राम पंचायत इस कार्य का निष्पादन करेगी।
  10. विकास योजनाओं के चलाने में मदद करना।
  11. सामुदायिक कल्याण के कामों के लिए नकद या अनाज या दोनों देकर मदद करना।
  12. श्रमदान करके सहयोग देना।
  13. जनसामान्य के बीच सामान्य चेतना, एकता एवं सामाजिक सौहार्द का बढ़ावा देना।
  14. ग्राम पंचायत को लघु – जलाशयों के रखरखाव तथा उपयोग में परामर्श देना।
  15. सार्वजनिक कुओं और तालाबों का निर्माण, मरम्मत और अनुरक्षण तथा घरेलु उपयोग के लिए पेयजल उपलब्ध कराना।
  16. स्वच्छता, और सफाई पर विशेष ध्यान देना।
  17. नहाने, धोने और पालततु पशुओं को पीने के लिए जल स्रोत उपलब्ध कराना एवं उनका अनुरक्षण
  18. ग्रामीण सड़कों, पुलियों, पुलों, बांधों तथा अन्य सार्वजनिक उपयोगिता के अन्य कार्यों तथा भवनों का निर्माण कार्य का अनुश्रवण करना।
  19. सार्वजनिक सड़कों, शौचालयों, नालों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों का निर्माण कराना एवं उनकी साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना।
  20. ग्राम पंचायत में आने वाले ऐसे कुओं, अस्वच्छ तालाबों, खाइयों तथा गड्ढों को भरना जिसका उपयोग ग्राम पंचायत में रहने वाले लोगों द्वारा नहीं किया जा रहा है।
  21. ग्राम पंचायत के सभी मार्गों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर प्रकाश की व्यवस्था करना।
  22. मनोरंजन, खेल- तमाशे, दूकान, भोजनगृहों और पेय पदार्थों, मिठाइयों, फलों, दूध तथा इसी प्रकार की अन्य वस्तुओं के विक्रेताओं का विनियमन और उस पर नियंत्रण।
  23. सार्वजनिक भूमि का प्रबंधन और उसका विकास करना।
  24. कचरा इकट्ठा करने के लिए स्थानों की अलग से व्यवस्थित करना।
  25. कांजी हाऊस की स्थापना और प्रबंध और पशुओं से संबंधित अभिलेखों का रख-रखाव हेतु व्यवस्था सुनिश्चित कराना।
  26. राष्ट्रीय महत्व के घोषित किए गए प्राचीन तथा ऐतिहासिक स्मारकों को छोड़कर अन्य ऐसे प्राचीन तथा ऐतिहासिक स्मारकों की देखरेख और चारागाहों तथा अन्य भूमि को सुरक्षित रखना जो ग्राम सभा के नियंत्रण में हो।
  27. ग्राम सभा की सम्पत्ति की देख रेख करना।
  28. जन्म मृत्यु और विवाहों के अभिलेखों को रखा जाना।
  29. केंद्र या राज्य या विधि - पूर्वक गठित अन्य संगठनों द्वारा जनगणना या अन्य सर्वेक्षणों में सहायता करना।
  30. संक्रामक रोगों की रोकथाम, टीकाकरण आदि कार्यों में सहायता करना।
  31. अशक्त तथा निराश्रितों, महिला एवं बच्चों की सहायता करना।
  32. युवा कल्याण, परिवार कल्याण, खेलकूद का विस्तार करना।
  33. वृक्षारोपण एवं ग्रामवनों का संरक्षण।
  34. दहेज़ जैसे सामाजिक बुराईयों को दूर करना।
  35. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्गों की दशा सुधारने के लिए एवं अस्पृश्यता निवारण के लिए राज्य सरकार या अन्य सक्षम पदाधिकारी के आदेशों का क्रियान्वयन कराना।
  36. बूनियादी सुविधाओं के लिए योजना बनाना एवं उसका प्रबंध करना।
  37. पंचायत समिति, एवं जिला परिषद् के द्वारा सौंपे गए कार्यों को करना।

ग्राम सभा सदस्यों का सामाजिक दायित्व

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में यह आम धारणा बनती जा रही है कि आम आदमी मतदान करने के बाद अपनी सारी जिम्मेदारी से मुक्त होने लगा है। उन्होंने लगता है कि हमने तो अपनी भूमिकाओं का निर्वहन कर दिया है। हमने अपना अमूल्य वोट सिर्फ प्राथमिकता के आधार पर इसलिए दिया कि अब आप मेरी सभी समस्याओं का समाधान करेंगे।यह धारणा स्वयं के लिए बहुत ही गलत है, क्योंकि, कोई भी व्यक्ति इतना ताकतवर नहीं होगा, जो आपकी अपनी बुनियादी समस्याओं का निराकरण कर सकता है।वह तो एक माध्यम होगा। शुरूआत तो आपको ही करनी होगी। जिस तरह हम लोग पिछले 63 वर्षों से अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए सरकार पर आश्रित रहे, जिसका परिणाम हम लोगों के सामने है, ऐसे में क्या अभी भी हम लोग इस परिवर्तन के बाद यही सोच रखें कि प्रतिनिधि ही हमारा सब कुछ कर दें। तो यह स्वयं के अलावा इस पूरी व्यवस्था के प्रति हमारा नकारत्मक दृष्टिकोण सामने दिख रहा है।जरा सोचिए अपने जिस व्यक्ति को अपना नेता चुना है, वह भी आप ही के जैसा है। कल तक जो आपके साथ था, क्या आज उसकी क्षमता इतनी हो गई कि आपकी सभी समस्याओं का वह निराकरण कर सकता है।

इसके आलवा आप यह भी देखें कि चुनाव में इस पद के लिए कितने व्यक्ति मैदान में थे उन सभी को पीछे छोड़ते हुए अपने एक नेता चुना, क्या सभी व्यक्ति एवं उसके सहयोगी, अपने नेता का तुरंत सहयोग करेंगे, चुनाव में जिस तरह आरोप- प्रत्यारोप एक दूसरे के ऊपर चलता है, क्या वह इतनी जल्दी सामान्य हो जायेंगे, क्या गाँव के जातीय समीकरण, टोलिय समीकरण, गुटीय समीकरण तुरंत समाप्त हो जाएगा, क्या इन सभी कारणों से आपका नेता अकेले लड़ सकता है? क्या पूर्व के मुखिया के अनुभवों को वह दरकिनार कर सकता है? शायद अकेले संभव नहीं है। इसलिए आपकी भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण है। हम सभी मिलकर ग्रामपंचायत के सभी निर्वाचित सदस्यों की सामाजिक भूमिका को तय करा सकते हैं, संवैधानिक भूमिकाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन हो, इसकी व्यवस्था पंचायत प्रतिनिधि मिल कर ही इसको व्यवहारिक कर सकते हैं। इसलिए अपनी कुछ जिम्मेदारियों का उचित निर्वहन अवश्य करें, जैसे –

  • गाँव के सभी वयस्क व्यक्तियों को ग्रामसभा की बैठक में अवश्य भाग लेना चाहिए तथा गाँव के सार्वजनिक मुद्दों पर बिना किसी भेदभाव के उचित निर्णय लेने में सहयोग करना चाहिए।
  • यदि किसी मुद्दे पर आप सहमत नहीं हैं, तो अपनी बात का खुलकर रखनी चाहिए लेकिन यदि गाँव का जन मानस या पंचायत उस बात से से सहमत नहीं है, तो उसका सम्मान करते हुए अपनी बात वापस ले लेनी चाहिए।
  • यह आपका नैतिक व संवैधानिक कर्तव्य है कि ग्राम सभा के सभी निर्णय सहमति से सुनिश्चित करायें।
  • गाँव समाज एक दबाब समूह के रूप में अपनी भूमिका देख सकता है, यह कार्य गाँव के लोगों की परस्पर समझ, प्रेम व सहयोग से ही संभव होगा।इसके लिए अनुकूल परिस्थितियाँ तैयार करना आप और हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है।
  • गाँव के विकास के लिए पंचायतीराज अधिनियमों के अंतर्गत जो कार्य ग्राम सभा को निर्धारित किया गया है, उसमें सभी लोग अपनी जिम्मेवारी समझें सभी लोग एक साथ बैठें ग्राम विकास की व्यवस्थित योजना बनाएँ और उसमें सामुहिक जिम्मेदारी तय करें एवं उसका निर्वहन करना अपना सामाजिक दायित्व समझें।
  • ग्राम सभा के सभी सदस्यों को सरकारी अनुदान के अलावा स्थानीय स्तर एवं स्थानीय संसाधनों के आधार पर योजना तैयार करना चाहिए और उसे पूरा कराने तक सबकी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहिए।यह प्रक्रिया लगातार चलती रहे इसके लिए ग्राम पंचायत स्तर पर लगातार इस मुद्दे पर आपस में चर्चा करते रहना चाहिए।
  • ग्राम सभा की दो बैठकों के अलावा जरूरत के आधार पर और बैठकों की अनिवार्यता पर जोर देना चाहिए।
  • पंचायत द्वारा जो भी रचनात्मक कार्य किया जाता है, उसका पूर्ण समर्थन देना चाहिए।
  • पंचायत के सभी कार्यों पर नजर रखें और उसे रचनात्मक एवं सकारात्मक तरीके से ग्राम सभा के बैठक में प्रस्तुत करें।
  • भविष्य में सभी पदों के लिए चुनाव सर्वसहमति से हो, इसके लिए प्रयास करना चाहिए।

बापू के सपनों का गाँव

गांधीजी पंचायत राज के बारे में क्या कहते है?

गाँधी जी देश के गांवों और वहां रहने वालों के बारे में लगातार लिखते और सोचते रहें है, गाँधी जी के विचार आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने वे आजादी के पहले थे।वे मानते थे कि जब तक भारत के लाखों गाँव स्वतंत्र, ताकतवार और स्वावलंबी नहीं बनेगें तब तक भारत का भविष्य चमकदार नहीं हो सकता।

पंचायतीराज और ग्राम स्वराज्य के बारे में उनके विचार बहुत साफ थे। वे कहते थे कि ग्राम पंचायत में जान फूंककर हमारे देश में ग्राम स्वराज कायम किया जाए। वे यह भी बताते हैं कि गाँव कैसा होना चाहिए और वहाँ की सफाई, स्वास्थ्य, शिक्षा, धंधे का रूप क्या होना चाहिए। मानव विकास की उनकी समझ इंसान की जिंदगी के सभी पहलुओं को छूती है। धर्म और जातीय भेदभाव से उन्हें सख्त नफरत थी। यहाँ हम गांधीजी के उन विचारों को उन्हीं के शब्दों में दे रहे हैं –

पंचायत राज और ग्राम स्वराज्य

लोगों की आजादी होनी चाहिए।उन पर हुकूमत करने वाले हों, ऐसी आजादी नहीं।आजादी नीचे से होनी चाहिए।हरेक गाँव में पंचायत का राज होगा। उसके पास पूरी सत्ता और ताकत होगी। इसका मतलब यह है कि हरेक गाँव को अपने पांव पर खड़े होना होगा- अपनी जरूरतें खुद पूरी कर लेनी होगी, ताकि वह अपना सारा कारोबार खुद चला सके। यहाँ तक कि वह सारी दुनिया के खिलाफ अपनी हिफाजत खुद कर सके इस तरह आखिर हमारी बुनियादी व्यक्ति पर होगी। जिस समाज कर हर आदमी यह जनता है कि उसे क्या चाहिए और इससे भी बढ़कर जिसमें यह माना जाता है कि बराबरी कि मेहनत करके भी दूसरों को जो चीज नहीं मिलती है, वह किसी को खुद भी नहीं लेनी चाहिए वह समाज जरूर बहुत ऊँचे दर्जे की सभ्यता वाला होगा।

ऐसे समाज में अनगिनत गाँव होंगे।उसका फैलाव एक के ऊपर एक के ढंग पर मीनार की शक्ल में नहीं, बल्कि लहरों की तरह एक के बाद एक की शक्ल में होगा।मीनार में ऊपर की तंग छोटी को नीचे के चौड़े पाये पर खड़ा होना पड़ता है।मेरे बताए समाज में तो समुद्र की लहरों की तरह जिन्दगी एक के बाद एक घेरे की शक्ल में होगी और व्यक्ति उसका मध्यबिंदू होगा।यह व्यक्ति हमेशा अपने गाँव के खातिर मिटने को तैयार रहेगा।गाँव अपने इर्द-गिर्द के गांवों के लिए मिटने को तैयार होगा।हालाँकि इस तस्वीर को पूरे तरह बनाना मुमकिन नहीं है, तो भी इस सही तस्वीर को पाना या इस तरफ पहूँचना हिन्दुस्तान की जिन्दगी का मकसद होना चाहिए। जिस चीज को हम चाहते हैं उसकी सही – सही तस्वीर हमारे सामने होनी चाहिए। तभी हम उससे मिलती – जुलती कोई बीज पाने की उम्मीद रख सकते हैं।अगर हिन्दुस्तान के हरेक गाँव में कभी पंचायती राज कायम हुआ, तो मैं अपनी इस तस्वीर की सच्चाई कर सकूंगा, जिसमें सबसे पहला और आखिरी दोनों बराबर होंगे या यों कहिए कि न कोई पहला होगा, न कोई आखिरी।

इस तस्वीर में हरेक धर्म की अपनी पूरी और बराबरी की जगह होगी। हम सब एक ही आलीशान पेड़ के पत्ते हैं। इस पेड़ की जड़ हिलायी नहीं जा सकती, क्योंकि वह पाताल तक पहुंची हुई है। जबर्दस्त से जबर्दस्त आंधी भी उसे हिला नहीं सकती।

ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि वह वह एक ऐसा पूर्ण प्रजातंत्र होगा, जिसमें अपनी अहम जरूरतों के लिए गाँव अपने पड़ोसियों पर भी निर्भर नहीं करेगा, और फिर भी बहुतेरी दूसरी जरूरतों के लिए जिनमें दूसरों का सहयोग अनिवर्य होगा- वह परस्पर सहयोग से कम लेगा।इस तरह हरेक गाँव का पहला काम यह होगा कि वह अपनी जरूरत का तमाम अनाज और कपड़े के लिए पूरी कपास खुद पैदा कर ले। उसके पास इतनी फाजिल जमीन होने चाहिए, जिसमें ढोर (पशु) चार सकें और गाँव के बड़ों और बच्चों के लिए मनबहलाव के साधन और खेलकूद के मैदान बैगरह का बंदोबस्त हो सके। इसके बाद जो जमीन बचेगी उसमें वह ऐसी उपयोगी फसलें बोयेगा, जिन्हें बेचकर वह आर्थिक लाभ उठा सके।यों वह गांजा, तंबाकु अफीम बैगरह की खेती से बचाएगी। हरेक गाँव में गाँव की अपनी एक नाटकशाला, पाठशाला, और सभी भवन रहेगा।

पानी के लिए गाँव अपना इंतजाम होगा जिससे गाँव के सभी लोगों को शुद्ध पानी मिला करेगा। कुओं और तालाबों पर गाँव का पूरा नियंत्रण रखकर यह काम किया जा सकता है।बुनियादी तालीम के आखिरी दर्जे तक शिक्षा सबके लिए लाजिमी होगी।जहाँ तक हो सके गाँव के सारे काम सहयोग के आधार पर किए जायेंगे। जात - पात और छूआ - छूत जैसे दोष आज हमारे समाज के लिए हर साल गांव के पांच आदमियों की एक पंचायत चुनी जाएगी। इसके लिए एक खास निर्धारित योग्यता वाले गाँव के बालिग स्त्री – पुरूषों को अधिकार होगा कि वे नियमानुसार अपने पांच चुन लें। इन पंचातयों को सब प्रकार की आवश्यक सत्ता और अधिकार रहेंगे।इस ग्राम शासन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आधार रखने वाला सम्पूर्ण प्रजातंत्र काम करेगा।व्यक्ति ही अपनी इस सरकार का निर्माता भी हो।

गाँव कैसा हो?

गाँव की रचना में भी नियम होना चाहिए। गाँव की गलियां चाहे जैसी टेढ़ी – मेढ़ी, संकरी – चौड़ी, ऊबड़ - खाबड़ होने के बजाए सब तरह से अच्छा होना चाहिए, और हिन्दुस्तान में जहाँ करोड़ों आदमी नंगे पैर चलने वाले हैं, वहाँ रास्ते इतने अधिक साफ होने चाहिए कि उन पर चलते हुए तो क्या, जमीन पर सोने में भी किसी तरह की हिचक आदमी के मन में न हो। गलियां पक्की और पानी के निकास के लिए नालीदार होनी चाहिए। मेरा दृढ़ मत है कि ऐसी छोटी आबादी वाले गाँव में अच्छी व्यवस्था करना बहुत आसान है। सिर्फ जरूरत है शुद्धभाव से काम करने वाले स्त्री – पुरूष की इसमें धन की भी जरूरत नहीं। जो कुछ जरूरत है, सिर्फ सदाचार की। किसान की तरक्की का यह आसान रास्ता है।

देहात वालों में वह कला और कारीगरी आनी चाहिए जिससे बाहर उनकी पैदा की हुई चीजों की कीमत की जा सके।जब गांवों का पूरा- पूरा विकास हो जायेगा, तो देहातियों की बुद्धि और आत्मा को संतुष्ट करने वाली कला कारीगरी के धनी स्त्री-पुरूषों की गांवों में कमी नहीं रहेगी। गाँव में कवि होंगे, चित्रकार होंगे, शिल्पी होंगे, भाषा के पंडित और शोध करने होगी जो गाँव में न मिले। आज हमारे देहात उजड़े हुए। कूड़े – कचरे के ढेर बने हुए हैं, कल वे सुन्दर बगीचे होंगे और ग्रामवासियों को ठगना या उनका शोषण करना नामुमकिन हो जाएगा।

इस तरह के गांवों की पुनर्रचना का काम आज से ही शुरू हो जाना चाहिए। गांवों की पुनर्रचना का काम कामचलाऊ नहीं, बल्कि स्थायी होना चाहिए। उद्योग, हुनर तंदुरूस्ती शिक्षा इन चारों का सुन्दर समन्वय करना चाहिए इन सबके मेल से माँ के पेट में आने के समय से लेकर बुढ़ापे तक का एक खूबसूरत फूल तैयार होता है।

सफाई और स्वास्थय

किसी भी गाँव में चले जाइये, आपको गंदगी मिलेगी। अगर गाँव की सफाई हो जाए तो बहुतेरे रोग हों ही नहीं।चिकित्सक जानते हैं कि रोग का सबसे बढ़िया इलाज हो यह है कि उसे होने ही न दिया जाए। बदहजमी न होने दें। तो पेचिश बंद हो जाएगी। गाँव की हवा साफ रखें तो बुखार न आएगा। गाँव को पानी साफ रखने और रोज साफ पानी से नहाने से फोड़े न होंगे।

बहुतेरे गांवों में एक ही तालाब होता है और पोखरा तो प्राय: प्रत्येक गाँव में होता है, जिसमें पशु-पक्षी पानी पीते हैं, आदमी नहाते – धोते हैं, बर्तन मांजते हैं, कपड़े धोते हैं और वही पानी कहीं- कहीं पीने के काम में भी लाते हैं इसे पानी में जहरीले कीड़े पैदा हो जाते हैं और इस पानी के पानी से हैजा आदि बीमारियाँ बढ़ी जल्दी फैलती हैं।

मेरी राय में जिस जगह शरीर- सफाई, घर सफाई और ग्राम – सफाई हो तथा उचित आहार और योग्य व्यायाम हो, वहाँ कम से कम बीमारी होती है। आप जो पानी पीयें, जो खाना खायें और जिस हवा में साँस ले, वे बिल्कुल साफ होने चाहिए। आप सिर्फ अपनी निजी सफाई से संतोष न करें, बल्कि हवा, पानी और खुराक की जितनी सफाई आप अपने लिए रखें, उतनी ही सफाई का शौक आप अपने आस-पास के वातावरण में भी फैलाए।

शिक्षा

  • पूरी शिक्षा स्वावलंबी होनी चाहिए। यानी, आखिर में पूँजी को छोड़कर अपना सारा खर्च उसे खुद निकालना चाहिए।
  • इसमें आखिरी दर्जे हाथ का पूरा- पूरा उपयोग किया जाएँ। यानी, विद्यार्थी अपने हाथों से कोई न कोई उद्योग – धंधे आखिरी दर्जे तक करें।
  • सारी तालीम विद्यार्थियों की प्रांतीय भाषा द्वारा दी जानी चाहिए।
  • इसमें संप्रदायिक धार्मिक शिक्षा के लिए कोई जगह नहीं होगी। लेकिन बुनियादी नैतिक तालीम के लिए काफी गूंजाइश होगी।
  • यह तालीम, फिर उसे बच्चे लें या बड़े, स्त्रियाँ लें या पुरूष, हर घरों में पहुंचेगी
  • चूंकि इस तालीम को पाने वाले लाखों – करोड़ों विद्यार्थी अपने – आपको सारे हिन्दुस्तान के नागरिक समझेंगे, इसलिए उन्हें एक अंतरप्रांतीय भाषा सीखनी होगी। सारे देश की यह एक भाषा नगरी या उर्दू में लिखी जाने वाली हिन्दुस्तानी ही हो सकती है। इसलिए विद्यार्थियों को दोनों लिपियाँ अच्छी तरह सीखनी होगी।

ग्रामोद्योग

अगर गांवों का नाश होता है तो भारत का भी नाश हो जाएगा। उस हालत में भारत, भारत नहीं रहेगा। दुनिया को उसे संदेश देना है उस संदेश को वह खो देगा।

गांवों में फिर से जन तभी आ सकती है, जब वहां की लूट-घसोट रूक जाएँ। बड़े पैमाने पर माल की पैदावार गांवों की लूट किए लिए जिम्मेदार है। इसलिए हमें इस बात की सबसे ज्यादा कोशिश करनी चाहिए कि गाँव हर बार में स्वावलंबी और स्वयंपूर्ण हो जाएँ। वे अपनी जरूरतें पूरी करने भर के लिए चीजें तैयार करें। ग्रामोद्योग इस इस अंग की अगर अच्छी तरह रक्षा की जाए।तो गाँव के लोग आजकल के उन यंत्रों और औजारों से भी काम ले सकते है जिन्हें वे बना और खरीद सकते हैं। शर्त सिर्फ यहीं है कि दूसरों को लूटने के लिए उनका उपयोग नहीं होना चाहिए।

याद रखें

ग्राम सभा ही वह ताकत है, जिसके सशक्तिकरण से ग्राम पंचायतें अपनी भूमिकाओं का बेहतर ढंग से निर्वहन कर सकती हैं, आपकी जागरूकता से पंचायतें सशक्त होंगी, आपके संगठनात्मक सहयोग से पंचायतें जवाबदेह एवं पारदर्शी होंगी, अत: इस कार्य में आपका सहयोग ही इस व्यवस्था के सशक्तिकरण का पहला मापदंड है।

प्रपत्र -3

(नियम 4 (चार) देखिये)

अधिसूचना

झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001 के अंतर्गत झारखंड ग्राम सभा (गठन, बैठक की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन) नियमावली, 2003 के नियम 4 के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए नीचे दी गई सारणी के भीतर कॉलम 2 में वर्णित क्षेत्र के लिए अलग ग्राम सभा के गठन करते हैं, जो आगामी माह की प्रथम तारीख से अस्तित्व में आयेगी।

सारणी

प्रखंड का नाम

ग्राम पंचायत का नाम

ग्राम सभा का नाम

राजस्व ग्राम

सम्मिलित ग्रामों के नाम

ग्राम की जनसंख्या

मुख्यालय

1

2

3

4

5

6

7

स्थान :

जारी करने की तारीख

जिला दंडाधिकारी/उपयुक्त

झारखंड पंचायत उपबंध अधिनियम 1996, के अंतर्गत झारखंड के अनुसूचित प्रखंड

झारखंड के 24 जिले पूर्ण रूप से एवं 3 जिले आंशिक रूप से जिनमें रूप से जिनमें से कुल 134 प्रखंड एवं 2071 पंचायत संविधान की 5वीं अनुसूची के अनुसार अनुसूचित घोषित हैं।

क्र.

जिला का नाम

कुल प्रखंडो की संख्या

कुल ग्राम पंचायतों की संख्या

1

राँची

18

303

2

खूँटी

6

86

3

गुमला

12

159

4

लोहरदगा

7

66

5

सिमडेगा

10

94

6

प. सिंहभूम

18

216

7

पू. सिंहभूम

11

231

8

सरायकेला खरसावाँ

9

136

9

दुमका

10

206

10

जामताड़ा

6

118

11

पाकुड़

6

128

12

लातेहार

9

115

13

गढ़वा (भंडरिया)

1

10

14

गोड्डा (बीआरीजोर, एवं सुन्दरपहाड़ी)

2

35

15

साहेबगंज

9

166

16

पलामु(सिर्फ सतबरवा प्रखंड के रबदा और बकोरिया पंचायत)

0

2

 

कुल

134

2071

 

स्रोत: राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (सर्ड) , झारखंड सरकार

अंतिम सुधारित : 2/21/2020



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