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अपशिष्ट का प्रबंधन

अपशिष्ट का प्रबंधन

खुले में शौच करने की प्रथा के उन्मूलन के पश्चात ग्राम पंचायत की स्वच्छता संबंधी सर्वोच्चर प्राथमिकताओं में अगली प्राथमिकता नियमित रूप से उत्पन्न होने वाली अपशिष्ट सामग्री का सुरक्षित एवं कारगर ढंग से निस्तारण करना होना चाहिए। अपशिष्ट सामग्री के असुरक्षित एवं अनुचित निस्तारण से कई तरह की बीमारियाँ फैलती हैं ।

अपशिष्ट का सुरक्षित निस्तारण क्यों महत्वपूर्ण है?

यदि अपशिष्ट समुचित रूप से सड़ता नहीं है तथा उसे रिसाइकिल (पुर्नचक्रित) नहीं किया जाता है, तो अपशिष्ट का संचय धीरे-धीरे होता रहता है व:

  • यह ऐसा स्थान बन जाता है, जहाँ कीटाणु मक्खियाँ आदि पैदा होते हैं,
  • गंध/दुर्गध पैदा होती हैं,
  • गंदा एवं खराब दिखता हैं,
  • पेय जल की गुणवत्ता को प्रभावित करता हैं,
  • यह आहार ढूंढने वाले मवेशियों एवं अन्य घरेलू पशुओं के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है ।

ग्राम पंचायत के स्तर पर अपशिष्ट प्रबंधन के उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  1. अपशिष्ट के सुरक्षित निस्तारण के माध्यम से स्वास्थ्य की रक्षा करना ।
  2. प्रदूषण को कम करना ।
  3. अपशिष्ट को न्यूनतम करने की आवश्यकता पर जागरूकता पैदा करना ।

सहायक होने का सिद्धांत

अपशिष्ट का प्रबंधन यथासंभव उसी स्थान से शुरू होना चाहिए जहाँ से यह उत्पन्न होता है अर्थात घर/संस्था/बाजार से ।

उपरोक्त रणनीति (बॉक्स देखें) के प्रयोग से सुनिश्चत करें की अपशिष्ट जहाँ उत्पन्न होता है वहीं उसका शोधन करें ।

अपशिष्ट को निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  1. ठोस अपशिष्ट
  2. तरल अपशिष्ट

ठोस अपशिष्ट

ठोस अपशिष्ट के स्वरूप के आधार पर उनको जैविक रूप से क्षरणशील तथा गैर क्षरणशील के रूप में वर्गीकृत किया जाता है ।

अपशिष्ट या संसाधन

अपशिष्ट को बेकार की सामग्री की बजाए संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए ।इसके लिए रणनीति इस प्रकार है:

  1. कम करना
  2. इंकार करना
  3. रिसाइकिल करना

जैविक दृष्टि से क्षरणशील ठोस अपशिष्ट

जैविक दृष्टि से गैर क्षरणशील ठोस अपशिष्ट

ठोस अपशिष्टि जो ऑक्सीजन की मौजूदगी में या ऑक्सीजन के बगैर कुछ समय में जैविक प्रक्रिया के माध्यम से पूरी तरह सड़ जाता है। इसके उदाहरणों में रसोई के अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट, बागवानी के अपशिष्ट, गोबर आदि शामिल हैं ।

ठोस अपशिष्टि जो जैविक प्रक्रिया के माध्यम से बिल्कुल भी नहीं सड़ पाता है उसे जैविक दृष्टि से गैर क्षरणशील अपशिष्ट कहा जाता है ।

 

जैविक दृष्टि से गैर क्षरणशील अपशिष्ट दो प्रकार के होते है:

 

रिसाइकिल की योग्य (जिनका पुन: प्रयोग हो सकता है) जैसे कि प्लास्टिक, पेपर, मैटल आदि ।

 

रिसाइकिल के अयोग्य अपशिष्ट जैसे कि थर्मोकोल, टेट्रा पैक्स, ग्लास आदि ।

 

ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए तकनीकी विकल्पों का चयन:

उपयुक्त तकनीकी विकल्प के बारे में निर्णय लेते समय ग्राम पंचायत को निम्नलिखित बातों पर विचार करना चाहिए:

  • अपशिष्ट का प्रकार जो इस समय ग्राम पंचायत में उत्पन्न हो रहा है ।
  • उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट की मात्रा एवं बारंबारता ।
  • क्या तकनीकी विकल्प सरल है?
  • तकनीकी विकल्प की लागत ।
  • कुशल कार्मिकों, भूमि की उपलब्धता, प्रचालन एवं अनुरक्षण की आवश्यकता आदि ।

ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों द्वारा जो अपशिष्ट उत्पन्न किए जाते हैं उनमें से अधिकांश जैविक होते हैं । इसलिए जैविक अपशिष्ट के लिए सबसे उपयुक्त, संपोषणीय एवं पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल विधि यह है कि रिसाइकिल करके उनसे कंपोस्ट खाद तैयार की जाए और उनका पुन: प्रयोग किया जाए । इससे अंतत: कंपोस्ट खाद बनती है ।

कंपोस्टिंग: कंपोस्टिंग का अभिप्राय जैविक पदार्थ के सड़ने वाले सूक्ष्म जीवों को शामिल करके एक नियंत्रित प्रक्रिया से है ।

  • कंपोस्टिंग सर्वाधिक उपयोग होने वाला तकनीकी विकल्प है । यह सदियों पुरानी सरल प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से शीघ्रता से ‘प्लांट फ़ूड’ का उत्पादन होता है ।
  • कोई अतिरिक्त रसायन मिलाने की जरूरत नहीं होती है ।
  • कंपोस्टिंग से अत्यधिक मात्रा में खरपतवार उत्पन्न नहीं होती है जैसा कि खेत में खाद बनाने की अन्य साधारण विधियों में होता है ।
  • मांस, हड्डी तथा तैलीय अपशिष्ट से परहेज करना चाहिए क्योंकि वे कीटाणुओं को आकर्षित करते हैं ।
  • किसी विशिष्ट संरचना का निर्माण करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि घर, आंगन, खेत के किसी कोने में कंपोस्टिंग का निर्माण किया जा सकता है । परन्तु यदि कंपोस्ट पिट का निर्माण संभव हो, तो यह उसके ताप को बनाए रखेगा जो कंपोस्टिंग की प्रक्रिया को गति देगी । कंपोस्टिंग दो प्रकार की होती है अर्थात वायुजीवी एवं गैर वायुजीवी ।

वर्मी कंपोस्टिंग: वर्मी कंपोस्टिंग दूसरे अन्य प्रकार की कंपोस्टिंग है, जिसमें प्राकृतिक की बजाए जैविक सामग्री को विखंडित करने के लिए कीड़ों की विभिन्न प्रजातियों का प्रयोग किया जता है। वर्मी कंपोस्टिंग आमतौर पर वर्मी टैंक में की जाती है ।

पहाड़ी एवं कम तापमान वाले क्षेत्रों में यह उपयुक्त नहीं है जहाँ वर्मी कंपोस्टिंग की प्रक्रिया कठिन होती है । ऐसे मामलों में थर्मो फिलिक कंपोस्टिंग की सिफारिश की जाती है ।

टिप्पणी: कंपोस्टिंग की उपर्युक्त विधियां सामुदायिक स्तर पर अपशिष्ट निस्तारण के मामले में भी लागू हैं । इसमें केवल एक बड़े क्षेत्र तथा बड़ी कंपोस्ट यूनिटों की जरूरत होती है ।

कंपोस्टिंग के लाभ

  • जैविक अपशिष्ट से समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जैसे कि गंध तथा यह मक्खियों आदि को आकर्षित करता है ।कंपोस्टिंग से जो गैस निकलती है, उससे ये समस्याएं दूर हो जाती है ।
  • घर पर कंपोस्ट के निर्माण से जैविक खेती को प्रोत्साहन मिलेगा तथा रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता घटेगी ।
  • परिवारिक कम्पोस्टिंग से ऐसे अपशिष्ट की मात्रा घटेगी जिसका संग्रहण एवं प्रबंधन करने की जरूरत होती है और इस प्रकार ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की लागत कम होगी ।
  • जिन क्षेत्रों में अपशिष्ट संग्रहण एवं प्रबंधन के सिस्टम कारगर नहीं हैं उन क्षेत्रों में पारिवारिक कंपोस्टिंग से अव्यवस्थित अपशिष्ट निस्तारण घटेगा और इससे संबंधित प्रतिकूल पर्यावर्णीय प्रभाव कम होंगे ।
  • पारिवारिक कंपोस्टिंग से रिसाइकिलंग में सुविधा प्राप्त होती है ।
  • परिवार से स्तर पर जैविक अपशिष्ट को अलग करने तथा कंपोस्टिंग करने से यह सुनिश्चित होता है कि शेष अपशिष्ट साफ़ रहता है तथा उनको रिसाइकिल करना आसान होता है ।
  • पारिवारिक कम्पोस्टिंग एक सरल पद्धति है जिसे न्यूनतम संसाधनों से घर पर कोई भी अपना सकता है ।
  • पारिवारिक कंपोस्टिंग घर पर छोटे बच्चों के लिए शैक्षिक उपकरण हो सकती है ।

बायो गैस प्लांट

बायो गैस प्लांट मवेशियों के अपशिष्ट के प्रबंधन पर आधारित है, जिसमें बायो गैस का निर्माण शामिल होता है । इसमें मुख्य रूप से गैर वायुजीवी प्रक्रिया के माध्यम से मिथेन एवं कार्बन डाईऑक्साइड का निर्माण होता है । गोबर का प्रबंधन करने के लिए यह बहुत उपयोगी है ।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन – एक अच्छी प्रथा:

सूरत जिले के करचेलिया ग्राम पंचायत में विभिन्न स्कीमों से धन इक्ट्ठा किया गया तथा

  • प्रत्येक परिवार को एक डस्टबिन दी गई,
  • प्रत्येक परिवार से अपशिष्ट के संग्रहण के लिए तिपहिया वाहन खरीदे गए,
  • अपशिष्ट को अलग करने तथा रिसाइकिल करने के लिए शेड का निर्माण किया गया,
  • रिसाइकिल करने के लिए प्लास्टिक एवं जैविक दृष्टि से गैर क्षरणशील अन्य अपशिष्ट को पास के कारखाने में भेजा गया, और
  • ग्राम पंचायत ने इस अपशिष्ट से तैयार उर्वरक की बिक्री से 46,600 रुपए की वार्षिक आय प्राप्त की ।

अजैविक अपशिष्ट

अजैविक अपशिष्ट के मामले में यथासंभव सीमा तक इसके उत्पादन को कम करना जरूरी है । अजैविक अपशिष्ट को ठीक ढंग से अलग करना चाहिए तथा स्क्रैप डीलर या रिसाइकिलंग एजेंसियों के माध्यम से इसका निस्तारण किया जाना चाहिए ।

सामुदायिक स्तर पर ठोस अपशिष्ट निस्तारण में शामिल चरण

  • परिवार के स्तर पर क्षरणशील एवं गैर क्षरणशील अपशिष्ट को अलग करना
  • घर-घर संग्रहण/ परिवारों द्वारा कूड़ेदान (डस्टबिन) में जमा करना
  • ग्राम पंचायत के डंपिंग वार्ड तक पहुंचाना
  • चयनित तकनीकी विधि से निस्तारण

नोट: मनरेगा के तहत प्रस्तावित या पूर्ण निर्मल ग्राम इस शीर्ष के तहत प्राप्त करने के लिए पात्र हैं । ग्राम पंचायत के समुदाय से योगदान प्राप्त करने तथा सुविधा शुल्क वसूलने की भी जरूरत हो सकती है ।

300 परिवार वाली ग्राम पंचायत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए अनुमानित लागत की गणना

विवरण

अनुमान व्यय (रुपए में)

सिविल एवं सामग्री

कंपोस्ट पिट तैयार करना

50,000

 

रिक्शा/वैन (3) खरीदना

30,000

 

कंटेनर (600)

30,000

 

सफाई कर्मचारियों के लिए वर्दी

20,000

 

अलग करने के लिए शेड का निर्माण

4,00,000

 

औजार एवं उपकरण

10,000

 

कुल

5,70,000

मानव संसाधन

पर्यवेक्षक

6,000

 

एस एच जी कार्यकर्ता (10)

30,000

 

कुल

36,000

यह मानते हुए कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए कुल आरंभिक अनुमानित लागत निर्मल भारत अभियान की निधि से पूरी हो जाएगी, उपर्युक्त उदाहरण में मासिक आवर्ती खर्च प्रति परिवार 120 रुपए बैठता है, जिसे ग्राम पंचायत द्वारा या समुदाय द्वारा पूरा किया जा सकता है ।

 

तरल अपशिष्ट

तरल अपशिष्ट को आमतौर पर ग्रे पानी या काला पानी के रूप में वर्गीकृत किया जता है ।

  1. ग्रे पानी (ज्यादातर रसोई, उद्यान, बाथरूम, होटल, सब्जी मंदी आदि से) ।
  2. काला पानी (जिसमें शौचालय के रोगाणु होते हैं) ।

अनुमान है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले समुदाय को आपूर्ति किये गये पानी का लगभग 75 से 80 प्रतिशत ग्रे पानी बनता है । शोधन की विधि ऐसी होनी चाहिए कि अपशिष्ट पानी रोगाणु रहित हो जाए, कीटाणुओं को पैदा न होने दे और साथ ही उसे रिसाइकिल किया जाए अथवा पुन: प्रयोग किया जाए ।

ग्रे पानी प्रबंधन

ग्रामीण परिवेश में ग्रे पानी को मोटे तौर पर निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  1. घरेलू ग्रे पानी
  2. सामुदायिक ग्रे पानी

इसलिए ग्रे पानी प्रबंधन सिस्टम दो स्तरों पर स्थापित किया जा सकता है अर्थात

  1. घरेलू स्तर
  2. सामुदायिक स्तर

गाँवों में, ज्यादातर ग्रे पानी घरेलू स्तर पर उत्पन्न होता है । जब यह पानी घर से निकल जाता है, तो यह सामुदायिक ग्रे पानी बन जाता है । सामुदायिक स्तर पर ग्रे पानी का प्रबंधन अधिक जटिल कार्य है ।

घरेलू ग्रे पानी प्रबंधन

प्रत्येक परिवार द्वारा स्रोत पर ग्रे पानी का निस्तारण अधिक उपयुक्त एवं किफायती प्रस्ताव है । ऐसा तकनीक होना चाहिए जहाँ शून्य या न्यूनतम सामुदायिक अपशिष्ट हो सके । इसके निस्तारण के लिए परिवार के आसपास क्षेत्र/प्रांगण/भूमि उपलब्ध होने की जरूरत होगी ।

घरेलू ग्रे पानी निस्तारण का कार्य निम्नलिखित तीन विधियों से किया जा सकता है ।

  1. किचन गार्डन
  2. लीच पिट और
  3. सोक पिट

किचन गार्डन

  • घरेलू स्तर पर किचन गार्डन सर्वाधिक मनपसंद विकल्प है क्योंकि गार्डन से परिवार, खाने योग्य कुछ सामग्रियां जैसे कि फल या सब्जियाँ प्राप्त करता है । तथापि, यह वहीं संभव होगा जहाँ घर के पास खुली जमीन उपलब्ध हो ।
  • यदि किचन गार्डन में बहाने से पूर्व ग्रे जल को साफ़ किया जाता है, तो गार्डन अच्छी तरह से विकास करता है । बहुत सरल विधि जैसे कि सिल्ट और ग्रीस ट्रैप के माध्यम से पानी को गुजार कर यह कार्य किया जा सकता है । अपशिष्ट जल के प्रवाह से सिल्ट, ग्रीस तथा अन्य ठोस सामग्री को अलग करने की जरूरत होती है । इस प्रयोजन के लिए जरूरत के अनुसार इंटर सेप्टर टैंक या चेंबर निर्मित किए जाते है ।
  • गार्डन की सिंचाई दो तरीकों से की जा सकती है । फिल्टर वाटर भूमिगत पीवीसी पाइपों के माध्यम से सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचेगा । इस विधि में पाइप एवं फिल्टर बेड के अनुरक्षण की जरूरत होगी ।
  • दूसरी विधि “सर्फेस सिंचाई” की है । यह सरल और सस्ती है तथा इसमें कम रखरखाव की जरूरत होती है । परन्तु उपज कम हो सकती है और अतिरिक्त पानी बाहर जाएगा ।

सोक पिट

  • सोक पिट ग्रे जल के प्रबंधन के लिए बहुत सरल एवं सस्ता विकल्प है ।
  • घरेलू प्रयोजनों के लिए, तकरीबन 3 फीट लंबाई, 3 फीट चौड़ाई तथा 3 फीट की गहराई में मिट्टी में एक घनाकार पिट खोदा जाता है ।
  • पिट वाल की सतह तथा पिट का बॉटम सर्फेस पानी सोखने के लिए मिट्टी का अधिक सर्फेस एरिया प्रदान करता है ।
  • पिट को स्थिरता प्रदान करने के लिए तथा आने वाले पानी को उपलब्ध सर्फेस एरिया में वितरित करने के लिए

-    पिट को निर्धारित आकार के पत्थर के टुकड़ों से भर दिया जाता है । शीर्ष पर पिट को सहायक सामग्री जैसे कि पेड़ की टहनी या बोरी अदि से ढक दिया जाता है तथा उसके ऊपर रेत बिछा दी जाती है ताकि अंदर आने वाला पानी खुला न रहे ।

-    मध्य में, एक फिल्टर युक्त इनलेट, घास से भरा छिद्रित मटका रखा जाता है, जिसके माध्यम से पानी पिट में जाता है । पत्थर के टुकड़े भी पानी सोखने वाली सभी सतह में पानी का वितरण करने में अधिक दक्ष होते हैं ।

  • एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ईट का साधारण टुकड़ा या कंकड़ आदि का प्रयोग भराव की सामग्री के रूप में नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि भीगने पर ईट के टुकड़े टूटने लगते है । आगे चलकर वे पिट की साइडों पर मिट्टी की सतह की ओर पानी के प्रवाह को अवरुद्ध कर देते हैं ।

लीच पिट

यदि खुली जमीन की उपलब्धता रुकावट हो तथा ग्रे जल की मात्रा अधिक हो, तो घरेलू लीच पिट उपयुक्त विकल्प हो सकता है । इसके लिए परिवार को निर्माण संबंधी कुछ लागत वहन करनी पड़ेगी । लीच पिट ईट से निर्मित एक गोलाकार पिट है, जिसे मधुमक्खी के छत्ते की तरह बनाया जाता है, जिसका व्यास तकरीबन 3 फीट होता है । पिट के लिए एक समुचित इंसेक्ट प्रूफ ढक्कन होना चाहिए । वाटर सील ट्रैप के माध्यम से पिट में पानी जाना चाहिए ताकि कीड़े आ जा न सकें और मच्छर पैदा न हों ।

सामुदायिक ग्रे पानी प्रबंधन

बहुत घनी बस्तियों में, जहाँ कभी-कभी घरों की दीवारें एक दूसरे से सटी होती हैं, घरेलू स्तर पर ग्रे पानी का प्रबंधन करना संभव नहीं हो सकता है । ऐसी स्थिति में घरेलू ग्रे पानी घर से बाहर जाता है । इसका परिणाम यह होता है कि सामुदायिक ग्रे पानी का संचय हो सकता है । इसका संग्रहण करना होगा, नाली बनाकर खुले स्थान में या गाँव के बाहर शोधन के लिए इसे पहुंचाना होगा । ऐसे ग्रे पानी के प्रबंधन के लिए शोधन के अनेक विकल्पों का प्रयोग किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक स्थानों जैसे कि वाटर स्टैंड पोस्ट, हैंड पंप, सार्वजनिक कुआं आदि में ओवर फ्लो से ग्रे पानी उत्पन्न होता है । यह ग्रे पानी आमतौर पर अधिक साफ़ होता है परन्तु इसका भी समुचित ढंग से प्रबंधन करने की जरूरत होती है । उपयुक्त तकनीकी विकल्प अपनाकर साइड पर ही ऐसे पानी का प्रबंधन किया जा सकता है ।

सामुदायिक ग्रे पानी-साइड पर प्रबंधन

जैसा कि ऊपर बताया गया है, स्टैंड पोस्ट, हैंड पंप आदि से उत्पन्न ग्रे पानी के साइड पर प्रबंधन के लिए निम्नलिखित विकल्पों का प्रयोग किया जा सकता है:

  1. इंटरसेप्टिंग सिल्ट चेंबर के साथ प्लांटेशन
  2. सामुदायिक लीच पिट
  3. पानी सोखने के लिए कोई सिस्टेम

ये विधियां घरेलू ग्रे जल निस्तारण के लिए अपनाई गई विधियों से काफी मिलती-जुलती हैं परन्तु इसमें बड़े क्षेत्र में बड़े पिट का निर्माण किया जाता है ।

रूट जोन सिस्टम: साइड पर सामुदायिक ग्रे पानी के प्रबंधन की यह एक अन्य विधि है । परिवारों से सीमित मात्रा में सामुदायिक ग्रे पानी के लिए भी यह सिस्टम उपयोगी हो सकता है। यहाँ एक तरह का सेडिमेंटेशन सह फिल्टर बेड का निर्माण किया जाता है, जिसके शीर्ष पर नरकुल आदि जैसे पौधे लगाए जाते हैं । नरकुल की जड़ों के माध्यम से ऑक्सीजन प्रदान की जाती है, जो प्रदुषण फैलाने वाले तत्वों का भी ध्यान रखता है । इस सिस्टम से पानी का बाहर निकलना अच्छी तरह स्थिर होता है तथा रोगाणु रहित होता है । बागवानी आदि के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है ।

सामुदायिक ग्रे पानी-साइड के बाहर प्रबंधन

बहुत भीड़-भाड़ एवं सघन बस्तियों में साइट से बाहर प्रबंधन के विकल्पों पर विचार किया जाता है । आमतौर पर एक उपयुक्त परिवहन सिस्टम की व्यवस्था करके इस सामुदायिक ग्रे पानी को गाँव के बाहर पहुंचाया जाता है, जहाँ अंतिम रूप से शोधन सिस्टम स्थापित किया जा सकता है। ऐसे शोधन के लिए सबसे उपयुक्त सिस्टम अपशिष्ट को स्थिर करने के लिए तालाब का निर्माण करना चाहिए ।

ग्राम पंचायत में तरल अपशिष्ट प्रबंधन की अनुमानित लागत की गणना

  1. प्रत्येक परिवार में सोक पिट: अनुमान है कि उल्लिखित सोक पिट की लागत 600 रुपए होगी ।
  2. 300 परिवारों की आबादी के लिए स्थिरीकरण तालाब ।
  • लगभग 900 वर्गमीटर जमीन की जरूरत होगी ।
  • 1600 घनमीटर में मिट्टी की खुदाई करने की जरूरत हो सकती है ।
  • इस कार्य की लागत लगभग 80,000 रुपए हो सकती है ।
  • इस प्रकार प्रति परिवार लागत 266 रुपए होगी ।
  1. 300 परिवार समुदाय के लिए नाली के निर्माण की अनुमानित लागत 1000 प्रति मीटर की दर से 1 लाख रुपए होगी ।इस प्रकार प्रत्येक परिवार के लिए अनुमानित व्यय 334 रुपए होगा ।
  2. इस प्रकार, तरल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए कुल लागत प्रति परिवार 600+266+334 रुपए होगी ।

अपशिष्ट को स्थिर करने के लिए तालाब का निर्माण

इस सिस्टम की लागत कम आती है तथा इसका रखरखाव आसान है । सिस्टम से बहकर बाहर निकलने वाले स्थिर जल का उपयोग खेती, बागवानी आदि में विभिन्न प्रयोजनों में किया जा सकता है । इस सिस्टम में नाली के माध्यम से जमा किए गए ग्रे पानी को तालाबों के एक सिस्टम में पहुंचाया जाता है, जिसमें स्वाभाविक रूप से ग्रे पानी का शोधन होता है, रोग पैदा करने की इसकी क्षमता घटती है तथा शोधित जल सिंचाई के लिए प्रयोग में लाने के योग्य बन जाता है । इन तालाबों में ग्रे पानी का शोधन प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है, जिसमें हवा से प्राकृतिक ऑक्सीजन का प्रयोग होता है, बैक्टीरिया रोगाणुओं को निगल जाते हैं तथा कई अपनी फोटो सिंथेटिक प्रक्रिया एवं चयापचय की अपनी प्रक्रिया के माध्यम से ग्रे पानी का शोधन करती है ।

ग्राम पंचायत के स्तर पर काले पानी (शौचालय से उत्पन्न) का प्रबंधन

काले पानी में ज्यादातर रोग पैदा करने वाले पदार्थ होते हैं ।सामान्यता ग्रामीण क्षेत्रों में समुचित रूप से डिजाइन किए गए साधारण लीच पिट शौचालय के निर्माण से काले पानी के कारगर निस्तारण में मदद मिलती है ।

जहाँ काला पानी (शौचालय से उत्पन्न) एवं ग्रे पानी (रसोई, स्नान घर इत्यादि से उत्पन्न) आपस में मिल जाते हैं, कम जलापूर्ति वाले ग्रामीण क्षेत्रों में संबंधित ग्राम पंचायत द्वारा एक छोटे बोर सीवर सिस्टम का निर्माण उपयुक्त विकल्प होगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होते हैं:

(क) साइट से बाहर शोधन एवं निस्तारण के लिए तरल भाग को अलग किया जाता है और

(ख) शेष ठोस भाग को समय-समय पर इंटरसेप्टर टैंक से साफ़ करना होता है तथा उसका निस्तारण करना होता है ।

साइट के बाहर सामुदायिक तरल अपशिष्ट के निस्तारण में शामिल चरण

  • प्रत्येक परिवार में सोक पिट का प्रावधान
  • नाली के माध्यम से तालाब तक परिवार के ग्रे जल का परिवहन
  • तालाब सिस्टम जहाँ इसका स्वाभाविक रूप से शोधन होता है
  • सिंचाई के लिए शोधित जल का प्रयोग किया जाता है

ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए कार्य योजना

ग्राम पंचायत के मार्गदर्शन में जी.पी.डब्ल्यू.एस.सी/वी.डब्ल्यू.एस.सी एक ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एस.एल.डब्ल्यू.एम) कार्य योजना तैयार कर सकती है तथा निम्नलिखित 6 चरणों में विभिन्न कार्य संपन्न कर सकती है:

चरण

ग्राम पंचायत में सृजित ठोस एवं तरल अपशिष्ट का आंकलन

 

ठोस एवं तरल अपशिष्ट से निपटने के लिए कार्य योजना बनाने के लिए जी.पी.डब्ल्यू.एस.सी/वी.डब्ल्यू.एस.सी तथा ग्राम पंचायत को ग्राम पंचायत के बारे में उपयुक्त सूचना की जरूरत होती है, जिसे परिवार सर्वेक्षण के माध्यम से संकलित किया जाना चाहिए । मुख्य रूप से ऐसे सर्वेक्षण में निम्नलिखित शामिल होने चाहिए:

 

  • आबादी

 

  • परिवारों की संख्या

 

  • क्षेत्र का मानचित्रण

 

  • दुकानों/मैरिज हॉल/बाजार/घरों/मवेशियों के घरों/संस्थाओं आदि के बारे में ब्यौरा

 

  • अपशिष्ट प्रबंधन के विद्यमान सिस्टम एवं प्रथाएं जैसे कि एकत्रित ठोस एवं तरल अपशिष्ट की अनुमानित मात्रा

 

  • डंप यार्ड तथा कंपोस्ट पिट (यदि कोई पहले से उपलब्ध हो) के लिए ग्राम पंचायत क्षेत्र में उपलब्ध खाली स्थानों का ब्यौरा

 

  • ऐसे गैर सरकारी संगठनों, ग्राम संगठनों, स्वयं सहायता समूहों का ब्यौरा जिनसे सेवाएँ प्रदान करने के लिए अनुरोध किया जा सकता है ।

चरण

समुदाय को एकजुट करना तथा सामुदायिक बैठकें

 

ग्राम स्तरीय बैठकों तथा संचार के अन्य साधनों का प्रयोग करके बड़े पैमाने पर समुदाय को एकजुट करने का कार्य किया जाता है । ग्राम पंचायत समुदाय को सर्वेक्षण के निष्कर्षों के बारे में बताती है तथा उपलब्ध विभिन्न तकनीकी विकल्पों पर चर्चा करती है । सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर ग्राम पंचायत के लिए इन विकल्पों की उपयुक्तता के बारे में निर्णय लिया जा सकता है ।

अपशिष्ट को न्यूनतम करने तथा घर पर अपशिष्ट प्रबंधन की समुचित विधि अपनाने के लिए गाँव के लोगों की जिम्मेदारियों के बारे में शिक्षा अभियान का आयोजन करने के लिए भी इन बैठकों का उपयोग किया जा सकता है ।

चरण

ग्राम पंचायत स्तरीय कार्य योजना तैयार करना

 

सर्वेक्षण के निष्कर्षों तथा सामाजिक समीक्षा के आधार पर ग्राम पंचायत योजना तैयार करती है । एस एल डब्ल्यू एम में निम्नलिखित शामिल होने चाहिए (अधिक जानकारी के लिए कृपया अध्याय-1 में ग्राम पंचायत की सेनेटरी योजना देखें):

 

  • समस्या का विवरण, लक्ष्य एवं समय सीमा निर्धारित करना

 

  • उपयुक्त लागत अनुमान के साथ समुदाय एवं परिवार के स्तर पर ग्राम पंचायत के लिए उपयुक्त तकनीकी विकल्प

 

  • निधियों का स्रोत

 

  • दंड सहित परिवार एवं समुदाय के स्तर पर अपनाए जाने वाले उपाय

 

  • लागत अनुमान के साथ प्रचालन एवं अनुरक्षण योजना

चरण 4

ग्राम पंचायत के स्तर पर ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन की कार्य योजना का कार्यान्वयन तथा तकनीकी विकल्पों को अपनाना

 

  • उपर्युक्त कारकों के आधार पर तकनीकी विकल्प अपनाए जाते हैं

 

  • कार्यान्वयन करने वाली एजेंसी की पहचान की जाती है

 

  • जी पी डब्ल्यू एस सी/ वी डब्ल्यू एस सी एवं ग्राम पंचायत द्वारा निगरानी की जाती है

चरण 5

संसाधन जुटाना

 

एसएलडब्ल्यूएम योजना के अंग के रूप में प्रयोक्ता प्रभार निर्धारित करने के अलावा ग्राम पंचायत निर्मल भारत अभियान, वित्त आयोग अनुदान, विभिन्न केंद्र प्रायोजित स्कीमों जिसमें ग्रामीण विकास मंत्रालय के कार्यक्रम (मनरेगा) शामिल हैं तथा एन जी पी अवार्ड मनी से धन प्राप्त करने का भी प्रयास कर सकते है ।

चरण 6

मॉनीटरिंग एवं मूल्यांकन

 

ग्राम पंचायत ग्राम एवं ग्राम पंचायत स्तरीय बैठकों के माध्यम से तथा आर डब्ल्यू एस एंड एस/पी एच ई डी की सहायता से कार्यक्रम की निरंतर निगरानी करती है ।

 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

मैं कैसे घर पर अपशिष्ट प्रबंधन शुरू कर सकता हूँ?

  • किचन में सूखे एवं गीले अपशिष्ट के लिए अलग-अलग कंटेनर (डब्बे) रखें ।
  • प्लास्टिक को साफ़ एवं सूखा रखें तथा इसे सूखे अपशिष्ट की पेटी में डालें ।
  • सेनेटरी अपशिष्ट के निस्तारण के लिए एक अलग पेपर बैंग रखें ।

मैं ऐसी बस्ती में रहता हूँ जो पंचायत के मुख्यालय से काफी दूर है । पंचायत अपशिष्ट प्रबंधन सिस्टम के शुरू होने में कुछ समय लग सकता है । तब तक मैं क्या कर सकता हूँ?

  • समान सोच वाले लोगों का एक छोटा समूह बनाएं ।
  • अपनी बस्ती में सभी परिवारों को अपशिष्ट को अलग करने के बारे में समझाएं ।
  • अलग स्टोरेज ड्रम (जैविक दृष्टि से क्षरणशील अपशिष्ट के लिए ग्रीन तथा जैविक दृष्टि से गैर क्षरणशील अपशिष्ट के लिए रेड) की व्यवस्था करें ।
  • कलेक्शन सेंटर तक अपशिष्ट को पहुँचाने की व्यवस्था करें ।
  • इस पर जो लागत आती है उसे समुदाय में विभाजित करने का कार्य किया जा सकता है ।

वायुजीवी कंपोस्टिंग का अभिप्राय क्या है?

वायुजीवी कंपोस्टिंग ऑक्सीजन की उपस्थिति में जैविक सामग्रियों को सड़ाने की प्रक्रिया है । इस प्रक्रिया में अनेक हानिकर रोगाणु नष्ट हो जाते हैं । इसमें कुछ पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं । परन्तु वायुजीवी कंपोस्टिंग को अधिक प्रभावी एवं विशेष रूप से कृषि कार्य के लिए उपयोगी माना जाता है ।

गैर वायुजीवी कंपोस्टिंग का अभिप्राय क्या है?

गैर वायुजीवी कंपोस्टिंग ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सड़ाने की प्रक्रिया है । वायुजीवी कंपोस्टिंग की तुलना में इसमें कम कार्य शामिल होता है तथा इस प्रक्रिया में कम पोषक तत्व नष्ट होते हैं । परन्तु इसका नुकसान यह है कि इस प्रक्रिया में अधिक समय लगता है तथा कुछ उत्पादों में तीव्र गंध होती है तथा ये पौधों के लिए हानिकर होते हैं ।

मवेशियों के अपशिष्ट के प्रबंधन का सर्वोत्तम तरीका क्या है?

सामान्य तौर पर, हमारे देश में मवेशियों के अपशिष्ट का प्रबंध तीन तरह से किया जाता है:

  1. मवेशियों के मल-मूत्र का मवेशियों के शेड के पास ही ढेर लगाकर इक्ट्ठा किया जाता है, जहाँ वे कुछ समय बाद खाद में परिवर्तित हो जाते हैं,
  2. मवेशियों के अपशिष्ट से उपले तैयार किए जाते हैं, उन्हें सुखाया जता है तथा खाना पकाने के लिए ईधन के रूप में उनका प्रयोग किया जाता है,
  3. बायो गैस प्लांट के माध्यम से मवेशियों के अपशिष्ट को प्रोसेस किया जाता है,
  4. खाना पकाने के लिए मिथेन गैस का प्रयोग किया जाता है तथा मिथेन गैस निकलने के बाद जो गाद बचती है, उसका प्रयोग खाद के रूप में किया जा सकता है ।

मवेशियों के अपशिष्ट का प्रबंधन करने की सबसे उपयोगी विधि यह है कि इसे बायो गैस प्लांट के माध्यम से घरेलू एवं सामुदायिक दोनों स्तरों पर प्रोसेस किया जाए । सरकार की स्कीम का भी लाभ उठाया जा सकता है । पंचायत नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा की राज्य की संबंधित नोडल एजेंसियों से मार्गदर्शन ले सकती है ।

कंपोस्टिंग एवं एस एल डब्ल्यू वी एम तकनीकों पर अधिक जानकारी के लिए कृपया “ग्रामीण क्षेत्र में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन के तकनीकी विकल्प” देखें । यह पुस्तिका पेय जल और स्वच्छता मंत्रालय, भारत सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध है।

स्रोत: पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार

अंतिम सुधारित : 2/21/2020



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