मनुष्य में अन्य प्रजातियों की अपेक्षा शारीरिक परिपक्वता देर से आती है अथार्त सम्पूर्ण जीवनकाल का 1/5 भाग उसके लिए प्रत्याशित होता है | शिशु के शरीरिक विकास का प्रभाव प्रत्येक्ष एवं परोक्ष रूप से, व्यवहार तथा अन्य प्रकार के विकास पर पड़ता है | शारीरिक विकास निरंतर न होकर चरणों में होता है | इसलिए इसे शरीरिक वृद्धि चक्र के नाम से जाना जाता है |
मानव शरीर में 20 वर्ष की आयु तक निरंतर महत्वपूर्ण परिवर्तन होते रहते हैं| शरीर की लम्बाई और भार में वृद्धि हो जाती है| शरीर की आकार, अनुपात एवं संयोजन में जटिल परिवर्तन आ जाते हैं| शिशु में होने वाली शारीरिक वृद्धि का वर्णन आयु के विभिन्न चरणों के साथ किया जा रहा है |
(i) जन्म से 4 माह की आयु तक
जन्म से माह तक की अवधि में महत्त्वपूर्ण शरीरिक परिवर्तन आ जाते हैं | शरीर का भार दो गुना अथार्त 6-8 पौंड के स्थान पर 12-15 पौंड का हो जाता है | लम्बाई में भी 4 इंच की वृद्धि हो जाती है | त्वचा का स्वरुप परिवर्तित हो जाता है | सिर पर नये बाल आ जाते हैं | जन्म के समय सिर की लम्बाई पूरे शरीर की लम्बाई की एक चौथाई होती है | अतएव सिर की तुलना में शरीर के अन्य अंग अधिक शीघ्रता से बढ़ते हैं | यह परिवर्तन बिल्कुल स्टष्ट होता है की 12 वर्ष की आयु के बच्चे का सिर पूरे शरीर का 1/8 भाग लंबा रह जाता है तथा वयस्क होने तक (25 वर्ष) सम्पूर्ण शरीर का 1/10 हिस्सा रह जाता है |
शिशु के दांतों एवं हड्डियों में भी परिवर्तन होने लगता है | पहला दांत 4 या 5 माह में आ जाता है | कभी – कभी 6-7 माह लग सकते हैं | हड्डियाँ कड़ी होने लगती हैं, फिर भी अभी कार्टिलेज बना रहता है | इसलिए मांसपेशिया ढीली होने के कारण आसानी से खिंच जाती हैं जिससे घाव भी हो सकता है | शिशु का हाथ या पैर यदि शीघ्रता से खिंचा जय तो उसके खिंच जाने मुड़ जाने का भय रहता है ( स्टोन एवं अन्य, 1973) |
(ii) 4-8 माह की आयु तक
इन चार महीनों में शिशु का शरीरिक भार 4-5 पौंड बढ़ जाता है | लम्बाई 3 इंच अधिक हो जाती है | दो – तीन दांत भी आ जाते हैं | बाल लम्बे एवं घने हो जाते हैं पैरों के तलवे अब ही एक दुसरे की ओर नहीं मुड़ते |
(iii) 12 माह की आयु :
1 वर्ष की आयु तक शिशु की लम्बाई में 9-10 इंच की वृद्धि हो जती है और भार तीन गुना हो जाता है | लडकों की तुलना में लड़कियों का वजन कम होता है |
(iv) 18 माह की आयु तक :
18 माह की आयु का शिशु वत्स कहलाता है| इस चरण में यद्यपि उसका चलना प्रारंभ हो जाता है परंतु अभी पूर्ण शारीरिक संतूलन नहीं आ पाता| 18 माह के बच्चे का भार 22- 27 पौंड तथा लम्बाई 31-33 इंच हो जाती है| शिशु प्राय: अकेले चलना पसंद करते हैं| चलते समय कुछ वस्तुओं को खींचते या धक्का देते रहते हैं| वे हाथ में कुछ लिए रहते हैं| अब उनमें संतूलन आ जाता है और वे खड़े रहते हैं| वैसे चलने में उन्हें अधिक समय एवं प्रयास लगाना पड़ता है| कुछ बच्चे अभी सीढ़ी पर नहीं चढ़ पाते| उन्हें पैर से गेंद मारने में कठिनाई होती है क्योंकी एक पैर जमीन से उठाकर गेंद- मारने की क्षमता अभी विकसित नहीं हो पाती| वे अभी तिपहिया साईकिल नहीं चला पाते| इनके अधिकांश क्रियाकलाप अनुकरण द्वारा ही संचालित होते हैं| अब ये दो शब्दों के अधूरे वाक्य बोलनें लगते हैं|
(v) 18 माह से दो - वर्ष (24 माह) की आयु तक :
दो वर्ष की आयु तक शिशु की लम्बाई में 2 इंच तथा भार में 2-3 पौंड की वृद्धि हो जाती है| वह आस – पास घूमने लगता है एवं नयी-नयी क्रियाओं के करने में उसे मजा आता है यथा चलना, दौड़ना, साईकिल चलाना, सीढ़ी चढ़ना, फर्नीचर के नीचे, ऊपर, चारों पर चक्कर काटना आदि | अब वह चीजों को ढोने, पकड़ने, धक्का देने, खींचने जैसी क्रियायें करता है | डब्बे में चीजों को डालने और उसमें से निकालने जैसे क्रियाकलाप करता है| इस प्रकार खोज – बीन (अन्वेषण) द्वारा वह वस्तूओं के बार में जानकारी प्राप्त करता है|
मनुष्य में अन्य प्रजातियों की अपेक्षा शारीरिक परिपक्वता देर से आती है अथार्त सम्पूर्ण जीवनकाल का 1/5 भाग उसके लिए प्रत्याशित होता है| शिशु के शरीरिक विकास का प्रभाव प्रत्येक्ष एवं परोक्ष रूप से, व्यवहार तथा अन्य प्रकार के विकास पर पड़ता है | शारीरिक विकास निरंतर न होकर चरणों में होता है| इसलिए इसे शरीरिक वृद्धि चक्र के नाम से जाना जाता है| वृद्धि चक्र एक निश्चित क्रम में घटित होता है| यद्यपि इसका पूर्व कथन किया जा सकता है| तथापि विकास में वैयक्तिक भिन्नतायें भी पायी जाती हैं शिशु वृद्धि के चार प्रमुख चरण होते हैं | इनमें से पूर्ववर्ती दो चरण विकास के तथा परवर्ती दो, मंद विकास के चरण कहे जाते हैं |
गर्भस्था एवं जन्मोपरांत 6 महीनों की अवधि तीव्रतम विकास की अवधि होती है| एक वर्ष की आयु के बाद से विकास की यह गति क्रमश: धीमी होती जाती है| यह स्थिति वय: संधि तक विद्यमान रहती है| पुन: 15-16 वर्ष की आयु में विकास की गति तीव्र हो जाती है इसे वय: संधि प्रवेग कहा जाता है| तत्पश्चात परिपक्वता आने पर लम्बाई का विकास तो रूक जाता है, परंतु भार वृद्धि की संभवना बनी रहती है|
यद्यपि वृद्धि चक्र एक निश्चित क्रम में होता है, जिसका पूर्वकथन संभव है, तथापि प्रत्येक शिशु की वृद्धि में वैयक्तिक भिन्नता पायी जाती है| जॉन्सन एवं सहयोगियों के अनुसार प्रत्येक बच्चे के विकास की ‘समय घड़ी’, व्यक्तिगत होती है| यह घड़ी धीमी, तीव्र एवं समान्य चलेगी यह इस बार पर निर्भर करता है कि कौन सा करके इसे प्रभावित कर रहा है| विकास दर को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक हैं; शारीरिक आकार एवं स्वरुप, स्वास्थ्य स्तर, पोषण, अवरोधक क्षमता, पारिवारिक दशाएं, संवेग, मानसिक समस्याएँ, मौसम, एकल या जुड़वे बच्चे तथा बच्चे के लिंग| उपर्युक्त सभी कारकों द्वारा शरीरिक विकास का स्वरूप तथा भिन्नता का निर्धारण होता है |
स्रोत: जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची
अंतिम सुधारित : 2/21/2020
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