भारतातील पंजाबाचे राज्य व पाकिस्तानातील पंजाबचा प्रांत येथील मुख्य भाषा पंजाबी ही आहे. तिच्या एकंदर भाषिकांची संख्या जवळजवळ तीन कोटी आहे. तिच्या भारतातील पोटभाषा अमृतसरची मझी, जलंदर व होशियारपूरची दोआबी, लुधियानाची मलवी, पतियाळा व संग्रूरची पत्यावली, जम्मूची डोग्री, चंबा व मंडीची पहाडी या असून, तिच्या पाकिस्तानातल्या पोटभाषा ल्यालपूरची ल्यालपुरी (लयलापुरी), मुलतानची मुलतानी, हिस्सारची हिंडको आणि रावळपिंडीची पोथोहारी या आहेत.
पंजाबी भाषा गुरुमुखी लिपीचा उपयोग करते. मुसलमान लोक मात्र अरबी लिपी वापरतात.पंजाबी ही इंडो-यूरोपियन भाषाकुटुंबातील इंडो-आर्यन भाषा असून तिचा प्रारंभकाल इ. स. अकराव्या शतकापासून आहे. प्रारंभीच्या काळातील प्रमाणलेखन मुलतानी बोलीत असून फरीद पहिला, इब्राहिम कमाल, गोरखनाथ, चर्पटी, चांद व खुसरौ हे त्या काळातले प्रमुख लेखक होते.
पंधराव्या शतकापासून अठराव्या शतकापर्यंत मध्ययुगीन पंजाबीचा काळ आहे. हा गुरू नानककाल म्हटला जातो. हे पंजाबी साहित्याचे सुवर्णयुग होय. याच काळात गुरू अर्जुनदेव यांनी शीख धर्मग्रंध आदिग्रंथ याचे संपादन केले. या आदिग्रंथात गुरू नानक, अंगद, अमरदास, रामदास आणि अर्जुनदेव यांची धर्मपर रचना आणि गुरू गोविंदसिंगांचा एक दोहा आहे. शिवाय कबीर, फरीद, नामदेव इ. हिंदू व मुसलमान संतांच्याही काही रचना त्यात आहेत. लाहोरचा मुसलमान सूफी कवी शाह हुसेन हा या काळातलाच आहे.
मध्यकालीन पंजाबीचा काळ यापुढे एकोणिसाव्या शतकाच्या अखेरपर्यंतचा आहे. या काळातील मुसलमान लेखकांच्या ललित साहित्यामुळे पंजाबीत अनेक फार्सी व अरबी शब्द आले. हिंदू व शीख लेखक धार्मिक लेखनाकडे वळलेले असून त्यांच्या भाषेवर संस्कृतची छाप दिसून येते. अमृतसरच्या बोलीवर आधारलेली ही भाषा साधभाख (साधुभाषा) म्हणून ओळखली जाते. अर्वाचीन पंजाबी लेखन पाश्चात्त्य विशेषतः इंग्रजी साहित्याच्या प्रभावाखाली आहे.
ध्वनिविचार | पंजाबी वर्णमालेत एकंदर बेचाळीस वर्ण असून त्यांतले दहा स्वर आहेत. | |||
स्वर | : | अ आ इ (उच्च व पूर्व) इ (मध्य व मध्यम) उ (उच्च व पूर्व) उ (मध्य व मध्यम) ए ओ अ* ऑ | ||
व्यंजने | : | स्फोटक | : | क ख ग ट ठ ड त थ द प फ ब |
अर्धस्फोटक | : | च छ ज | ||
अनुनासिक | : | ङ य ण न म | ||
अर्थस्वर | : | य व | ||
कंपक | : | (दंत्य व भूर्धन्य) | ||
पार्श्विक | : | ल ळ | ||
घर्षक | : | फ श स झ ह |
नाम : नाम लिंग, वचनं व विभक्ती दाखविते. लिंगे दोन आहेत. पुल्लिंग व स्त्रीलिंग, वचने दोन आहेत. एक व अनेक. विभक्त्या पाच आहेत. प्रत्यक्ष (प्रत्ययशून्य), सामान्य, संबोधन सर्व नामांना असतात. तर एकवचनात पंचमी व अनेकवचनात सप्तमी असणारी काही नामे आहेत.
नामाची रूपावली तीन प्रकारे होते. प्रत्यक्ष विभक्तीच्या एकवचनात आकारान्त असलेली पुल्लिंगी नामे (प्रकार १), इतर सर्व पुल्लिंग नामे (प्रकार २), सर्व स्त्रीलिंगी नामे (प्रकार ३).
प्रकार पहिला |
||
मुंडा ‘मुलगा’ |
||
ए. व. |
अ. व. |
|
प्रत्यक्ष |
मुंडा |
मुंडे |
सामान्य |
मुंडे |
मुंड्यां |
संबोधन |
मुंड्या |
मुंड्यो |
कोठा ‘घर’ |
||
प्रत्यक्ष |
कोठा |
कोठे |
सामान्य |
कोठे |
कोठ्यां |
संबोधन |
- |
- |
पंचमी |
कोठ्यों |
- |
सप्तमी |
- |
कोठीं |
प्रकार दुसरा |
||
तोबी ‘धोबी’ |
||
ए. व. |
अ. व. |
|
प्रत्यक्ष |
तोबी |
तोबी |
सामान्य |
तोबी |
तोबीआं |
संबोधन |
तोबीआ |
तोबीओ |
पिंड ‘खेडेगाव’ |
||
प्रत्यक्ष |
पिंड |
पिंड |
सामान्य |
पिंड |
पिंडां |
संबोधन |
पिंडा |
- |
पंचमी |
पिंडों |
- |
सप्तमी |
- |
पिंडीं |
प्रकार तिसरा |
||
कुडी ‘मुलगी’ |
||
ए. व. |
अ. व. |
|
प्रत्यक्ष |
कुडी |
कुडिआं |
सामान्य |
कुडी |
कुडिआं |
संबोधन |
कुडिए |
कुडिओ |
सडक ‘रस्ता’ |
||
प्रत्यक्ष |
सडक |
सडकां |
सामान्य |
सडक |
सडकां |
संबोधन |
- |
- |
पंचमी |
सडकों |
- |
सप्तमी |
- |
सडकीं |
ओ हे जवळच्या व्यक्तींना वा वस्तूंना लावतात. दूरच्या संदर्भात ए हे सर्वनाम आहे. ते ओ प्रमाणेच चालते. तृतीय पुरुषातही लिंगभेद नाही.याशिवाय सर्वनामांपासून मिळणारी स्वमित्वदर्शक विशेषणे स्वतंत्र आहेत. ती नंतर येणाऱ्या नामाच्या लिंगवचनाप्रमाणे बदलतात आणि हे नाम प्रत्यक्ष विभक्तीत नसले तर विशेषणाचे सामान्यरूप होते. विशेषणाची ही रूपे पुढीलप्रमाणे :
प्रथम पुरुष |
||
ए. व. |
अ. व. |
|
पु. ए. व. प्र. |
मेरा |
सडा |
पु. ए. व. सा. |
मेरे |
सडे |
पु. अ. व. प्र. |
मेरे |
सडे |
पु. अ. व. सा. |
मेरिआं |
सडिआं |
स्त्री. ए. व. प्र. |
मेरी |
सडी |
स्त्री. ए. व. सा. |
मेरी |
सडी |
स्त्री. अ. व. प्र. |
मेरिआं |
सडिआं |
स्त्री. अ. व. सा. |
मेरिआं |
सडिआं |
द्वितीयपुरुष |
||
ए. व. |
अ. व. |
|
पु. ए. व. प्र. |
तेरा |
तुआडा |
पु. ए. व. सा. |
तेरे |
तुआडे |
पु. अ. व. प्र. |
तेरे |
तुआडे |
पु. अ. व. सा. |
तेरिआं |
तुआडिआं |
स्त्री. ए. व. प्र. |
तेरी |
तुआडी |
स्त्री. ए. व. सा. |
तेरी |
तुआडी |
स्त्री. अ. व. प्र. |
तेरिआं |
तुआडिआं |
स्त्री. अ. व. सा. |
तेरिआं |
तुआडिआं |
तृतीयपुरुष |
||
ए. व. |
अ. व. |
|
पु. ए. व. प्र. |
ओदा |
ओनादा |
पु. ए. व. सा. |
ओदे |
ओनादे |
पु. अ. व. प्र. |
ओदे |
ओनादे |
पु. अ. व. सा. |
ओदिआं |
ओनादिआं |
स्त्री. ए. व. प्र. |
ओदी |
ओनादी |
स्त्री. ए. व. सा. |
ओदी |
ओनादी |
स्त्री. अ. व. प्र. |
ओदिआं |
ओनादिआं |
स्त्री. अ. व. सा. |
ओदिआं |
ओनादिआं |
तृतीयपुरुषाची रूपे निकटवर्ती सर्वनामाची आहेत. ओ ऐवजी ए ठेवून दूरवर्ती सर्वनामाची रूपे मिळतात.
व्यक्तिवाचक प्रश्नार्थक सर्वनाम कोन असून वस्तुवाचक की हे आहे. त्या दोघांचे सामान्यरूप किसी होते. इतर रूपे तृ. किन्ने किंवा किन आणी स्वामित्ववाचक विशेषणे किदा इ. होतात.
संबंधी सर्वनाम जो हे असून त्याचे सामान्यरूप जिस, तृतीयेचे जिन्ने किंवा जिन आणि स्वामित्ववाचक विशेषणे जिदा इ. होतात.
१ इक, २ दो, ३ तीन, ४ चार, ५ पंज, ६ छे, ७ सत, ८ अठ, ९ नॉ, १० दस, ११ यारा, २० वी, ३० ती, ४० चाली, ५० पंजा, ६० सठ, ७० सत्तर, ८० अस्सी, ९० नब्बे, १०० सॉ.
पइला, दुजा, तिजा, चउथा, पंजवां, छेवां, सतवां, अठवां, नावां, दसवां, यारवां, इत्यादी.
काही क्रियापदांच्या रूपमालिकांवरून त्याचे रूप स्पष्ट होईल.
हो-‘अस’ |
||
वर्तमानकाळ |
||
ए.व |
अ.व. |
|
प्र. पु. |
मॅ आं |
असीं आं |
द्वि. पु. |
तूं एं |
तुसीं ओ |
तृ. पु. |
ओ ए |
ओ ने |
ए.वे |
ए ने |
|
भूतकाळ |
||
प्र. पु. |
मॅ सां |
असीं सां |
द्वि. पु. |
तूं सँ |
तुसीं सव |
तृ. पु. |
ओ सी |
ओ सन |
ए सी |
ए सन |
क्रियापदाचे वर्तमानकालवाचक धातुसाधित धातु व्यंजनान्त असल्यास दा हा प्रत्यव लावून आणि स्वरान्त असल्यास न्दा हा प्रत्यय लावून होते. या धातुसाधितानंतर हो ची वर्तमानकाळाची रूपे आली, की क्रियापदाचा वर्तमानाकाळ सिद्ध होतो : जा – ‘जा’ – वकाधा जान्दा; कर - ‘कर’ – वकाधा कर्दा. वर्तमानकाळ : मॅ जान्दा आं ‘मी जातो’; मॅ कर्दा आं ‘मी करतो’ इत्यादी.
वकाधानंतर हो ची भूतकाळाची रूपे आली की रीतिभूतकाळ होतो : मॅ जान्दा सां ‘मी जात होतो, मी जायचो’ इत्यादी. याचे नकारार्थी रूप कर्त्यानंतर नैं हे अव्यय वापरून आणि मुख्य व सहायक क्रियापदांची उलटापालट करून मिळते : मॅ नैं सां जान्दा ‘मी जात नव्हतो’.
मॅ जा रिआ वां-मॅ जा रइ आं ‘मी जातो आहे - मी जाते आहे’ इत्यादी.
मॅ जा रिआ सां-मॅ जा रइ सां ‘मी जात होतो - मी जात होते’.
मॅ बोलांगा-मॅ बोलांगी ‘मी बोलीन’.
स्वरान्त धातूंना आंगा हा प्रत्यय लागण्यापूर्वी व लागतो : मॅ जावांगा - मॅ जावांगा ‘मी जाईन’.
प्रत्ययरहित धातू हे आज्ञार्थाचे एकवचनाचे रूप असून धातूला ओ हा प्रत्यय लागून त्याचे अनेकवचन होते : जा – जाओ ‘जा’; दे-द्यो ‘दे - द्या’.
एथे पंजाबी बोली जांदी ए ‘इथे पंजाबी बोलली जाते’. पांडा टुट्टा ‘भांड फुटल’. मुंडेने कुत्तेनुं मारिआ ‘मुलाने कुत्र्याला मारंल’. ओने सानुं कलम दे दित्ता ‘त्यांनी आम्हाला पेन दिलं’. जे तुसीं ओनुं माफ कर्दे, तां चांगा हुदा ‘ जर तू त्याला क्षमा केली असतीस, तर बंर झालं असतं’. मनुं पता हुंदा, तां दुजी वारी ना जांदा ‘मला माहीत असतं, तर मी दुसऱ्या वेळेला गेलो नसतो’.
संदर्भ :1. Gill, H.S.; Gleason (Jr.), H.A. A Reference Grammar of Punjab, Hartford, 1962.
2. Shackle, C. Punjabi, London, 1972.
स्त्रोत - मराठी विश्वकोश
अंतिम सुधारित : 7/11/2019