15. (1) प्रत्येक राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा –(राज्य का नाम) सूचना आयोग के नाम से ज्ञात एकनिकाय का, इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और उसे सौपे गए कृत्यों का पालन करने के लिए गठन करेगी
(२) राज्य सूचना आयोग निम्नलिखित से मिलकर बनेगा-
(क) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त, और
(ख) दस से अनाधिक उतने राज्य सूचना आयुक्त, जितने आवश्यक समझे जाएँ
(3) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा निम्नलिखित से मिलकर बनी समिति की सिफारिश पर की जाएगी,
1. मुख्यमंत्री, जो समिति का अध्यक्ष होगा,
2. विधानसभा में विपक्ष का नेता, और
3. मुख्यमंत्री द्वारा नामनिदृष्टि मंत्रिमंडलीय मंत्री
शंकाओं को दूर करने के प्रयोजनों के लिए यह घोषित किया जाता है कि जहाँ विधानसभा में विपक्षी दल के नेता को उस रूप में मान्यता नहीं दी गई है, वहाँ विधानसभा सरकार के विपक्षी एकल सबसे बड़े समूह के नेता को विपक्षी दल का नेता माना जायेगा।
(4) राज्य सूचना आयोग के कार्यों का साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबंधन राज्य मुख्य सूचना आयुक्त में निहित होगा, जिसकी राज्य सूचना आयुक्तों द्वारा सहायता की जाएगी औए वह सभी ऐसी शक्तियों का प्रयोग औए सभी ऐसे कार्य और बातें कर सकेगा जो राज्य सूचना आयोग द्वारा इस अधिनयम के अधीन किसी अन्य प्राधिकारी के निदेशों के अध्यधीन रहे बिना स्वंत्रत रूप से प्रयोग की जाएँ या की जा सकती हों।
(5) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त विधि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, समाजसेवा, प्रबंधन, पत्रकरिता, जन माध्यम या प्रशासन औए शासन में ज्ञान व्यापक औए अनुभव वाले समाज में प्रख्यात व्यक्ति होंगे।
(6) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त, यथास्थिति, संसद का सदस्य या किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के विधान-मंडल का सदस्य नही होगा या कोई अन्य लाभ वाला पद धारण नहीं करेगा या किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं होगा या कोई कारबार नही करेगा या कोई वृति नहीं करेगा।
(7) राज्य सूचना आयोग का मुख्यालय राज्य में ऐसे स्थान पर होगा, जो राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे और राज्य सूचना आयोग, राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से भारत में अन्य स्थानों पर अपने कार्यालय स्थापित कर सकेगा।
16 (1) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, पांच वर्ष की अवधि के लिए पद धारित करेगा और पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नही होगा:
परन्तु कोई राज्य मुख्य सूचना आयुक्त पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, पद धारित करेगा,
परन्तु प्रत्येक कोई राज्य मुख्य सूचना आयुक्त पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात उस रूप में पद धारित नहीं करेगा।
(२) प्रत्येक राज्य सूचना आयुक्त उस तारीख से, जिसको वह अपना पद धारण करता है पांच वर्ष की अवधि के लिए पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, पद धारित करेगा,
परन्तु प्रत्येक राज्य सूचना आयुक्त इस उपधारा के अधीन अपने पद रिक्त करने पर धारा 15 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट रीति में राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होगा;
परन्तु यह और कि जहाँ राज्य सूचना आयुक्त की राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति की जाती है, वहाँ उसकी पदवधि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त के रूप में कुछ मिलाकर पांच वर्ष से अधिक नहीं होगी।
(3) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और कोई राज्य सूचना आयुक्त अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष पहली अनुसूची में ऍस प्रयोजन के लिए उपवर्णित प्रारूप के अनुसार शपथ या प्रतिज्ञान लेगा और उस पर हस्ताक्षर करेगा।
(4) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और कोई राज्य सूचना आयुक्त, किसी भी समय, राज्यपाल को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा पने पद का त्याग कर सकेगा:
परन्तु राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या किसी राज्य सूचना आयुक्त को धारा 17 में विनिर्दिष्ट रीति से हटाया जा सकेगा।
(5) (क) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त को संदाय वेतन और भत्ते तथा उसको सेवा के अन्य निबंधन और शर्तों वही होंगी, जो भारत के निर्वाचन आयुक्त की हैं।
(ख) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त को संदाय वेतन और भत्ते तथा उसको सेवा के अन्य निबंधन और शर्तों वही होंगी, जो राज्य के मुख्य सचिव की हैं:
परन्तु यदि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और कोई राज्य सूचना आयुक्त अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में कोई (अक्षमता आय क्षति पेंशन से भिन्न) प्राप्त कर रहा है तो राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के सम्बन्ध में उसके वेतन में से उस पेंशन की रकम को, जिसके अंतर्गत पेंशन का ऐसा भाग भी है, जिसे सारांशिकृत किया गया था औए सेवानिवृत्त उपदान के समतुल्य पेंशन को छोड़कर अन्य प्रकार के सेवानिवृत्त फायदों के समतुल्य पेंशन भी है, रकम को कम कर किया जायेगा:
परन्तु यह और कि जहाँ राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त, अपनी नियुक्ति के समय किसी केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी सरकारी कम्पनी में की गई किसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में, सेवानिवृत्त फायदे प्राप्त कर रहा है वहाँ राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के सम्बन्ध में उसके वेतन में से सेवानिवृत्त फायदों के समतुल्य पेंशन की है, रकम को कम कर दी जाएगी:
परन्तु यह और यह और राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्तों और सेवा की अन्य शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात उनके लिए अलाभकारी रूप में परिवर्तन नही किया जायेगा।
(6) राज्य सरकार, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त को इस अधिनियम के अधीन और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी जितने आवश्यक हों और इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए नियुक्त किये गए अधिकारियों और कर्मचारियों को संदाय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वह होंगी, जो विहित की जाएँ।
17. उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त को राज्यपाल के आदेश द्वारा साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर उसके पद से तभी हटाया जायेगा, जब उच्चतम न्यायालय में. राज्यपाल द्वारा उसे किये गये निर्देश पर जाँच के पश्चात यह रिपोर्ट दे दी हो कि, यथास्थिति, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त को उस आधार पर हटा दिया जाना चाहिए।
(२) राज्यपाल, उस राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त को, जिसके विरुद्ध उपधारा (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश किया गे है। ऐसे निर्देश पर उच्चतम न्यायालय की रिपोर्ट की पर राज्यपाल द्वारा आदेश पारित किये जाने तक उसके पद से निलबिंत कर सकेगा और यदि आवश्यक समझे तो ऐसी जाँच के दौरान कार्यालय में उपस्थित होने से प्रतिषिद्ध भी कर सकेगा।
(3) उपधारा (1) में अंतविर्ष्ट किसी बात के होते हुए भी राज्यपाल, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या किसी राज्य सूचना आयुक्त को आदेश द्वारा पद से हटा सकेगा, यदि यथास्थिति, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त –
क) दिवालिया न्यायनिर्णित कर दिया जाता है,
ख) ऐसे किसी अपराध के लिय दोषसिद्ध ठहराया गया है जिसमें राज्यपाल की राय में नैतिक अधमता अंतवर्लित है या,
ग) वह अपनी पदावधि के दौरान अपने पद के कर्तव्यों से परे किसी वैतनिक नियोजन में लगा हुआ है या
घ) राज्यपाल की राय में मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण वह पद पर बने रहने के अयोग्य है, या,
ड.) उसने ऐसे वित्तीय या अन्य हित अर्जित किये हैं, जिनसे, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त के रूप में उसके कृत्यों पर परिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।
4) यदि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त किसी रूप में, भारत सरकार द्वारा या उसकी ओर से की गई किसी संविदा या करार से संबद्ध या हितबद्ध है किसी निगमित कम्पनी के सदस्य से अन्यथा किसी रूप में और उसके अन्य सदस्यों के साथ संयुक्त रूप में उसके लाभ में उससे प्रोदभूत होने वाले किसी फायदे या परिलब्धियों में हिस्सा लेता है तो उसे उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए कदाचार का दोषी समझा जायेगा।
स्रोत:- सूचना का अधिकार विधेयक, 2005, जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची।
अंतिम सुधारित : 2/25/2020
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