मधुबनी जिले के अंधराठाढ़ी प्रखण्ड के हररी पंचायत निवासी अवकाश प्राप्त शिक्षक श्री हरिनन्दन ठाकुर वर्षों से अपने घर तक जाने वाली सरकारी सड़क को अतिक्रमणकारियों के चंगुल से मुक्त कराने हेतु प्रयासरत थे। इसके लिए 70 साल की उम्र में भी श्री ठाकुर ने अधिकारियों के चौखट पर सैकड़ों बार दस्तक दी। परन्तु कार्रवाई के नाम पर संबंधित पदाधिकारियों ने बीच में ही फाईल को लटका दिया। श्री ठाकुर के अथक प्रयासों के बाद 20.6.2002 को शुरू हुई कार्रवाई 27.11.02 तक चली। परन्तु जब अंचल अधिकारी अंधराठाढ़ी के पास कार्रवाई हेतु आदेश देने का वक्त आया तो 27. 11.02 के बाद उन्होंने फाईल को बिना कोई आदेश पारित किए छोड़ दिया। श्री ठाकुर को याद नहीं कि उन्होंने अंचल अधिकारी अंधराठाढ़ी की इस निष्क्रियता के खिलाफ कितनी बार जिला के वरीय पदाधिकारियों के पास फरियाद की। परन्तु किसी ने उनकी नहीं सुनी। आखिरकार श्री ठाकुर को सूचना का अधिकार कानून की जानकारी मिली तो दिनांक 04.06.07 को इसके तहत आवेदन देकर उन्होंने अंचल अधिकारी से जवाब-तलब किया। फाइलों पर कुन्डली मार बैठे अधिकारियों के लिए यह आवेदन जी का जंजाल बन गया। मजबूर होकर उन्हें श्री ठाकुर के घर तक जाने वाला अतिक्रमित रास्ता खाली कराना पड़ा। ज्ञातव्य हो कि यह सफलता श्री ठाकुर को राज्य सूचना आयोग, बिहार, पटना तक मामले को ले जाने के बाद मिली।
मधुबनी जिले झंझरपुर प्रखंड अन्तर्गत सुखेत पंचायत के मच्छी गाँव क रहने वाले 70 वर्षीय मजलूम नदाफ एक रिक्शा चालक हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी रिक्शा खींचना उनकी मजबूरी है। उनकी जिन्दगी का सहारा उनका कमाऊ पुत्र करीब चार वर्ष पूर्व बीमारी के चपेट में आकर दवा और उचित इलाज के अभाव में स्वर्ग सिधार गया। उन्हें वर्षों से रहने हेतु एक आवास की आवश्यकता थी।
वर्ष 2002 में ग्राम सभा ने भी मजलूम को इस लायक समझ उन्हें इसका लाभ दिए जाने की अनुशंसा की। परन्तु भ्रष्टाचार एवं बिचौलियों की भेंट चढ़ चुकी इस आवास योजना का लाभ बिना 'सुविधा शुल्क" शायद ही किसी को मिलता है। मजलूम से भी इंदिरा आवास पाने के लिए रिश्वत की माँग की गई। बुढ़ापे में पेट की खातिर रिक्शा खींचने को विवश मजलूम ने रिश्वत देने में असमर्थता जाहिर की तो उन्हें इसका लाभ नहीं मिला। 7 अप्रैल 2006 को मजलूम को जब सूचना अधिकार कानून की जानकारी मिली तो उन्होंने इसके तहत अनुमंडल पदाधिकारी, झ्झरपुर क पास एक आवेदन दिया तथा अबतक इंदिरा आवास से वंचित रखे जाने को लेकर कई सवाल पूछे। अनुमंडल पदाधिकारी ने उक्त आवेदक को वांछित सूचना उपलब्ध करने का निर्देश स्थानीय बीडीओ को दिया। इसपर तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी श्री विजय कुमार ने अपने कार्यालय की भूल सुधारते हुए 27042007 को मजलूम के घर जाकर इंदिरा आवास की प्रथम किश्त के रूप में 15,000/- रुपये का चेक उनके सुपुर्द किया। आज मजलूम के पास इंदिरा आवास के तहत पक्का का मकान है। मजलूम की कहानी बिहार के उन गरीबों की कहानी है जिन्होंने इस कानून का प्रयोग कर अपना हक हासिल किया।
रत्नेश कुमार पासवान, वैशाली जिलान्तर्गत उफरौल पंचायत के गाजीपुर के निवासी हैं। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इनके गाँव में ग्राम सभा की सिर्फ खानापूर्ति की जाती है। इन्होंने कई बार वरीय पदाधिकारियों से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी बीच गाजीपुर ग्राम में स्ट्रीट लाइट लगाने का कार्य हुआ और केवल एक स्ट्रीट लाइट लगाई गई। गाजीपुर ग्राम में परियोजना के अन्तर्गत ग्राम सभा के निर्णय से सौर ऊर्जा चालित चार स्ट्रीट लाइटें लगाई जानी थीं। परियोजना में गड़बड़ी से सम्बंधित सूचनाओं के लिए आवेदन दिया गया। पहले तो लोक सूचना पदाधिकारी ने आवेदन लेने से ही इनकार कर दिया। उन्होंने कई बहाने बनाए। लेकिन अंततः उन्हें आवेदन लेना पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि ग्राम सभा आयोजित की गई और परियोजना में निर्धारित चार स्ट्रीट लाइटें लगाई गई। गाँव में अभी चारों स्ट्रीट लाइट काम कर रही हैं।
श्री सुरेश शर्मा, गाजीपुर, जिला-वैशाली के निवासी हैं। इनके सभी बच्चे मध्य विद्यालय गाजीपुर में पढ़ते हैं। इस वर्ष इनके एक बच्चे को छात्रवृति नहीं दी गई। अत: उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत लोक सूचना पदाधिकारी को आवेदन दिया। मध्य विद्यालय गाजीपुर के प्रधानाध्यापक लोक सूचना पदाधिकारी हैं और वही विद्यालय में छात्रवृत्ति वितरित करते हैं। कई बच्चों को छात्रवृत्ति नहीं मिली थी। श्री सुरेश शर्मा ने छात्रवृत्ति से संबंधित कई प्रश्न सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत पूछे। आवेदन लेते ही लोक सूचना पदाधिकारी ने कहा कि छात्रवृत्ति मिल जाएगी, यह सब करने की कोई जरूरत नहीं है। दूसरे दिन ही सुरेश शर्मा के बच्चों सहित सूची में अंकित सभी छात्र/छात्राओं को छात्रवृत्ति मिल गई।
राजेंद्र पोद्दार उर्फ़ खूरचंद पोद्दार, श्री मुरलीधर भगत, व्याहुत चौक, नवगछिया, भागलपुर की दुकान में 1980 ई० से काम करते थे। कुछ दिनों के बाद खूरचन्द उक्त दुकानदार के ट्रक में बतौर खलासी कार्य करने लगे। इसी क्रम में ट्रक से सामान उतारने के दौरान खूरचन्द के रीढ़ की हड्डी टूट गई, जिसका उस दुकानदार ने न तो इलाज ही कराया और न बकाए राशि का भुगतान किया। इसकी लिखित शिकायत उप श्रमायुक्त, भागलपुर से दिनांक 18.12.2007 को निबंधित डाक से की गई। उक्त शिकायत पर उप श्रमायुक्त भागलपुर द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं की गई। इसी दौरान खूरचन्द की मौत हो गई। रिश्तेदार द्वारा जब भी उक्त कार्यालय से संपर्क किया गया तो उक्त कार्यालय के कर्मचारी निबंधित पत्र न प्राप्त होने की बात कहकर, टालमटोल करते हुए उन्हें कार्यालय से निकाल दिया करते थे। इसी दौरान खूरचन्द के रिश्तेदार श्री वीरेन्द्र कुमार पोद्दार मानव अधिकार संगठन का सहयोग लेने कार्यालय पहुँचे। वहाँ से श्री वीरेन्द्र कुमार पोद्दार द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत उक्त कार्यालय के लोक सूचना पदाधिकारी को एक आवेदन दिनाक 20.02.2008 को निबंधित डाक से भेजा गया। इसे प्राप्त करते ही उक्त कार्यालय के पदाधिकारियों की एक टीम ने खूरचन्द के घर पहुँच कर जाँच-पड़ताल की और जाँच प्रतिवेदन उक्त कार्यालय को समर्पित किया। उक्त कार्यालय द्वारा विवाद को निपटाने हेतु तत्परता से कार्रवाई करना प्रारंभ कर दिया गया एवं उप श्रमायुक्त ने पीड़ित परिवार को हर संभव सहायता प्रदान करने में स्वयं रुचि दिखाई।
श्री नागेन्द्र पासवान, वैशाली जिला के देसरी प्रखंड अन्तर्गत उफरौल पंचायत के निवासी हैं। ये बीपीएल सूची में 6 अंक के तहत जीवन यापन करते हैं। इनकी इोपड़ी भी आँधी में नष्ट हो गई थी। ये किसी तरह टूटी इोपड़ी को खड़ा करके गुजर-बसर कर रहे हैं। इन्होंने इन्दिरा आवास के लिए पंचायत प्रतिनिधि एवं ग्राम सेवक से अनुरोध किया पर कुछ नहीं हुआ। जबकि बीपीएल सूची में 9 अंक वालों तक को इंदिरा आवास आवंटित हो चुका था। इन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत एक आवेदन पंचायत सेवक सह लोक सूचना पदाधिकारी को दिया। आवेदन लेते ही ठीक उसी समय इंदिरा आवास हेतु इनका सर्वे किया गया और इंदिरा आवास के आवंटन हेतु आवश्यक कार्रवाई शुरू कर दी गई।
राकेश कुमार भगत, पिता श्री गोपाल भगत, न्यू रजनी मेडिकल हॉल पंजवारा, बाँका ने अपने साथ घटित धोखाधड़ी के मामले में पंजवारा थाना कांड सं० 11/07, नालसी वाद सं० 1506/06 तथा जी०आर० नं० 43/07 दर्ज कराया था। उक्त वाद के संदर्भ में क्षेत्राधिकार के सवाल पर मामले को साहेबगंज, झारखंड भेजने का आदेश न्यायालय द्वारा पारित हुआ। उक्त आदेशानुसार वाद पर कार्रवाई बन्द हो गई तथा क्षेत्राधिकार के सवाल पर वाद लगभग समाप्त ही हो गया था। इन्होंने मानवाधिकार संगठन, भागलपुर के सहयोग से दिनांक 06.12.2007 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 क तहत एक आवेदन लोक सूचना अधिकारी द्वारा मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की निबंधित डाक से प्रेषित किया। इसमें इन्होंने 24.08.2007 के आदेश पर की गई कार्रवाई की प्रगति रिपोर्ट, दोषी अधिकारियों का नाम, पद एवं पता पूछा था। इसे प्राप्त करते ही दिनांक 9.12.2007 को उक्त वाद में आदेश पारित किया गया तथा पुन: कार्यवाही प्रारंभ कर दी गई। श्री भगत को भी उसकी सूचना दे दी गई।
श्री रामजी साहनी, वैशाली जिला के उफरौल पंचायत अन्तर्गत गाजीपुर के एक मजदूर हैं। इनके पास रहने के लिए एक टूटा-फूटा घर है। बीपीएल सूची में इनका अंक 7 है। इन्हें इंदिरा आवास का आवंटन नहीं किया गया जबकि इसी ग्राम में 9 अंक वाले व्यक्ति को इंदिरा आवास आवंटित किया गया। इन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन दिया। आवेदन देते ही उसी दिन इंदिरा आवास हेतु इनका सर्वे किया गया और आवंटन प्रक्रिया शुरू की गई।
भीखनी देवी, जिला मधुबनी के पंडौल प्रखंड अन्तर्गत मकरमपुर की निवासी हैं। इनके पति वैद्यनाथ ठाकुर की मृत्यु 2005 ई० में हुई। उन्होंने पारिवारिक लाभ के लिए आवेदन दिया। लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। तब भीखनी देवी ने बिहार सेवा समिति के कार्यकर्ता श्री वकील यादव से संपर्क किया। उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन दिलवाया। प्रखंड विकास पदाधिकारी से सूचना न मिलने पर अनुमंडल पदाधिकारी के पास अपील दायर की गई। इसके परिणामस्वरूप उनका आवेदन सामाजिक सुरक्षा विभाग में भेजा गया और तब जाकर उन्हें पारिवारिक लाभ की राशि मुहैया हुई।
सुशीला देवी, पति लक्ष्मी पासवान ग्राम-मकरमपुर, प्रखंड- पंडोल, जिला- मधुबनी की निवासी हैं। सुशीला के पति विकलांग हैं। पति की विकलांगता का फायदा उठाते हुए गाँव के ही छोटे पासवान और केकन पासवान ने उनकी इज्जत लूटने की कोशिश की और मार-पीट की। सुशीला देवी ने बिहार सेवा समिति के कार्यकर्ता वकील यादव से संपर्क किया। उनकी मदद से विधिक सहायता के लिए सुशीला देवी ने अध्यक्ष, विधिक सहायता समिति के पास आवेदन दिया। छह महीने बीत जाने पर भी जब विधिक सहायता समिति ने नहीं सुनी तब सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दिया गया जिसपर कार्रवाई के उपरांत सुशीला देवी को विधिक सहायता प्राप्त हुई।
सूचना का अधिकार के इस्तेमाल से अनधिकृत व्यक्तियों द्वारा गलत ढंग से प्राप्त इंदिरा आवास की राशि वापस कराई गई। पंडौल प्रखंड के नरपतिनगर और मकरमपुर पंचायत में पैसे के बल पर अनधिकृत लोग इंदिरा आवास की राशि खा जाते थे। बिहार सेवा समिति के कार्यकर्ता वकील यादव ने प्रखंड विकास पदाधिकारी, पंडौल से इंदिरा आवास की सूची माँगते हुए सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन दिया। सूचना नहीं मिलने पर उन्होंने अपील दायर की। तदुपरांत उन्हें इंदिरा आवास के लाभार्थियों की सूची प्राप्त हुई। इस सूची की जाँच कराई गई तो नरपतिनगर के श्री नारायण ठाकुर, पिता स्व० हरिनन्दन ठाकुर, ललन सिंह, पिता डॉ० वीरेन्द्र नारायण सिंह एवं लखिन्दर साफी से इंदिरा आवास की राशि वापस कराई गई।
सूचना का अधिकार के इस्तेमाल से सुमन झा के बिजली बिल में 4,000/- रु० कम करके बिजली बिल का सुधार किया गया। सुमन कुमार झा, पिता फेकन झा, ग्राम सोहराय, पो०-पंडौल, जिला मधुबनी के निवासी हैं। बिजली विभाग ने इन्हें दो वर्षों का गलत बिल भेज दिया था और भुगतान के लिए बार-बार नोटिस दे रहा था। वास्तविकता यह थी कि दो वर्षों तक बिजली विभाग का ट्रान्सफॉर्मर जला हुआ था। सुमन इन ने बिहार सेवा समिति के कार्यकर्ता वकील यादव से सम्पर्क किया। इसके बाद सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन दिया गया। फलस्वरूप बिजली बिल की राशि कम की गई और उसमें 4,000/- रु० का सुधार किया गया।
मधुबनी जिलान्तर्गत पंडौल प्रखंड के कनकपुर इलाके में कभी बाढ़ नहीं आती थी। यहाँ के किसान बाढ़ के समय बाढ़ग्रस्त गाँवों को बीज और खरूऊन की आपूर्ति करते रहे हैं। इलाके का पानी बरसात के दिनों में पुल के नीचे से बह जाता था। वर्ष 2007 जनवरी-फरवरी में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा कनकपुर ग्राम में सड़क बनाने के क्रम में पुलों को भर दिया गया। फलस्वरूप जुलाई-अगस्त में पानी का बहाव रुक जाने से गाँव में पानी घुस गया तथा सैकड़ों एकड़ में लगी फसल नष्ट हो गई। इस समस्या को लेकर बिहार सेवा समिति के कार्यकर्ता वकील यादव ने सूचना के अधिकार का प्रयोग किया। इससे प्रशासन की नींद खुली। परियोजना निदेशक ने स्थल का निरीक्षण किया और पुल निर्माण का आदेश दिया।
मधुबनी जिलान्तर्गत पंडौल प्रखंड का आँगनबाड़ी केन्द्र सं० 206 हमेशा बन्द रहता था। गाँव वालों ने इसे खुलवाने के कई प्रयास किए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। हालत यह थी कि विगत तीन वर्षों में वहाँ के बच्चों को एक दिन भी पोषाहार नहीं दिया गया। स्थिति से तंग आकर उस गाँव के वार्ड सदस्य सुखदेव पासवान ने जिला पदाधिकारी को आवेदन दिया। तब भी कोई कार्रवाई नहीं। तदुपरांत, सूचना के अधिकार के तहत आवेदन पर की गई कार्रवाई के सम्बंध में जानकारी माँगी गई। सूचना के अधिकार का इस्तेमाल होते देख जिला प्रशासन हरकत में आया। इस संदर्भ में सम्बंधित सीडीपीओ से जवाब-तलब किया गया। तब जाकर आँगनबाड़ी केन्द्र चालू हुआ और कई वर्षों बाद वहाँ के बच्चों को पोषाहार नसीब हुआ।
जयन्त कुमार गुप्ता, मुहल्ला-खन्दकपर, पो० बिहारशरीफ छंटनीग्रस्त निर्वाचन कर्मचारी हैं। उन्होंने नियुक्ति/समायोजन नहीं होने के कारण माननीय उच्च न्यायालय में वाद दाखिल किया था। जिला पदाधिकारी, नालंदा ने माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश आवश्यक कारंवाई हेतु अध्यक्ष, बिहार कर्मचारी चयन आयोग को पत्रांक 574 दिनांक 12.06.2004 द्वारा प्रेषित कर दिया।
जयन्त कुमार गुप्ता ने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत जिला पदाधिकारी के उक्त पत्र के आलोक में की गई कार्रवाई की सूचना मांगी। उन्होंने आवेदन कूरियर से भेजा था जो लौटा दिया गया। तब उन्होंने राज्य सूचना आयोग में अपील सं० 353/06-07 दाखिल की। सुनवाई के पश्चात् आयोग ने कडिकावार सूचना उपलब्ध कराने का आदेश पारित किया। कर्मचारी चयन आयोग के सचिव द्वारा सूचना उनके पत्रांक 370 आ० दिनांक 2802.2007 को निर्गत की गई जो कडिकावार सूचना न होकर कर्मचारी चयन आयोग की कार्यप्रणाली से संबंधित थी। यह भी सूचित किया गया था कि सूचना के अधिकार के तहत सूचना प्राप्त करने की जिज्ञासा की अपेक्षा चयन आदि की प्रक्रिया एवं आयोग के दायित्वों के संबंध में सर्वसाधारण को सम्यक ज्ञान रखना अधिक आवश्यक है।
आवेदक ने पुन: राज्य सूचना आयोग में आपत्ति दर्ज की। आयोग ने दिनांक 1403,07 को सुनवाई की तथा लोक सूचना पदाधिकारी, कर्मचारी चयन आयोग को यह निदेश दिया कि 'आवेदक को कडिकावार उत्तर न देकर कर्मचारी चयन आयोग की कार्यप्रणाली से अवगत कराया गया है। अनुरोध होगा कि दिनांक 10,04,07 तक आवेदक को वांछित सूचना देते हुए कडिकावार मंतव्य आयोग कार्यालय को तीन प्रतियों में उपलब्ध कराने का कष्ट करें।' तब सचिव, बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा पत्रांक वि0ष्क०च०आ० 05/विविध-08/10/06-621 दिनांक 10.04.07 कि माध्यम से वांछित सूचनाएँ उपलब्ध कराई गई जिससे आवेदक संतुष्ट हुआ।
राजेन्द्र मंडल, झंझारपुर प्रखंड के परसा पंचायत के रहने वाले हैं। काफी भाग-दौड़ के बाद वर्ष 2006 में उन्हें इंदिरा आवास की पहली किश्त मिली थी। लेकिन दूसरी किश्त के लिए उन्हें लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ी। दूसरी किश्त की राशि मिलने की अवधि में ग्राम पंचायत का मुखिया बदल गया। और जैसा कि आजकल गाँवों में आमतौर से होता है, राजनीतिक कारणों से दूसरी किश्त का भुगतान रोक दिया गया। उन्होंने दिनांक 10.01.2007 को सूचना का अधिकार अधिनियम का सहारा लिया। इसबार उन्हें ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। आवेदन डालने के तीन दिनों के भीतर उन्हें दूसरी किश्त भी मिल गई।
झंझरपुर प्रखंड के सिमरा पंचायत के निवासी 50 वर्षीय लक्ष्मण मंडल टी०बी० के मरीज हैं। इस बीमारी के कारण उन्हें करीब चार वर्ष पूर्व अपना पुश्तैनी धंधा रिक्शा चलाना भी छोड़ना पड़ा। उन्हें तीन संतानें हैं - दो पुत्र एवं एक पुत्री। तीनों जवान मगर सभी मूक-बधिर। इस कारण उन्हें कोई काम भी नहीं मिलता। लक्ष्मण अपनी बीमार काया के बावजूद मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं। घर बनाना उनके बूते की बाहर की बात है। लक्ष्मण ने आवास का लाभ पाने के लिए मुखिया से लेकर प्रखंड विकास पदाधिकारी, झंझरपुर के कार्यालय तक सैकड़ों बार चक्कर लगाया, परन्तु किसी ने उनकी नहीं सुनी। आखिरकार लक्ष्मण मंडल ने दिनांक 25.05:2006 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन देकर प्रखंड विकास पदाधिकारी से इंदिरा आवास आवंटन प्रक्रिया में बीमार व विकलांगों की प्राथमिकता के सम्बंध में जानकारी माँगी। उनके प्रश्न से प्रखंड प्रशासन की पोल भी खुल सकती थी। इसलिए प्रखंड विकास पदाधिकारी ने आवेदन पर कार्रवाई करते हुए पंचायत के मुखिया को उन्हें शीघ्र इंदिरा आवास देने का निर्देश दिया। आज लक्ष्मण के पास भी इस योजना के तहत पक्का मकान है।
गुज्जर चौपाल, अंधराठाढ़ी, जिला मधुबनी के मड़रौल पंचायत के रहने वाले हैं। बचपन में ही बिजली के करेंट में उनका दायाँ हाथ नाकाम हो गया था। एक हाथ से उनका बमुश्किल गुजारा हो पाता है। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर वह किसी तरह अपना पेट पाल रहे हैं। इंदिरा आवास के लिए वह वर्षों से प्रयासरत थे। परन्तु जब किसी ने उनकी गुहार नहीं सुनी तब आखिरकार उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का सहारा लिया। 29.05.2006 को उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन में प्रखंड विकास पदाधिकारी से इंदिरा आवास आवंटन से जुड़े पाँच सवाल पूछे। पदाधिकारी ने इसका जबाव देने की अपेक्षा उन्हें इंदिरा आवास का लाभार्थी बनाना बेहतर समझा। आज गुज्जर चौपाल के पास अपना इंदिरा आवास है।
झंझरपुर प्रखंड के परसा पंचायत की रहने वाली उमा देवी विधवा है। उन्हें वर्ष 2006 में इंदिरा आवास की पहली किश्त मिली थी। जबतक वह प्रथम किश्त की राशि का उपयोग कर पातीं, ग्राम पंचायत चुनाव में मुखिया बदल गया। उन्होंने जब दूसरी किश्त की माँग की तो राजनीतिक कारणों से नए मुखिया ने उसे राशि देने से इंकार कर दिया। उन्होंने प्रखंड विकास पदाधिकारी, झंझरपुर से इसकी दर्जनों बार शिकायत भी की परन्तु किसी ने उनकी अर्जी नहीं सुनी। अंतत: 10.01.2007 को उन्होंने सूचना के अधिकार कानून 2005 का इस्तेमाल करते हुए अपने पुत्र परमानंद सिंह के माध्यम से दूसरी किश्त के भुगतान के सम्बंध में प्रखंड विकास पदाधिकारी से जानकारी माँगी। परिणामत: तीस दिनों के भीतर उन्हें इंदिरा आवास की दूसरी किश्त मिल गई।
लक्ष्मण महतो, मधुबनी जिला के लखनौर प्रखंड अंतर्गत गंगापुर पंचायत के रहने वाले हैं। वह एक पाँव से विकलांग हैं और लंबे समय से विकलांग कोटे के तहत इंदिरा आवास के लिए मुखिया से लेकर बी०डी०ओ० के दफ्तर का चक्कर काटते रहे परन्तु उन्हें इंदिरा आवास नहीं मिला। दूसरी ओर, जबकि पहुँच वाले लोग आसानी से इस योजना का लाभ प्राप्त कर रहे थे। अंततः 20.12.2006 को लक्ष्मण महतो ने लखनौर के बी०डी०ओ० से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन देकर जवाब माँगा। परिणामत: बीस दिनों के भीतर इंदिरा आवास निर्माण के लिए लक्ष्मण को 24,000/- रुपया का चेक प्राप्त हो गया।
उमा देवी, लखनौर प्रखंड के बेरमा पंचायत के भखरौली गाँव की रहने वाली हैं। उनके 20 वर्षीय कमाऊ पुत्र की मृत्यु दिनांक 01.05:2005 को हो गई। उन्होंने पुत्र के मरणोपरांत दिनांक 13.06.2005 को राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के तहत आवेदन देकर राशि की माँग की थी। अधिकारी उन्हें इसका लाभ देने की बजाय टाल-मटोल कर रहे थे। उमा को कोई संतोषप्रद जवाब भी नहीं मिल पा रहा था। अंततः 12.12.2006 को उमा ने अपने पति रघुनाथ देव के माध्यम से सूचना का अधिकार के तहत आवेदन देकर पारिवारिक लाभ के भुगतान से संबंधित जानकारी प्रखंड विकास पदाधिकारी, लखनौर से माँगी। परिणामस्वरूप उन्हें तीस दिनों के भीतर दस हजार रुपये का चेक मिल गया।
सर्वशिक्षा अभियान के तहत बिहार शिक्षा परियोजना द्वारा अनुदानित बेगूसराय जिला के मटिहानी प्रखण्ड में कुल 14 लाख रुपये की लागत से प्रखण्ड संसाधन केन्द्र बनना था। 2005 में किए गए एग्रीमेण्ट के बावजूद 2007 तक भवन पूरा नहीं होते देख उक्त प्रखण्ड अन्तर्गत महेन्द्रपुर गांव के एक सामाजिक कार्यकर्ता शिवअंजन कुमार ने जानकारी कॉल सेंटर के माध्यम से सूचना अधिकार के तहत आवेदन किया। उन्होंने अपने आवेदन में प्रखण्ड संसाधन केन्द्र मटिहानी समेत जिला के तमाम प्रखण्ड संसाधन केन्द्रों के सम्बंध में किए गए एग्रीमेण्ट, एस्टीमेट, कार्य की अवधि, कार्य कराने वाली एजेन्सी, आवंटित राशि के विरुद्ध किए कार्यों की उपयोगिता एवं मापी पुस्त समेत विस्तृत विवरण माँगा। उपलब्ध कराई गई सूचना में पूरे जिला में कुल 2 करोड़ 24 लाख रु० आवंटन के विरुद्ध निर्गत 90 प्रतिशत राशि में कार्य महज 30 से 50 प्रतिशत तक ही हो पाए थे, जबकि मापी पुस्त में 70 से 80 प्रतिशत तक की राशि का व्यय बताया गया था। अब शिवअंजन के पास पर्याप्त और पुख्ता प्रमाण थे। इसके आधार पर बिहार शिक्षा परियोजना परिषद्, पटना में विधिवत शिकायत दर्ज कराई गई। शिकायत के आलोक में राज्य स्तरीय जाँच अधिकारियों की टीम द्वारा उक्त बी०आर०सी० की गहन जाँच हुई। पाई गई अनियमितता को लेकर त्वरित कार्रवाई करते हुए निर्माण समिति द्वारा बैंक खाता संचालन पर रोक लगाते हुए 10 दिनों में कार्य पूरा करने के कड़े निर्देश दिए गये। परिणामत: आज मटिहानी के बी०आर०सी० के साथ उक्त केन्द्र के कार्यों में बरती गई अनियमितता के लिए दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई एवं प्राथमिकी दर्ज कराने की अनुशंसा कर दी गई है।
लखनौर प्रखंड के बेरम पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय में रेणु ठाकुर शिक्षा मित्र के पद पर कार्यरत थीं। नियमित स्कूल जाने एवं पंचायत में मानदेय भुगतान वास्ते राशि आ जाने के बावजूद उन्हें मानदेय का भुगतान करीब दो वर्ष से नहीं हो रहा था। हर ओर से निराश होकर रेणु ने सूचना के अधिकार के कानून का सहारा लिया। दिनांक 14.11.2006 को इस कानून के तहत अनुमंडल पदाधिकारी, इहारपुर को आवेदन देकर मानदेय भुगतान से संबंधित जानकारी माँगी गई। परिणामत: उन्हें तीस दिनों के अंदर लम्बित अवधि के वेतन का भुगतान हो गया। रेणु के इस साहसी कदम के चलते दूसरे पंचायत शिक्षकों को भी लम्बित मानदेय मिल गया।
परशुराम प्रसाद, मधुबनी जिला के अंधराठाढ़ी प्रखंड स्थित रखवारी पंचायत के रहने वाले हैं। उन्होंने गणित विषय में प्रतिष्ठा तक पढ़ाई कर रखी है। राज्य सरकार के आदेश पर वर्ष 2006 में जब प्रखंड कार्यालयों में पंचायत कृषि मित्रों के चयन की प्रक्रिया शुरू हुई तो परशुराम ने भी इसके लिए आवेदन किया। अपने पंचायत से इस हेतु प्रखंड कार्यालय में जमा हुए सभी आवेदनकर्ताओं में वह सबसे अधिक योग्यता प्राप्त व अंकधारी युवक थे। लेकिन नियोजन के दौरान गलत ढंग से किसी और का चयन कर लिया गया। अंतत: परशुराम ने दिनांक 11.12.2006 को अपने भाई शम्भु कुमार राउत के माध्यम से सूचना का अधिकार के तहत आवेदन देकर प्रखंड विकास पदाधिकारी, अंधराठाढ़ी से नियोजन संबंधित जानकारी माँगी। परिणामस्वरूप बीस दिनों के भीतर ही बी०डी०ओ०, अंधराठाढ़ी ने पूर्व चयनित उम्मीदवार का चयन रद्द कर परशुराम का इस पद पर चयन कर लिया।
मधुबनी जिले के लखनौर प्रखंड के गंगापुर, मदनपुर एवं बेहट उत्तरी पंचायतों में जब कुछ सामाजिक कार्यकर्ता राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की जमीनी हकीकत का पता करने पहुँचे तो उन्हें मालूम हुआ कि इन पंचायतों में जॉब कार्ड के लिए आवेदन लिए जाने के बावजूद मजदूरों को जॉब कार्ड नहीं मिल रहा है। सैकड़ों लोगों ने इसकी शिकायत सामाजिक कार्यकर्ताओं से की। राजेन्द्र मंडल नामक सामाजिक कार्यकर्ता ने दिनाक 14.11.2006 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत एक आवेदन देकर जॉब कार्ड एवं राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना से संबंधित उपरोक्त पंचायतों के प्रगति प्रतिवेदन की माँग की। परिमाणस्वरूप, तीस दिनों के भीतर करीब 400 लोगों को जॉब कार्ड वितरित किए गए तथा काम देने की प्रक्रिया भी शुरू हुई।
फ्रीडम मिशन, नारायण कॉम्प्लेक्स, तिलकामाँझी, भागलपुर नामक संस्था का निबंधन कराने हेतु नियमानुसार सारी प्रक्रिया पूरा करते हुए दिनांक 16.11.2007 को निबंधन विभाग, नया सचिवालय पटना में निबंधित डाक से आवेदन जमा किया गया था। श्रीमती निशा सिंह, सचिव, फ्रीडम मिशन निबंधन हेतु कार्यालय का चक्कर काटती रहीं। परन्तु उक्त संस्था का निबंधन नहीं हो पाया। इसी क्रम में इन्होंने 31.03.2008 को सूचना के अधिकार सहायता केन्द्र (मानव अधिकार संगठन की स्वपोषित इकाई) से सम्पर्क किया। उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत एक आवेदन प्रेषित किया। उसे प्राप्त करते ही श्रीमती सिंह को उक्त संस्था का निबंधन प्रमाण-पत्र, नियमावली, स्मृति प्रमाण-पत्र इत्यादि निबंधित डाक से उपलब्ध करा दिए गए तथा उक्त कार्यालय के पत्रांक सं0 1290 दिनांक 28. 04.2008 के द्वारा उन्हें सारी सूचना उपलब्ध करा दी गई।
अजीत कुमार सिंह, मानिक सरकार घाट रोड, भागलपुर का गैस सिलिंडर खाली हो गया था। उन्होंने होम डिलीवरी के लिए बी०पी० ट्रेडिंग, भागलपुर में दिनांक 29.03.2008 को नंबर लगा रखा था। उन्हें लगभग दो माह उक्त एजेन्सी का चक्कर काटना पड़ा परन्तु गैस सिलिंडर नहीं मिल पाया। गैस एजेन्सी बार-बार यह कह कर टाल दिया करती थी कि गैस उपलब्ध नहीं है। वह इसकी शिकायत करने हेतु मानव अधिकार संगठन भागलपुर के कार्यालय पहुँचे। संगठन के सूचना का अधिकार सहायता केन्द्र द्वारा उन्हें सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन बनाकर दिया गया और इसे उक्त गैस एजेन्सी में जमा करने हेतु भेजा गया। इसे देखते ही गैस एजेन्सी के मालिक का पसीना छूटने लगा। गैस एजेंसी मालिक ने आवेदन को उन्हें लौटा दिया और दो घंटे के अन्दर श्री सिंह के घर पर गैस सिलिंडर भेजवा दिया। उक्त मालिक ने श्री सिंह से निवेदनपूर्वक कहा कि 'जब भी आपको गैस सिलिंडर की आवश्यकता हो आप हमें व्यक्तिगत रूप से सूचित करें, अब आपको गैस की दिक्कत नहीं होगी।'
महेशानंद गुप्ता, गुलाबी बाग, अलीगंज, भागलपुर ने अपनी जमीन को दूसरे व्यक्ति द्वारा हथिया लिए जाने के संबंध में मुख्यमंत्री के जनता दरबार में आवेदन दिया था। इसका संदर्भ सं० 1009760005 है। इस पर कार्यवाही काफी धीमी गति से चल रही थी, जिससे श्री गुप्ता काफी परेशान थे। इस संदर्भ में उनके पुत्र जीवेश कुमार प्रभाकर ने संगठन द्वारा संचालित सूचना का अधिकार सहायता केन्द्र के सहयोग से लोक सूचना अधिकारी, मुख्यमंत्री सचिवालय को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत दिनांक 02.05.2008 को आवेदन निबंधित डाक से प्रेषित किया। इसके उपरांत उक्त सचिवालय से पत्रांक संख्या जशिकी (सू०अ०) 01/08,दिनांक 09.05:2008 निर्गत हुई। इसके उपरांत प्रशासनिक पदाधिकारी ने तत्परता से उक्त संदर्भ में कार्यवाही प्रारंभ कर दी है। श्री गुप्ता के लिए यह एक संतोषजनक बात है।
जिला शिक्षा अधीक्षक, नालंदा ने अपने कार्यालय क पत्रांक 1285 दिनांक 10.04.2007 द्वारा कुल 76 शिक्षक एवं शिक्षिकाओं का स्थानान्तरण किया था। आवेदक जयन्त कुमार गुप्ता ने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत सूचना माँगी कि शिक्षक स्थानान्तरण नियमावली के अन्तर्गत तीन विकल्पों में किस परिस्थिति में अन्यत्र स्थानान्तरण किया गया है। जिला शिक्षा अधीक्षक ने अपने पत्रांक 1732 दिनांक 1805:2007 के द्वारा सूचना दी कि लिपिकीय भूलवश पत्र में स्थानान्तरण अंकित हो गया है। उन सभी का स्थानान्तरण नहीं बल्कि पदस्थापन किया गया है।
कार्यालय, बाल श्रमिक परियोजना समिति, नालन्दा ने दिनांक 07.07.07 को दैनिक 'आज' में सहायक-सह-लेखापाल के पद पर नियुक्ति हेतु सूचना प्रकाशित की थी। मानदेय 2000/- रु० था और कॉमर्स शिक्षा प्राप्त एवं अनुभवी व्यक्तियों को प्राथमिकता देने की शर्त थी। आवेदक जयन्त कुमार गुप्ता, वाणिज्य स्नातकोत्तर ने भी आवेदन समर्पित किया था। लेकिन उनका चयन नहीं किया गया।
जयन्त कुमार गुप्ता ने सूचना का अधिकार अधिनियम का उपयोग करते हुए लोक सूचना पदाधिकारी नालन्दा से विभिन्न सूचनाएँ माँगी। वहाँ आई०डी० सं० 350 दर्ज की गई परन्तु परियोजना निदेशक, बाल श्रमिक परियोजना समिति के प्रतिनिधि के रूप में श्री वीरेन्द्र कुमार, आशुलिपिक-सह-सहायक द्वारा आवेदन लेने से इंकार कर दिया गया।
आवेदक ने विभागीय अपीलीय प्राधिकार-सह-अपर समाहर्ता, नालन्दा के समक्ष अपील दायर की। अपीलीय प्राधिकार के निदेशानुसार परियोजना निदेशक, बाल श्रमिक परियोजना समिति, नालन्दा द्वारा उनके पत्रांक 165,बा०श्र० दिनांक 23.10.2007 द्वारा वांछित सूचनाएँ उपलब्ध कराई गई। सूचना में स्वीकार किया गया कि प्रार्थी जयन्त कुमार गुप्ता की शैक्षणिक योग्यता चयनित उम्मीदवार सुबोध कुमार से अधिक है। परन्तु शैक्षणिक योग्यता, उच्चतर योग्यता, अन्य अनुभव तथा साक्षात्कार में प्राप्तांक के आधार पर मेधा सूची तैयार कर चयन किया गया है।
श्री वीरेन्द्र कुमार के द्वारा आवेदन नहीं लेने के बिन्दु पर अपीलीय प्राधिकार-सह-अपर समाहर्ता के ज्ञापांक 77-7/07-3067/रा० दिनांक 26.11.2007 द्वारा सूचित किया गया कि श्री वीरेन्द्र कुमार द्वारा अपने गलत कार्य के लिए शर्मीन्दगी एवं दु:ख व्यक्त करते हुए भविष्य में पुनरावृत्ति नहीं करने का वादा करते हुए क्षमा याचना की गई है जिसे अपीलीय प्राधिकार द्वारा स्वीकार कर लिया गया है।
नालंदा जिले के अधिकांश विद्यालयों में नवम् वर्ग में नामांकन के लिए छात्र/छात्राओं से अवैध राशि वसूल की जा रही थी। इस वसूली के विरुद्ध कई अभिभावकों ने अपने-अपने स्तर पर विरोध दर्ज किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अंत में यह मामला सामाजिक कार्यकर्ता जयंत कुमार की नजर में आया। उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन जिला शिक्षा पदाधिकारी से इस सम्बंध में सूचना की माँग की। जिला शिक्षा पदाधिकारी ने त्वरित कार्रवाई करते हुए लगभग दर्जनों उच्च विद्यालयों में जाँच का आदेश दिया। जाँच के दौरान अवैध वसूली के कई मामले उजागर हुए और अवैध वसूली बिल्कुल बन्द हो गई।
बेगूसराय जिलान्तर्गत बछवाड़ा प्रखण्ड के रूदौली पंचायत निवासी, श्रीनारायण यादव ने सूचना अधिकार का इस्तेमाल करके पंचायत शिक्षकों के नियोजन में रिश्वत एवं जुगाड़ के आधार पर किए गए अवैध नियोजन पर अंकुश लगाने में सफलता पाई।
श्री यादव की पुत्री संध्या कुमारी रूदौली पंचायत में पिछड़ी जाति के रोस्टर बिन्दु पर पंचायत शिक्षिका के पद की प्रबल दावेदार थी। पंचायत शिक्षक नियोजन नियमावली 2006 के आलोक में, संध्या ने विधिवत अपना आवेदन दिया। उन्होंने प्रकाशित मेधा सूची के अनुरूप नियमानुसार काउन्सिलिंग में भाग लिया, परन्तु अन्तिम रूप से नियोजन हेतु चयनित अभ्यर्थियों की सूची में अपना नाम न देख, वह चकित रह गई। चयनित अभ्यार्थियों में कुछ के मेधा अंक संध्या से कम थे। इस संबंध में संध्या ने प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को आवेदन दिया। कोई संतोषजनक कार्रवाई न होता देख उनके पिता श्रीनारायण यादव ने सूचना अधिकार का इस्तेमाल करके नियोजन की कार्रवाई से संबंधित पूर्ण विवरण मांगा। राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील के बाद उपलब्ध कराई गई सूचना में बरती गई अनियमितता से संबंधित सारे प्रमाण श्री यादव को मिल गए। प्राप्त प्रमाणों के साथ शिकायत पर की गई कार्रवाई की जानकारी के लिए एक बार फिर सूचना अधिकार का प्रयोग किया। परिणामत: विस्तृत और गहन जाँच के उपरान्त दो-दो बार उक्त पंचायत का शिक्षक नियोजन रद्द करते हुए, पंचायत सचिव पर आरोप पत्र गठित कर कार्रवाई प्रारंभ करने एवं पंचायत के मुखिया पर पंचायती राज अधिनियम के तहत कार्रवाई करने का आदेश जिलाधिकारी बेगूसराय द्वारा पारित किया गया। चूँकि संध्या को अंक पर्याप्त से अधिक थे, उन्हें प्रखण्ड शिक्षिका पद के लिए नियोजित कर लिया गया।
बेगूसराय में हरखपुरा गाँव के निवासी 64 वर्षीय श्री रामललित राय, राष्ट्रीय उच्च विद्यालय दलसिंहसराय समस्तीपुर में प्रधानाध्यापक पद से वर्ष 2004 में सेवानिवृत हुए। श्री राय वर्ष 1968 से 1983 तक देवघर जिला के कोयरीडीह उच्च विद्यालय में सहायक शिक्षक पद पर कार्यरत रहे। डाकघर में खुले उनके भविष्यनिधि खाता में 1983 तक कुल लगभग 8000 रुपये जमा थे। जनवरी 2004 में अवकाश प्राप्ति के उपरान्त 4 वर्षों तक उक्त खाता में जमा उनकी भविष्यनिधि राशि का भुगतान उन्हें नहीं मिला, जबकि इस मामले में वे कई बार जिला शिक्षा अधिकारी देवघर एवं प्रधान डाकघर देवघर में आवेदन देकर, समुचित कार्रवाई की प्रत्याशा में चक्कर लगाते रहे। कार्यालय कर्मी उनसे रिश्वत के रूप में मोटी रकम माँगते थे। अंततः थक-हार कर उन्होंने मई, 2008 में सूचना का अधिकार के अंतर्गत आवेदन दिया और अपने भविष्यनिधि खाते की राशि का भुगतान किए जाने की दिशा में की गई कार्रवाई, सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया एवं विलंब के कारण सहित दोषियों पर कार्रवाई के ब्यौरे से संबंधित सवाल पूछे। श्री राय का उक्त आवेदन चमत्कार की तरह असरकारी साबित हुआ और 15 दिनों के अन्दर उक्त राशि की निकासी का आदेश निर्गत करते हुए एक पत्र उनके पते पर डाक के माध्यम से भेज दिया गया।
आज वे खुश हैं कि सूचना का अधिकार कानून की बदौलत ही उनका काम बिना रिश्वत और किसी परेशानी के हो गया। उनका मानना है कि आजादी के बाद पहली बार यह कानून आमलोगों को एक शक्तिशाली हथियार के रूप में संरक्षण देता है।
बेगूसराय के वीरपुर प्रखण्ड अंतर्गत डीह पर पंचायत के आंगनबाड़ी केन्द्र संख्या 06, 07 एवं 09 के लिए क्रमश: रानी देवी (पिछड़ा वर्ग), विमल देवी एवं रेणु देवी ने सेविका पद के लिए आवेदन दिया। विभागीय निर्देशों के अनुरूप उक्त तीनों अम्यर्थी पर्याप्त योग्यता रखती थीं एवं पंचायत द्वारा बनाई गई। मेधा सूची में भी इनका स्थान सबसे ऊपर था। चयन की प्रक्रिया पोषक क्षेत्र के लाभुकों की आम सभा द्वारा मुखिया की अध्यक्षता में पूरी की जानी थी। आयोजित आमसभा में उक्त केन्द्रों के लिए सर्वसम्मति से क्रमश: रानी देवी, विमल देवी एवं रेणु देवी को चयनित किए जाने का प्रस्ताव पारित किया गया, परन्तु कार्यवाही पंजी पर प्रोसिडिंग बाद में लिखने के नाम पर सभी से सादे पृष्ठ पर हस्ताक्षर ले लिए गए। बाद में संबंधित पंचायत सचिव, भूतपूर्व मुखिया, पंचायत पर्यवेक्षक एवं प्रखण्ड के बाल विकास परियोजना पदाधिकारी ने मिली-भगत से वैसे अभ्यर्थियों का चयन कर लिया, जिन्होंने न तो विधिवत आवेदन दिया था, न ही आमसभा के दिन उपस्थित थे। मनमाने तरीके से किए गए चयन में गाँव की बेटी को भी चयनित किया गया, जो नियमानुकूल सही नहीं था। केन्द्र संख्या 09 में प्रथम बार जिसे चयनित करने का कागजी खेल किया गया, उसका शैक्षणिक प्रमाण-पत्र ही जाली था। आनन-फानन में उससे इस्तीफा लेकर उसी परिवार की दूसरी महिला का चयन, सिर्फ कागजी तौर पर करते हुए बाकायदा प्रशिक्षण दिलवा कर केन्द्र संचालन भी शुरू कर दिया गया।
इस पूरे प्रकरण में बरती गई अनियमितता को लेकर की गई जन शिकायत एवं उस पर कृत कार्रवाई के सम्बंध में सूचना का अधिकार के तहत आवेदन देकर सूचनाएँ मांगी गई। पहले तो काफी नानुकूर हुआ। अपील में जाने के बाद उपलब्ध कराई गई सूचना के रूप में जो अभिलेख प्राप्त हुए वे भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध ऐसे प्रामाणिक विवरण थे जिसके आधार पर दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई का रास्ता साफ हो गया।
इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर जिलाधिकारी बेगूसराय द्वारा अपना आदेश यह लिखते हुए वापस लेना पड़ा कि 'आदेश पूर्ण रूपेण मुखर आदेश प्रतीत नहीं होता है"।
इस तरह सूचना के अधिकार के माध्यम से कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं निरंकुश कार्यशैली पर अंकुश लगाने में सफलता पाई गई।
झंझरपुर प्रखंड के लोहना उत्तरी पंचायत के आँगनबाड़ी केन्द्र सं०-122 पर सेविका बहाली के दौरान लोहना पूर्व निवासी श्रीमती कचन इा इसलिए पीछे छूट गई कि वह अपने प्रतिद्वंदी प्रत्याशी रूक्मिणी कुमारी की तरह इंटरमीडिएट का फर्जी अंकपत्र का जुगाड़ नहीं कर पाई। इसका खुलासा कंचन झा द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम क तहत सचिव, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति, पटना से माँगी गई सूचना से हुआ। कंचन झा को नियोजन के समय से ही रूक्मिणी कुमारी के शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की सत्यता पर संदेह था। इसके लिए श्रीमती इस नियोजन के तत्काल बाद से ही बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, झंझारपुर से लेकर अन्य कई वरीय अधिकारियों को पत्र लिखकर इनके फर्जी प्रमाण-पत्रों की जाँच की माँग करती रहीं। आखिरकार कचन इस ने अपने पति बैद्यनाथ इा के माध्यम से दिनांक 5.3.2008 को सचिव, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति, पटना से इसके प्रमाण-पत्रों की सत्यता के बारे में जानकारी माँगी। उप सचिव, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने दिनांक 10,408 को प्रेषित अपने जवाब में रूक्मिणी के मैट्रिक के प्रमाण पत्र में दर्ज रौल कोड, रौल नं० एवं पंजीयन को पूरी तरह फर्जी बताते हुए ऐसे किसी प्रमाण-पत्र को निर्गत किए जाने से इनकार किया। इस आधार पर बाल विकास परियोजना कार्यालय, झंझारपुर रूक्मिणी के नियोजन को रद्द करने की प्रक्रिया में लग गया है।
मधुबनी जिला के खुटौना प्रखण्ड के झांझपट्टी गाँव निवासी चन्द्रशेखर प्रसाद एक प्रशिक्षित पंचायत शिक्षक अभ्यार्थी थे। इनका नियोजन पंचायत शिक्षक के पद पर मधेपुर प्रखण्ड के परवलपुर पंचायत में हुआ था। इन्होंने 9 महीने तक काम भी किया। परन्तु 9 महीने के बाद नियोजन में अनियमितता की शिकायत को लेकर प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, मधेपुर ने उनकी सेवा यह कहते हुए समाप्त कर दी कि इन्होंने जिस महाविद्यालय से शिक्षक प्रशिक्षण की परीक्षा उत्तीर्ण की है वह फर्जी है और वहाँ से प्रशिक्षित छात्रों का पंचायत शिक्षक पद पर नियोजन अवैध है। अभ्यर्थी श्री प्रसाद ने अनुमंडल पदाधिकारी से लेकर जिलाधिकारी तक गुहार लगायी पर किसी ने नहीं सुनी। श्री प्रसाद की शिकायत थी कि एक ही शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय से उत्तीर्ण अन्य अभ्यार्थियों का प्रमाण पत्र वैध कैसे हो सकता है? परन्तु श्री प्रसाद की अर्जी जब किसी उच्चाधिकारी ने नहीं सुनी और उन्हें अपनी नौकरी बचाने का कोई सहारा नहीं दिखाई पड़ा तो आखिरकार 'जानकारी' के माध्यम से उन्होंने दिनांक 15.10.07 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का सहारा लेकर प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, मधेपुर से जवाब-तलब किया। परिणामस्वरूप 30 दिनों के भीतर श्री चन्द्रशेखर प्रसाद नया प्राथमिक विद्यालय, बैद्यनाथपुर पंचायत परवलपुर, प्रखण्ड मधेपुर में पंचायत शिक्षक के पद पर नियोजित किए गए। आज श्री प्रसाद पंचायत में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं।
झंझरपुर अनुमंडल के लखनौर प्रखण्ड के वेहट दक्षिणी पंचायत स्थित पिपराघाट गाँव में दो मिश्रित स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया था। समूहों के गठन के दौरान कुछ बिचौलिए किस्म के लोगों ने 25 लोगों को मिला कर गठित इन समूहों की संरचना इस रूप में की थी कि भविष्य में स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत बैंक से मिलने वाले अनुदान व ऋण की राशि महज दो परिवारों के बीच तक सीमित रहे। इस साजिश में लखनौर प्रखण्ड के महिला प्रसार पदाधिकारी से लेकर भारतीय स्टेट बैंक, झंझरपुर के क्षेत्रीय पदाधिकारी तक समान रूप से संलिप्त थे। नियमानुकूल कुटीर उद्योग के नाम पर समूह को ऋण और अनुदान मिलाकर पाँच लाख रुपये समय से मिले भी। जिसमें दो लाख पचास हजार रुपये अनुदान था। परंतु इस राशि की निकासी की सूचना समूह के मात्र दो पदाधिकारियों तक ही सीमित रखी गयी जो या तो एक ही परिवार के सदस्य थे या फिर आपस में पति-पत्नी। स्वरोजगार के नाम पर मिली इस राशि से कोई रोजगार प्रारम्भ करने की बजाए इसका गबन कर लिया गया। जबकि समूह में अपने हिस्से की राशि प्रतिमाह जमा करते रहने के बावजूद अन्य सदस्यों को कोई लाभ नहीं मिला। आखिरकार समूह की सदस्या पिपराघाट गाँव निवासी रतन देवी, पति-श्री हरि प्रसाद साह ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दिनांक 16,408 को अनुमंडल पदाधिकारी से स्वयं सहायता समूहों को स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत मिलने वाले वित्तीय अनुदान से संबंधित जानकारी माँगी। तब जाकर मामले का खुलासा हुआ और समूह की सभी सदस्याओं को पूर्व में प्राप्त अनुदान राशि में से दस-दस हजार रुपये प्रति सदस्य भुगतान कराया गया। अपने हिस्से की गबन हुई राशि पाकर सभी महिलायें आज प्रसन्न हैं और इस पूँजी से अपना व्यवसाय खड़ा करने में लगी हुई हैं।
झंझरपुर अनुमंडल क लखनौर प्रखण्ड क अन्तर्गत मदनपुर पंचायत में प्रखण्ड पंचायत समिति लखनौर कं द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत वृक्षारोपण का प्रस्ताव पारित कर कार्य शुरू करने का निदेश प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को दिया गया। वित्तीय वर्ष 2005-06 में मदनपुर की पंचायत समिति सदस्या रेखा देवी ने अनुशंसा की थी जिस पर कृल लागत दो लाख तिहत्तर हजार रु० (273,000/- ) प्रस्तावित था। मार्च, 2006 में सम्पन्न प्रखण्ड पंचायत समिति की बैठक में पारित प्रस्तावों के आलोक में अंगरेजिया पोखर मदनपुर से लेकर कमला बलान के पश्चिमी तटबंध तक वृक्षारोपण काम हेतु प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, लखनौर ने मार्च 2006 में ही प्रथम किश्त के चेक पर अपना हस्ताक्षर कर काम शुरू करने का निदेश कार्यकारी एजेन्सी को दिया। उस समय इस योजना के तहत निर्गत किए जानेवाले चेक पर प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, लखनौर के साथ-साथ प्रखण्ड प्रमुख का हस्ताक्षर भी होना आवश्यक होता था। परन्तु उक्त चेक पर प्रमुख ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। पंचायत समिति सदस्या अपने ही निर्वाचित प्रमुख के इस रूख के विरोध में 04 महीने तक लगातार उच्चाधिकारियों के यहाँ लिखित रूप से शिकायत करती रहीं। शिकायत के आलोक में जाँच भी हुई परन्तु कोई कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार रेखा देवी को सूचना का अधिकार अधिनियम की जानकारी मिली और दिनांक 146,07 को उन्होंने सूचना आवेदन दायर कर प्रखण्ड विकास पदाधिकारी से जवाब-तलब किया। इसका व्यापक असर दिखाई पड़ा और कुछ दिनों के भीतर आनन-फानन में वृक्षारोपण का काम शुरू किया गया। आज इस योजना के तहत मदनपुर पंचायत में सैकड़ों वृक्ष लगे हुए हैं।
मधुबनी जिले की झ्झरपुर प्रखण्ड अन्तर्गत नवानी पंचायत क पंचायत शिक्षकगण भाष्कर चन्द्रमन्नु एवं वन्दना कुमारी के मार्च 2006 से सितम्बर 2006 तक का मानदेय का भुगतान नहीं हो रहा था। इसके लिए शिक्षकगण दर्जनों बार मुखिया से लेकर अनुमंडल पदाधिकारी, झंझारपुर तक दौड़ लगाते रहे जबकि इस अवधि की राशि ग्राम पंचायत के खाते में वर्षों से यूँ ही पड़ी थी। शिक्षकों के मानदेय भुगतान नहीं करने को लेकर मुखिया व पंचायत सेवक द्वारा तरह-तरह के बहाने बनाये जा रहे थे। शिक्षकों को उनकी कार्यावधि का कोई पैसा नहीं मिला। आखिरकार दिनांक-22.1207 को एक साथ शिक्षकों ने सूचना का अधिकार के तहत अलग-अलग आवेदन दायर किया। पंचायत शिक्षक रामचन्द्र कुमार चौधरी, भाष्कर चन्द्र मन्नु एवं बालाजी सिंह ने पंचायत सेवक, प्रखण्ड विकास पदाधिकारी एवं प्रखण्ड शिक्षा पदाधिकारी से जवाब-तलब किया। तब जाकर इन शिक्षकों के मानदेय का भुगतान हो सका।
मिथिलेश कुमार झा, अनुमंडलीय अस्पताल झंझारपुर में लिपिक के पद पर वर्षों से नाजायज तरीके से कार्यरत थे। श्री झा की नियुक्ति पत्रांक-2905, दिनांक - 31.1.89 द्वारा सिविल सर्जन मधुबनी के कार्यालय से हुई थी। परन्तु श्री इा के नियोजन के दौरान न तो आरक्षण के नियमों का पालन हुआ था और न साक्षात्कार। चयन समिति द्वारा नियोजन की अनुशंसा के बगैर श्री झा की नियुक्ति हुई थी। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि जिस तिथि को श्री इन की नियुक्ति का पत्र निर्गत किया गया था, वह दिन रविवार था जो सार्वजनिक बन्दी का दिन होता है। इस अवैध नियोजन के बारे में सैकड़ों बार वरीय पदाधिकारियों के पास शिकायत की गई परन्तु कहीं किसी अधिकारी ने इसे निरस्त करने की कार्रवाई नहीं की। बल्कि मनचाहे स्थान पर श्री इस की पदस्थापना होती रही। आखिरकार अवकाश प्राप्त चिकित्साकर्मी अरूण कुमार ने दिनांक 28508 को क्षेत्रीय उप निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएँ, दरभंगा, प्रमंडल के पास सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन दायर कर जवाब-तलब किया। तब जाकर शुरू हुई विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया और अंततः असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी, मधुबनी ने अपने कार्यालय पत्रांक-227 दिनांक-25.1.08 के द्वारा अवैध चिकित्साकर्मी का नियोजन रद्द कर दिया।
चन्द्रकला मधुबनी जिला के लखनौर प्रखण्ड के बेरमास पंचायत की भखरौली गाँव की रहने वाली हैं। दुर्भाग्यवश इनके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। विधवा चन्द्रकला ने पति के मरणोपरान्त राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के लिए आवेदन किया था। आवेदन को लेकर वह दफ्तरों का चक्कर काटती रहीं परन्तु लम्बे समय तक प्रतीक्षा करने के बावजूद उन्हें इसका लाभ नहीं मिला। थक हारकर उन्होंने दिनांक-26.06.07 को सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्रखण्ड विकास पदाधिकारी लखनौर से जवाब-तलब किया। इस कार्रवाई ने रंग दिखाया और इन्हें पारिवारिक लाभ के रूप में 10,000/- रु० का चेक प्रदान किया गया।
झंझरपुर प्रखण्ड के लोहना उत्तरी पंचायत निवासी मलय नाथ मिश्र जो हिन्दुस्तान दैनिक के स्थानीय संवाददाता भी हैं, नालंदा खुला विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार विषय में दो वर्षीय स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे थे। द्वितीय वर्ष की परीक्षा ठीक जाने के बावजूद श्री मिश्रा को अनुतीर्ण कर परीक्षाफल भेज दिया गया। अच्छे अंक से पास होने की उम्मीद पाल बैठे श्री मिश्रा ने विश्वविद्यालय से प्राप्त इस परीक्षाफल से निराश होने की बजाय सूचना के अधिकार के तहत चुनौती देने की ठानी। श्री मिश्रा ने सूचना के अधिकार का प्रयोग कर विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाब-तलब किया। विश्वविद्यालय प्रशासन को जैसे ही आवेदन मिला, उन्हें अपनी भूल समझ में आई। विश्वविद्यालय ने जाँचोपरांत आवश्यक कार्रवाई कर श्री मलय नाथ मिश्रा को प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया।
अंधराठाढ़ी प्रखण्ड के मदना पंचायत के गीदरगंज पूर्वी टोला आँगनबाड़ी केन्द्र सं०-22 पर सेविका के चयन में काफी अनियमितता बरती गई थी। नियमानुकूल इस केन्द्र पर जिस अभ्यार्थी का चुनाव होना था उसका चयन न कर ग्राम पंचायत के मुखिया एवं बाल विकास परियोजना पदाधिकारी ने गुप्त रूप से दूसरे उम्मीदवार का चयन कर दिया। योग्यता रहने के बावजूद सेविका बन पाने से वंचित रही इसी पंचायत की रौशन आरा ने इसकी शिकायत अनुमंडल पदाधिकारी से लेकर जिला पदाधिकारी, मधुबनी तक से की। जिलाधिकारी की जाँच में अनियमितता का मामला प्रकाश में आया। इस आलोक में जिला कल्याण पदाधिकारी, मधुबनी ने दिनांक 26.12.05 को ही बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, अंधराठाढ़ी को उक्त केन्द्र का चयन रद्द कर नए सिरे से चुनाव कराने का निर्देश दे रखा था। परन्तु बाल विकास परियोजना पदाधिकारी अंधराठाढ़ी ने वर्षों तक इस आदेश को दबाए रखा और अवैध रूप से वह आँगनबाड़ी केन्द्र चलता रहा। शिकायतकर्ता रौशन आरा दर्जनों बार बाल विकास परियोजना पदाधिकारी कार्यालय का चक्कर लगाती रहीं परन्तु जब कहीं कोई कार्रवाई नहीं हुई तब आखिकार उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत बाल विकास परियोजना पदाधिकारी अंधराठाढ़ी से जवाब-तलब किया। इस आवेदन के दबाव में आकर बाल विकास परियोजना पदाधिकारी को कार्रवाई करनी पड़ी। कल्याण पदाधिकारी-सह-जिला प्रोग्राम पदाधिकारी, मधुबनी ने अपने कार्यालय पत्रांक-1246 दिनांक 01.1206 के द्वारा अवैध रूप से चयनित सेविका श्रीमति रूबी खातून का चयन रद्द कर दिया।
मधेपुर प्रखण्ड क बाथ पंचायत निवासी श्रीमती पुष्पा झा ने पंचायत शिक्षक पदक लिए आवेदन किया था। नियमानुकूल पुष्पा झा का चयन होना चाहिए था। परन्तु गुपचुप तरीके से सोनी कुमारी नाम की एक दूसरे अभ्यर्थी का जिन्हें पुष्पा से कम प्राप्तांक प्राप्त था, इस पद पर नियोजन कर दिया गया। सोनी कुमारी काफी समय तक इस पद पर बनी भी रही। परन्तु बाद में पुष्पा झा को जैसे ही गुप्त रूप से हुए इस नियोजन की जानकारी मिली तो उन्होंने अपने रिश्तेदार हरिश्चन्द्र इन के माध्यम से दिनांक 23.10.07 को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जिला शिक्षा अधीक्षक से जवाब-तलब किया। परिणामस्वरूप सोनी कुमारी को नौकरी गवानी पड़ी। पुष्पा झा आज मधेपुर प्रखण्ड के बाथ पंचायत स्थित नया प्राथमिक विद्यालय पुरारी टोल में पंचायत शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं।
जूलिता कुमारी, मधेपुर प्रखण्ड के भीठ-भगवानपुर पंचायत में लोक शिक्षिका के पद पर कार्यरत थीं। उन्हें लोक शिक्षण केन्द्र नवटोलिया में एक अन्य शिक्षक उमेश कामत के साथ प्रतिनियुक्त किया गया था। शिक्षिका जूलिता अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती रहीं। इसके एवज में इन्हें अगस्त 2005 तक प्रतिमाह 1,000/- रु का मानदेय मिलता रहा। परन्तु उसके बाद पंचायत के मुखिया एवं पंचायत सेवक ने मानदेय का भुगतान करने से इनकार कर दिया। जूलिता का अनुनय-विनय भी कोई काम नहीं आया। इस प्रकार वह 13 महीनों तक लगातार भूखे पेट अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती रहीं। इसी बीच सरकार द्वारा लोक शिक्षण केन्द्रों को बन्द कर दिया गया। नौकरी जाने के बाद वह इस्झारपुर शहर में अपना व्यवसाय करने लगीं। इझारपुर में प्रवास के दौरान जब उन्हें सूचना का अधिकार कानून की जानकरी मिली तो उन्होंने दिनांक 6.12.07 की इस आशय का एक आवेदन दायर कर पंचायत सचिव से जवाब-तलब किया। किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं करने पर उतारू पंचायत सचिव पर जब आवेदक को जानकारी देने की विवशता समझ में आई तो वे आवेदन दायर करने के कुछ ही दिनों बाद 13 महीने के बकाया मानदेय की राशि का चेक बनाकर लोक शिक्षिका जूलिता के घर पहुँचे। उन्होंने न सिर्फ 13,000/- रु० का चेक दिया बल्कि जूलिता से अपनी गलती के लिए माँफी भी माँगी।
मधुबनी जिला के लखनौर प्रखण्ड अन्तर्गत गंगापुर पंचायत के दैयाखरबार गाँव के गरीब 200 पेंशनधारी सरकार के नये नियमों के मुताबिक राष्ट्रीय वृद्धवस्था पेंशन एवं समाजिक सुरक्षा पेंशन का लाभ पाने के उद्देश्य से दैयाखरबार उप डाक घर में पासबुक खुलवाने हेतु महीनों चक्कर लगाते रहे। परन्तु पोस्टमास्टर उन लोगों का खाता खोलने को तैयार नहीं था। कई बार इसकी शिकायत पेंशनधारियों ने डाक अधीक्षक, जिला समाहर्ता, मधुबनी एवं डाक निरीक्षक झंझारपुर एवं प्रखण्ड विकास पदाधिकारी से की। परन्तु कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। इस कारण पेंशनधारियों को समय से पेंशन का भुगतान होना भी बंद हो गया। चारों ओर से कहीं कोई कार्रवाई नहीं होता देख पेंशनधारियों ने इसकी शिकायत गाँव के ही एक समाजिक कार्यकर्ता अरूण कुमार सिंह से की। श्री सिंह ने इन पेंशनधारियों की समस्या को देख सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत दिनांक 26.12.2006 को एक आवेदन डाक अधीक्षक मधुबनी के पास दायर किया। तब जाकर डाक विभाग की नींद खुली और पन्द्रह दिनों के भीतर डाक अधीक्षक मधुबनी ने स्वयं दैयाखरवार गाँव आकर मामले की जाँच की। दोषी पोस्टमास्टर श्री गणेश सिंह को तत्काल निलंबित करते हुए सभी पेंशनधारियों का खाता नजदीक के पोस्ट ऑफिस में खुलवाकर उनका पेंशन चालू करवाया।
चनौरागंज पंचायत की एक नि:सहाय वृद्ध महिला उर्मिला देवी जिन्दगी और मौत से जूझती इलाज हेतु 03 अप्रैल, 2008 को अनुमंडल अस्पताल झंझारपुर पहुँची। उनकी हालत अति दयनीय थी और उनके साथ कोई परिचारक भी नहीं था। बाबजूद वहाँ कार्यरत चिकित्सकों ने बिना उचित चिकित्सकीय सहायता दिए उन्हें दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। उनके पास न तो पैसा था और न ही कोई सहयोगी। इसलिए वह अस्पताल के बरामदे पर ही सहायता की आशा में पड़ी रहीं। दूसरे दिन उर्मिला देवी की दर्दनाक स्थिति की विस्तृत खबर विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई। जब उनकी स्थिति बिगड़ने लगी तो प्रखण्ड के चनौरागंज पंचायत के उप मुखिया भरत चौधरी ने दिनांक 07.04.08 को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत अनुमंडल पदाधिकारी, झंझारपुर से जवाब-तलब किया। मामला जीवन और मौत से जुड़ा होने के कारण 48 घंटों के भीतर प्रशासन ने जो सूचना उपलब्ध कराई वह भोजन के अभाव में एक महिला के इस नाजुक स्थिति में पहुँचने का खुलासा था। साथ ही अनुमंडल पदाधिकारी झंझारपुर ने अंचल निरीक्षक झंझारपुर एवं चौकीदारों के साथ उन्हें बेहतर चिकित्सा हेतु दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल सरकारी खर्च पर भेजा। इस बीच इतना विलंब हो गया था कि दरभंगा मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान उर्मिला देवी की मौत हो गई।
चन्देश्वर यादव फुलपरास प्रखण्ड के महिंदवार पंचायत के निवासी हैं। इस पंचायत में स्थानीय मुखिया, पंचायत सचिव एवं कनीय अभियंता आपस में साजिश कर एक ही सड़क पर बार-बार काम
दिखा राशि का उठाव करते थे। गाँव के सभी लोग इस घपले को समझ रहे थे लेकिन क्या पहल करें यह पता नहीं था। अंततः चन्द्रशेखर यादव ने पहल की। उन्होंने दिनांक ०८.02.07 को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दायर किया। आवेदन के परिणामस्वरूप सारा घपला खुलकर सामने आ गया। फुलपरास थाना में इस आशय की प्राथमिकी दर्ज कर दोषी पंचायत प्रतिनिधियों एवं सरकारी सेवकों पर कार्रवाई की गई।
रोजगार गारंटी योजना के तहत श्रीमती चिन्ता देवी पति श्री नन्दु सहनी, धनराज प्रसाद वल्द स्व० रधुनी महतो, गोपीचन्द प्रसाद वल्द श्री शकल प्रसाद सभी ग्राम-बैसखवा, पो०-राजपुर, प्रखंड-केसरिया जिला-पूर्वी चम्पारण को जॉब-कार्ड निर्गत था, लेकिन वित्तीय वर्ष 2006-07 में उन लोगों को एक दिन भी रोजगार नहीं दिया गया। सूचना के अधिकार के तहत सामाजिक कार्यकर्ता जयनाथ प्रसाद द्वारा सूचना पदाधिकारी, अपीलीय पदाधिकारी एवं सूचना आयोग बिहार, पटना में अपील दायर की गई। अपील पर लम्बी कार्रवाई के बाद उन लोगों में प्रत्येक को बेरोजगारी भत्ता 2890/- (दो हजार आठ सौ नब्बे) रुपया प्रोग्राम पदाधिकारी, केसरिया प्रखंड द्वारा भुगतान किया गया।
केसरिया प्रखंड के अन्तर्गत ग्राम-बैसखवा में वर्ष 2004 के दिसम्बर माह में एक सौ तेईस व्यक्तियों को लाल, हरा एवं पीला राशन कार्ड निर्गत किया गया था। लेकिन उन लोगों को नियमानुसार राशन मिट्टी तेल नहीं मिल रहा था। जयनाथ प्रसाद द्वारा जिला आपूर्ति पदाधिकारी, मोतिहारी का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया गया। लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। लाचार होकर सूचना आयोग बिहार, पटना में अपील नं०-5372,02-08 दायर की गई, इस अपील पर कार्रवाई करते हुए आयोग ने सूचना पदाधिकारी (जिला आपूर्ति पदाधिकारी), मोतिहारी को 250/- प्रतिदिन दंडित करते हुए दिनांक 1.07,2008 को सदेह उपस्थित होने का आदेश दिया है। वर्तमान में लाभुकों को राशन एवं साथ ही मिट्टी तेल मिल रहा है।
नालंदा जिला की प्रखंड परवलपुर के ग्राम पवई की अवकाश प्राप्त शिक्षिका श्रीमती सुशीला देवी पति श्री सियाशरण प्रसाद लकवा ग्रस्त थीं और समुचित इलाज के लिए अपने पेंशन पर ऋण लेना चाह रही थीं। वह कई बार वह आवेदन लेकर भारतीय स्टेट बैंक परवलपुर जा चुकी थीं। लेकिन ऋण प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकीं। 02 जून, 2007 को सुशीला देवी के पति सियाशरण प्रसाद ने जीवन सुधा मंच के कार्यालय में आकर अपनी समस्याओं के बारे में बताया। सूचना का अधिकार के तहत इस संस्था ने कार्य करना प्रारंभ कर दिया।
सुशीला देवी 3 फरवरी 1999 से 1900/- रु० मासिक पेंशन प्राप्त कर रही थीं। मंच के सचिव ने सुशीला देवी क पास उपलब्ध दस्तावेजों का निरीक्षण किया तो पाया कि महालेखाकार क पत्रांक 10-1547 दिनांक 09.05:2000 के अनुसार इनका संशोधित पेंशन 3,291/- रुपया प्रतिमाह वर्ष 2000 से ही मिलना था अर्थात् 1,900/- रु० के स्थान पर 3.291/- रु० प्रतिमाह मिलना चाहिए था।
दिनांक 08.06.2007 की तिथि में जिला लोक सूचना पदाधिकारी, नालंदा के आई. डी. संख्या 160 के माध्यम से इस संबंध में जब सूचना माँगी गई तब उन्होंने यह जानकारी दी कि संशोधित पेंशन की सूचना जिला कोषागार पदाधिकारी ने अपने पत्रांक 185 दिनांक 14.06.2000 को ही भारतीय स्टेट बैंक (पेंशन शाखा) को दे दी थी। बतौर सबूत उन्होंने पावती की छायाप्रति प्रेषित की।
कोषागार पदाधिकारी द्वारा जानकारी प्राप्ति के उपरांत 13 जून 2007 को भारतीय स्टेट बैंक की बिहारशरीफ शाखा तथा इसकी उप शाखा परवलपुर से सूचना माँगी गई। यह पूछा गया कि किस परिस्थिति में आज तक श्रीमती सुशीला देवी को संशोधित पेंशन भुगतान नहीं कराया गया है?
श्रीमती सुशीला देवी के पति सियाशरण प्रसाद ने 12.07.2007 को यह जानकारी दी कि सुशीला देवी के खाता संख्या 01190008188 में 1,39,090/- रु० जमा कर दिया गया है।
जयनाथ प्रसाद द्वारा केसरिया प्रखंड के अन्तर्गत रोजगार गांरटी योजना के अंतर्गत किए गए कार्यों की पूर्ण जानकारी एवं मस्टर रौल की सत्यापित प्रति माँगी गई थी। इसमें 30 फरवरी, 2007 की तिथि में भी मजदूरों को गलत ढंग से कार्यरत दिखलाने एवं मजदूरी भुगतान करने का प्रमाण-पत्र आवेदक को उपलब्ध कराया गया है। इस पर आगे की कार्रवाई चल रही है। सैकड़ों काडों पर तो चार-चार हजार रुपये मजदूरी का भुगतान दिखला दिया गया है लेकिन मजदूरों से पूछने पर ज्ञात हुआ है कि उन्होंने एक दिन भी काम नहीं किया है। इस पर आगे की कार्रवाई जारी है। फरवरी, 2007 मात्र 28 दिनों का ही है तो 30 दिनों का कहाँ से हो गया? सचमुच ही यह सरकार के लिए विचारणीय विषय है।
पंजाब नेशनल बैंक, बिहारशरीफ द्वारा दिया गया कर्ज 21 वर्षों में न तो न्यायालय दिला सका और न न्यायिक आदेश के बावजूद पुलिस कर्जदार को गिरफ्तार कर सकी। सूचना का अधिकार के प्रयोग से बैंक का डूबा हुआ पैसा वापस मिल गया।
जीवन सुधा मंच के सदस्य नागेन्द्र कुमार ने जिला नीलाम-पत्र शाखा में दायर सर्टिफिकेट वाद सं० 10/98-99 के अभिलेख से यह जानकारी माँगी कि पंजाब नेशनल बैंक द्वारा कर्जदार श्री नारायण यादव वर्तमान पार्षद् नगर निगम, बिहारशरीफ द्वारा लिए गये कर्ज की वसूली हेतु दायर वाद में कार्यवाही की विवरणी दी जाए। जिला नीलाम-पत्र पदाधिकारी, नालंदा ने अपने ज्ञापांक 412 दिनांक 1207,2007 की तिथि में यह बताया कि 31.05.1999 से 1903,2007 तक कुल 8 बार गिरफ्तारी का वारंट तथा तथा 2 बार कुकीं वारंट न्यायालय द्वारा जारी किया गया है परंतु सदर थाना की निष्क्रियता के कारण कर्जदार के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की गई।
आई.डी. संख्या 194 जिला लोक सूचना कार्रवाई के माध्यम से प्रभारी सदर से सूचना माँगी गयी कि न्यायिक आदेश के बावजूद कर्जदार क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया। दिनांक 0408.2007 को पार्षद् नारायण यादव गिरफ्तार कर लिए गए परन्तु थाना प्रभारी ने निर्धारित अवधि तक आवेदक को सूचना नहीं दी। मामला माननीय राज्य सूचना आयोग, पटना में दाखिल किया गया। जहाँ वाद संख्या 2040/07-08 कायम कर आरक्षी अधीक्षक नालंदा को नोटिस दिया गया। ज्ञापांक 6966 दिनांक 23. 09.2007 द्वारा आरक्षी अधीक्षक नालन्दा ने आवेदक को सूचना उपलब्ध करा दी।
प्राप्त सूचनानुसार दिनांक 11.09.2007 को कर्जदार नारायण यादव पुनः गिरफ्तार किए गए। तदुपरांत प्रथम गिरफ्तारी के समय 15,000/- रु० दूसरी गिरफ्तारी के बाद 30,000/- रु० तथा 5000/- रु० प्रति माह के वायदे पर न्यायालय द्वारा जारी गिरफ्तारी का वारंट वापस लिया गया। प्राप्त सूचनानुसार श्री यादव नियमित 5 हजार रु० माहवारी बैंक को भुगतान कर रहे हैं।
श्रीमती ममता देवी, पिता श्री सुरेन्द्र साह, शान्ति वस्त्रालय, भट्ठा बाजार पूर्णियाँ ने 10.09,2007 को प्रखंड विकास पदाधिकारी-सह-लोक सूचना पदाधिकारी, के० नगर, पूर्णियाँ के समक्ष सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दायर किया। उन्होंने प्रखंड शिक्षक नियुक्ति संबंधी सूचना प्राप्तांक सहित उपलब्ध कराने की माँग की थी।
आवेदक को अनुरोध प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर सूचना उपलब्ध नहीं कराने के कारण आयोग ने नि:शुल्क सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया। यह भी आदेश दिया कि यदि वे दिनांक 1501.2008 तक सूचना उपलब्ध नहीं कराते हैं तो ऐसा करने का कारण आयोग को प्रस्तुत करेंगे और यह भी स्पष्ट करेंगे कि दिनांक 14.12.2007 के प्रभाव से 250/- रु० प्रतिदिन की दर से क्यों नहीं आर्थिक दण्ड लगाया जाए?
अगली तिथि 17.01.2008 को प्रखंड विकास पदाधिकारी-सह-लोक सूचना पदाधिकारी का उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। यह मानकर कि उन्हें कोई स्पष्टीकरण नहीं देना हैं, दिनांक 14.12.2007 के प्रभाव से दिनांक 17.01.2008 तक 8750/- रु० का आर्थिक दण्ड लगाया गया। उन्हें आवेदक को 12.02.2008 तक पूर्णरूपेण सूचना देकर आयोग को सूचित करने का निदेश दिया गया। यह भी कहा गया कि यदि निर्धारित तिथि तक सूचना नहीं दी जाती है तो दिनांक 1801.2008 के प्रभाव से सूचना मिलने की तिथि तक आर्थिक दंड जारी रहेगा।
अगली तिथि दिनांक 14.02.2008 को प्रखंड विकास पदाधिकारी उपस्थित हुए और अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया। उन्होंने 2009.2007 को डाक से प्राप्त आवेदन को ससमय प्रखण्ड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी को हस्तान्तरित कर दिया। प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी द्वारा दिनांक 20.10.2007 तक शुल्क जमा करने हेतु पत्र भेज दिया गया। प्रखंड विकास पदाधिकारी ने कहा कि आयोग से उनको आर्थिक दंड लगाने के पश्चात् प्रथम बार उसकी सूचना प्राप्त हुई है। तत्पश्चात् उन्होंने आवेदक को सूचना देने हेतु विशेष दूत भेजा। उनके उपलब्ध न होने पर रजिस्टर्ड डाक से उन्हें वांछित सूचना भेज दी गई।
आयोग ने आदेश दिया कि उल्लिखित परिस्थिति में आर्थिक दंड के आदेश का अस्तित्व नहीं रह गया है और वाद को समाप्त किया जाता है। (वाद सं० 3695/07-08, रा०सू०आ०)
पंकज कुमार, ग्राम+पो०-विक्रमपुर, जिला बेगूसराय ने लोक सूचना पदाधिकारी अशोक कुमार सुमन, प्रभारी पदाधिकारी जिला सामान्य शाखा, समाहरणालय बेगूसराय को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवदेन दिया था। उन्होंने सूचना माँगी थी कि क्या विक्रम पंचायत में दिसम्बर 05 में रिक्तियों के विरुद्ध नियोजन सरकार के संकल्प 1748 दिनांक 2.09.2005 तथा सर्व शिक्षा अभियान, बेगूसराय के पत्र 913 दिनांक 12,09,2005 के प्रावधानों के विपरीत है? उन्होंने अमित कुमार, शिक्षा मित्र, विक्रमपुर पंचायत, के स्नातक प्रमाण-पत्र को सत्यापन करवाते हुए उसके सत्यापन प्रतिवेदन की एक फोटो प्रति भी मौगी।
आवेदक ने प्राप्त सूचना को गलत, अस्पष्ट एवं भ्रामक पाते हुए प्रथम अपील की। फिर उन्होंने इस आधार पर द्वितीय अपील की कि प्रथम अपील में कोई आदेश निर्गत नहीं हुआ।
राज्य सूचना आयोग ने दिनाक 14.12.07 को सुविचारित परीक्षण करने के पश्चात् निर्णय लिया कि धारा-19(3) के तहत सुनवाई का समुचित आधार है। आयोग ने दिनांक 17.1.08 तक देय सूचनाएँ आवेदक को उपलब्ध कराने का निदेश दिया। यह भी कहा गया कि यादि 17.1.08 तक सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं तो ऐसा करने का कारण आयोग को प्रस्तुत करें। यह भी स्पष्ट करें कि धारा-20(1) के तहत क्यों नहीं उनके विरुद्ध आज दिनांक 14.12.07 के प्रभाव से 250/- रु० प्रतिदिन की दर से आर्थिक दण्ड लगाया जाए।
अगली तििथ 22.1.08 को सहायक लोक सूचना पदाधिकारी, जिला बेगूसराय का दिनाक 4.1.08 का पत्र आयोग को प्राप्त हुआ, परन्तु सूचना संलग्न नहीं थी। आयोग ने कहा कि सूचना सहायक लोक सूचना पदाधिकारी की ओर से न आकर लोक सूचना पदाधिकारी की ओर से आनी चाहिए। जिला पदाधिकारी, बेगूसराय को निदेशित किया गया है कि वे अपने कार्यालय के लोक सूचना पदाधिकारी को यह निदेश दें कि प्रपत्र-'क' के अनुसार कडिकावार सूचना आवेदक को दिनांक 18208 तक देते हुए आयोग को भी सूचित करें। स्पष्टीकरण अप्राप्त रहने के कारण 250/- रु० प्रतिदिन की दर से अधि कतम 25,000/- रु० आर्थिक दण्ड लगाया गया।
अगली तिथि 21.2.08 को प्रभारी पदाधिकारी, जिला सामान्य शाखा, समाहरणालय, बेगूसराय का दिनांक 7.208 का प्रतिवेदन प्राप्त हुआ जिसके अनुसार उन्होंने सूचना आवेदक को भेज दी थी और उसकी प्रति आयोग को भी दी है। लोक सूचना पदाधिकारी, जिला समाहरणालय, बेगूसराय को विलंब के लिए दिनांक 22.1.08 से दिनांक 7.208 तक 17 दिनों के लिए 250/- रु० प्रतिदिन की दर से कुल 4250/- रु० का आर्थिक दण्ड लगाते हुए वाद की कार्रवाई समाप्त कर दी गई। (वाद सं० 3786/07-08, रा०सू०आ०)
नगर पंचायत कोरया के केन्द्र सं.-10 में आँगनबाड़ी सेविका की नियुक्ति के लिए आवेदन लिया गया और गलत तरीके से अधिकारियों ने ग्राम भलुठी दयाराम, वार्ड नं०-6, नगर पंचायत कटेया, केन्द्र सं०-10 में शशिबाला यादव, जो मेधा सूची में दूसरे नम्बर पर थी, की नियुक्ति कर दी। उनकी नियुक्ति सी.डी.पी.ओ., वार्ड कमिशनर ने मिलकर की थी। मेधा सूची में प्रथम स्थान रखने वाली अभ्यार्थी ने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दिया और उन्हें लोक सूचना पदाधिकारी सी.डी.पी.ओ., कटेया ने सूचना दी कि यद्यपि मेधा सूची में आपका प्रथम स्थान है लेकिन आपके ससुर पेंशनभोगी राजस्व कर्मचारी हैं, इसलिए आपकी नियुक्ति नहीं की गई है। इस पर पुष्पा देवी के ससुर श्री भागवत साह ने कल्याण पदाधिकारी गोपालगंज को आवेदन देकर माँग की कि यह बताया जाए कि पेंशनभोगी कर्मचारी सरकारी कर्मचारी है।
कल्याण पदाधिकारी ने उस आवेदन पर विचार करते हुए बताया कि पेंशन भोगी कर्मचारी सरकारी कर्मचारी नहीं है। अत: शशिबाला को अपदस्थ करते हुए आँगनबाड़ी सेविका के पद पर पुष्पा देवी की नियुक्ति की गई।
नालन्दा जिला अन्तर्गत, बिन्द प्रखण्ड के ग्राम पंचायत राज कथराही में वर्ष 06-07 में पंचायत शिक्षक नियोजन हेतु आवेदन पत्र लिया जा रहा था। अन्य आवेदकों की भांति रणजीत कुमार (प्राप्तांक 632), पुष्पा कुमारी (प्राप्ताक 62s), मनोज कुमार (प्राप्ताक 570) सभी ग्राम लालु विगहा, पो० कोरारी, प्रखण्ड-बिन्द (नालन्दा) ने भी नियोजन हेतु आवेदन दिया था। इन तीनों आवेदकों ने कॉन्सलिंग में भाग भी लिया, परन्तु राधा कुमारी (प्राप्तांक 635) और मनोज प्रसाद (प्राप्तांक 658) जैसे अप्रशिक्षित आवेदकों ने नियुक्ति पाने में सफलता प्राप्त की। अप्रशिक्षित आवेदक रणजीत कुमार, पुष्पा कुमारी एवं मनोज कुमार को यह विश्वास था कि इनसे ज्यादा इन्टरमीडियट में अंक प्राप्त करने वाले अन्य आवेदक नहीं हैं इसलिए इन तीनों की नियुक्ति में इन लोगों को संदेह नहीं था। परन्तु पूर्ण विश्वास तब निराशा में बदल गयी जब इन लोगों से भी ज्यादा अंक राधा कुमारी एवं मनोज प्रसाद का पाया गया। परिणामस्वरूप इनका चयन नही हो सका।
तदुपरान्त आवेदकों ने जिलाधिकारी के जनता दरबार में आवेदन देकर फरियाद किया, परन्तु परिणाम शून्य रहा। फिर इन लोगों ने जीवन सुधा मंच कार्यालय में दिनांक 14-09-07 तिथि को आकर अपनी व्यथा कही। मंच ने सर्वप्रथम कथराही पंचायत में नियुक्त किए गए सभी पंचायत शिक्षकों के इन्टरमीडियट अंक-पत्र की सत्यापित छायाप्रति प्रखण्ड विकास पदाधिकारी सह लोक सूचना पदाधिकारी से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा–6(1) के तहत माँग की परन्तु सूचना निर्धारित अवधि 30 दिनों तक प्राप्त नहीं कराई गई। मंच ने बाध्य होकर शिकायत पत्र, राज्य सूचना आयोग में दाखिल किया। आयोग ने केस संख्या 3326/07-08 कायम कर 10 दिसम्बर 2007 तक निशुल्क सूचना आवेदक को उपलब्ध कराने का आदेश पारित किया। आगामी तिथि 23-01-08 को निर्धारित की गई।
इसी बीच प्राप्त करायी गई सूचना से नियोजित शिक्षिका राधा कुमारी का अंक-पत्र सम्बन्धित कॉलेज से जाँच होकर आ गया। इस जाँच से यह प्रमाणित हुआ कि राधा कुमारी का प्राप्तांक 635 नहीं बल्कि 502 है।
मंच सचिव श्री आर्य ने आयोग में निर्धारित तिथि 23 जनवरी 08 को रिज्वायडर दिया। साथ ही जाँच कराए गए सम्बन्धित कॉलेज का क्रास लिस्ट फर्जी अंक-पत्र के साथ साक्ष्य में लगाया। आयोग ने रिज्वायंडर का उत्तर देने के लिए दिनांक 27-02-08 की तिथि निर्धारित की। निर्धारित तिथि पर विपक्षी उपस्थित नहीं हुए। पुन: 09-04-08 की तिथि निर्धारित की गई। 07-04-08 को आवेदक को जो रिज्वायंडर का उत्तर प्राप्त कराया गया वह भ्रामक और तथ्यहीन था। आयोग ने 07-04-08 अधिनियम की धारा-19(8)क के तहत दी गई शक्तियों को प्रस्तावना के साथ पढ़ते हुए आयुक्त एवं सचिव मानव संसाधन विकास विभाग को निदेश दिया कि सुश्री राधा कुमारी की नियुक्ति में भ्रष्टाचार की जाँच मुख्यालय स्तर के पदाधिकारी जिनकी वरीयता संयुक्त सचिव से कम नहीं हो, से कराकर आयोग को सूचित करें। वहीं दूसरी ओर पंचायती राज विभाग, बिहार पटना को निदेश दिया कि नरेन्द्र कुमार सिंह को सेवा से हटाने हेतु नियमानुसार कार्रवाई करें। साथ ही दिनांक 23-01-08 के प्रभाव से 09-04-08 की तिथि तक 20 हजार रुपया आर्थिक दण्ड भी पंचायत सचिव पर लगाया गया। सुनवाई की अगली तिथि 25-06-08 निर्धारित की गई। निर्धारित तिथि पर मानव विकास विभाग ने पत्रांक 2224 दिनांक 17-06-08 से सूचित किया कि सुश्री राधा कुमारी का नियोजन नियमानुकूल नहीं है तथा मंच द्वारा जाँच कराया गया प्राप्तांक 502 सही पाया गया। पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव श्री पंचम लाल का पत्र संख्या 2266 आयोग को प्राप्त हुआ। इस पत्र के अनुसार जिलाधिकारी नालन्दा ने पंचायत सचिव को सेवा मुक्त करने का निर्देश पारित किया है।
जीवन सुधा मंच ने इन दोनों विभागों के निर्देशों के आलोक में जिला शिक्षा अधीक्षक एवं जिला पंचायती राज विभाग के पास प्रपत्र-'क' के द्वारा दिनांक 28.06.08 को यह जानकारी माँगी कि आयोग के निर्देश पर सम्बन्धित विभागों द्वारा पारित आदेश में अब तक क्या कार्रवाई की गई है।
अभी तक सम्बन्धित अधिकारियों ने आवेदक को सूचना उपलब्ध नहीं कराई है। परिणामस्वरूप प्रथम अपील दायर की गई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार बिन्द थाना काण्ड संख्या 63/08 दायर कर दोनों शिक्षकों पर प्राथमिकी दर्ज करा दी गई है।
श्री मसीहउद्दीन, अध्यक्ष हयूमैन राईट्स वाच, ग्राम+पो० छोटा शेखपुरा भाया हसुआ; जिला नवादा ने दिसंबर, 2006 में वित्त (अंकेक्षण) विभाग के विशेष जाँच दल द्वारा समर्पित प्रतिवेदन के आधार पर उस कार्यपालक अभियन्ता का नाम एवं पदस्थापन अवधि की सूचना माँगी थी जिसने जाँच में सहयोग नहीं किया था। आवेदक ने सूचना आयोग में आवेदन दिया जिस पर आयोग ने अपर समहर्ता, नवादा को 02.11.2007 तक मंतव्य देने का निदेश दिया।
05.11.2007 को आयोग ने पाया कि अपर समाहत्ता नवादा द्वारा 29.06.2007 को पत्र में दी गई सूचना स्पष्ट एवं संतोषप्रद नहीं है। आवेदक ने कार्यपालक अभियन्ता का नाम एवं पदस्थापना अवधि जानना चाहा था जबकि जवाब में यह बताने की चेष्टा की गई कि कार्यपालक अभियंता द्वारा हमेशा सहयोग दिया जाता है। प्रश्न स्पष्ट था पर उत्तर भ्रामक। अत: कार्यपालक अभियंता, ग्रामीण कार्य विभाग, कार्य प्रमंडल, नवादा को निदेश दिया गया कि आवेदक को दिनांक 22.11.2007 तक सूचना पूर्णरूपेण देते हुए आयोग को सूचित करें।
26.11.2007 को मंतव्य अप्राप्त पाया गया। उन्हें अंतिम मौका देते हुए अपने मंतव्य एवं स्पष्टीकरण के साथ आयोग के सम्मुख उपस्थित होने का निदेश दिया गया। उन्हें सूचना 19.12.2007 तक देने का निदेश देते हुए अगली तिथि 03.01.2008 निर्धारित की गई।
03.01.2008 को पाया गया कि आवेदक को दिनांक 15.11.2007 को ही सूचना दे दी गई है। (वाद सं०-2146/07-08, रा०सू०आ0)
आवेदक रवि कुमार पाण्डेय, द्वारा डॉ० अमित कुमार, आदर्शनगर, समस्तीपुर ने राज्य सूचना आयोग को पंचायत शिक्षकों के मानदेय भुगतान में विलम्ब के सम्बंध में आवेदन दिया। आयोग ने प्रखंड विकास पदाधिकारी, समस्तीपुर की 01.10.2007 तक देय सूचना आवेदक की उपलब्ध कराने का निदेश दिया।
प्रखंड विकास पदाधिकारी ने अपने पत्रांक 1684, दिनांक 01.10.2007 में स्पष्ट किया कि आवेदक को सूचना उपलब्ध करा दी गई है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस संबंध में आवेदक द्वारा मामला उठाये जाने के उपरांत आवश्यक निदेश सभी पंचायत सेवकों को दिए गए, जिन पर अपेक्षित कार्रवाई भी हुई। आवेदक ने इस पर वाद निरस्त किए जाने का अनुरोध किया है।
राज्य सूचना आयोग ने यह पाते हुए कि आवेदक को सभी देय सूचनाएँ यथासमय उपलब्ध करा दी गई है, वाद को समाप्त कर दिया। (वाद सं०-2144/07-08, रा०सू०आ०)
रोड, ककड़बाग, पटना ने जानकारी कॉल सेन्टर के माध्यम से आयोग को आवेदन पत्र दिया। इसके पूर्व सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत 2203,2007 को आवेदन पत्र दिया गया था तथा प्रथम अपील दिनांक 31.08.2007 को की गई थी। आयोग ने अपने आदेश दिनांक 31.08.2007 में निदेश दिया कि लोक सूचना पदाधिकारी, ग्रामीण विकास विभाग, बिहार, पटना 01.10.2007 तक मंतव्य दें और इसके पूर्व आवेदक को सूचना उपलब्ध करा दें।
आवेदक ने उप विकास आयुक्त वैशाली, जिला पंचायत प्रशाखा के माध्यम से सूचना मॉंगी थी कि दिनांक 1507.2005 की बैठक में सुनिश्चित वृत्ति उन्नयन योजना (ए.सी.सी.) के अंतर्गत 95 पंचायत सेवकों को देय प्रथम एवं द्वितीय वृत्ति उन्नयन योजना ज्ञापांक 326, दिनांक 1507.2005 द्वारा लाभान्वित किया गया। लेकिन उन्हें लाभान्वित नहीं किया गया, इसका कारण स्पष्ट करें। दिनांक 04,102007 को आयोग ने पाया कि लोक सूचना पदाधिकारी, पंचायती राज विभाग ने आवेदक को सूचना दे दी है। लोक सूचना पदाधिकारी ने आयोग को प्रतिवेदित किया कि सारी प्रक्रियाओं को पूरी करते हुए एक महीने के अंदर बैठक कर लिए जाने की पूरी संभावना है। तदानुसार आवेदक को देय ए.सी.पी. का लाभ प्राप्त हो जाएगा। (वाद सं० 2161/07-08, रा०सू०आ०)
आवेदक ओम प्रकाश पाण्डेय, हेल्थ इन्सटीच्यूट रोड, श्री कृष्ण बिहार, बेउर, अनीसाबाद, पटना ने लोक सूचना पदाधिकारी, पटना नगर निगम से विभिन्न मदों में आवंटित राशि का विवरण एवं खर्च का विवरण माँगा था। उनके आवेदन पर आयोग ने दिनांक-31.08.2007 को विचार किया एवं निगमायुक्त पटना नगर निगम, पटना से 03.10.2007 तक कडिकावार मंतव्य की माँग करते हुए उक्त तिथि से पूर्व आवेदक को सूचना देने का निदेश दिया।
8.10.07 को लोक सूचना पदाधिकारी, पटना नगर निगम उपस्थित हुए और निगमायुक्त का पत्र समर्पित किया। पत्र के अनुलग्नक में आवेदक को दी गई सूचना की प्रति संलग्न थी। शेष सूचना के बारे में निगमायुक्त ने कहा था कि सूचना जटिल एवं विस्तृत रूप में है, जिसके उत्तर देने में काफी समय लगेगा।
आयोग ने दर्ज किया कि आवेदक ने अपना प्रपत्र-'क' दिनांक 29,04,07 को दिया है। सूचना देने के लिये नगर निगम को 5 महीने 10 दिन अभी तक मिल चुके हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत प्रपत्र-'क'क समर्पण कर पश्चात् सभी अपीलीय प्रक्रिया पूरी होकर ज्यादा से ज्यादा 12 सप्ताह के अंदर नागरिक को सूचना देना अनिवार्य है। निदेशित किया गया कि सूचना 30.11.07 तक उपलब्ध कराई जाए।
3.12.07 को लोक सूचना पदाधिकारी, पटना नगर निगम ने आयोग को दी गई सूचना की एक प्रति दाखिल की और कहा कि आवेदक को सूचना दे दी गई। (वाद सं०- 2183/07-08, रा०सू०आ०)
राम किशोर प्रसाद, बड़ी खगौल, पो० खगोल, जिला पटना ने अपना आवेदन आयोग को दिया जिससे कारा अधीक्षक-सह-लोक सूचना पदाधिकारी से सूचना की माँग की गई थी। आयोग ने आवेदन पत्र की प्रतिलिपि कारा अधीक्षक-सह-लोक सूचना पदाधिकारी को भेजते हुए 20.4.07 तक मंतव्य की माँग की और उक्त तिथि के पूर्व आवेदक को देय सूचना उपलब्ध कराने का निदेश दिया। 26.4.07 को लोक सूचना पदाधिकारी-सह-कारा अधीक्षक उपकारा, दानापुर का मंतव्य प्राप्त हुआ जिससे आयोग संतुष्ट नहीं हुआ। अत: एक प्रति कारा महानिरीक्षक, गृह (कारा) विभाग, बिहार, पटना को भेजते हुए उन्हें निदेशित किया गया कि 18.5.07 तक आवेदक की कडिकावार मतव्य देकर एक प्रति आयोग को उपलब्ध कराई जाए।
कारा महानिरीक्षक का मंतव्य एवं कारा अधीक्षक, उपकारा दानापुर का प्रतिवेदन दिनांक 23.5.07 को प्राप्त हुआ। आयोग ने दोनों प्रतिवेदनों में विरोधाभास पाया। कारा अधीक्षक, उप कारा, दानापुर के प्रतिवेदन में कहा गया कि बंदी कारा प्रवेश पंजी 1990-92 की पुनः जाँच की गई, परन्तु वर्णित अवधि में वादी के नाम की प्रविष्टि नहीं पाई गई है। अतएव वांछित प्रमाण-पत्र निर्गत करने में वे असमर्थ हैं। दूसरी ओर कारा महानिरीक्षक, बिहार, पटना का कहना था कि यह सूचना अपने विरोधी पक्ष के बारे में माँगी गई है, अत: यह सूचना देना संभव नहीं है। आयोग ने दर्ज किया कि कारा महानिरीक्षक को कैसे विदित हुआ कि आवेदक एवं जिसके संबंध में सूचना माँगी गई हैं, वे एक-दूसरे के विरोधी हैं? अत: सूचना नहीं देने का औचित्य क्या है, उन्हें आयोग को बताना चाहिए। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की किस धारा के अन्तर्गत सूचनाएँ नहीं देनी है यह भी उन्हें स्पष्ट करना चाहिए। आवेदक ने रिज्वायंडर देकर कहा कि उन्हें इस बात की पूरी जानकारी है कि वे उस अवधि में उपकारा, दानापुर में बंदी थे।
दिनांक 27.6.07 की सुनवाई में आयोग ने कारा महानिरीक्षक, बिहार, पटना को निदेश दिया कि देय सूचना आवेदक को दिनांक 13.7.07 तक देते हुए आयोग को उसकी प्रति भेजें। दिनांक 18.7.07 को उपकारा अधीक्षक-सह-लोक सूचना पदाधिकारी उपकारा, दानापुर का मंतव्य प्राप्त हुआ जिनके अनुसार आवेदक को सूचना उपलब्ध करा दी गई। (वाद सं० 591/06-07, रा०सू०आ०)
आवेदिका प्रियंवदा भारती, ग्राम+पो० तरवाँ, प्रखण्ड वजीरगंज, जिला गया ने दिनांक 1.2.07 को सूचना के अधिकार के तहत जिला शिक्षा अधीक्षक, गया को आवेदन दिया। आवेदन में सूचना माँगी गई कि तरवाँ ग्राम पंचायत सचिव, मनोज कुमार द्वारा यह जानकारी दिलाई जाए कि पिछड़ा वर्ग की महिला हेतु सुरक्षित पंचायत शिक्षक पद पर आवेदिका को नियुक्ति पत्र क्यों नहीं दिया गया है?
आवेदिका ने अभिलेख सं० 958/07-08 में पारित आदेश के अनुपालन से असंतुष्ट होकर आयोग को पुनः आवेदन दिया था। इसे पुनः सुनवाई हेतु मंजूर कर लिया गया क्योंकि जिला शिक्षा अधीक्षक ने केवल यह सूचना दी थी कि उनके आवेदन को प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को भेजा गया है और प्रखण्ड विकास पदाधिकारी ने कोई सूचना नहीं दी। आयोग ने दिनांक 19.11.07 को प्रखण्ड विकास दाधिकारी, वजीरगंज की निदेश दिया कि आवेदिका की दिनांक 6.12.07 तक सूचना उपलब्ध करा दें और आयोग को भी सूचित करें।
प्रखण्ड विकास पदाधिकारी से दिनांक 10.12.07 तक सूचना अप्राप्त रही पर दिनांक 21.1.08 को वह उपस्थित हुए तथा दिनांक 5.12.07 का पत्र भी प्रस्तुत किया गया। इस पत्र के अनुसार पंचायत सचिव, ग्राम पंचायत तरवाँ द्वारा सूचना उपलब्ध करा दी गई है। पंचायत सचिव, ग्राम पंचायत तरवाँ ने अपने पत्रांक 18 दिनांक 31.11.07 द्वारा बताया कि सुश्री प्रियंवदा भारती की नियुक्ति संबंधी सारी प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई है। सुश्री भारती को ग्राम तरवाँ के प्रा०वि० में पंचायत शिक्षक पद पर नियुक्त कर लिया गया है। (वाद सं० 2114/07-08, रा०सू०आ०)
श्रीमती सुनीता कुमारी, पति-सुरेन्द्र कुमार, मुहल्ला-गंगाचक मलकाना, थाना+पो०-मसौढ़ी, जिला-पटना ने वार्ड सं०-18 (पूर्व वार्ड सं०-7) में आँगनबाड़ी सेविका पद के लिये आवेदन दिया था। इस वार्ड में पूर्व से बढ़ई टोला में एक केन्द्र कोड सं० 83 चलाया जा रहा था। बाल विकास परियोजना पदाधिकारी कार्यालय द्वारा एक नया केन्द्र गंगाचक, मलकाना, कोड सं0 172 खोला गया जिसके लिये आवेदन माँगा गया। उल्लेखनीय है कि आवेदिका का घर नया आँगनबाड़ी केन्द्र के पोषक क्षेत्र में है।
मेधा सूची में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली पुराने पोषक क्षेत्र बढ़ई टोला कोड सं० 83 की बेटी थी। द्वितीय स्थान की आवेदिका दूसरे वार्ड की रहने वाली थी। इस कारण आवेदिका का नाम मेधा सूची में घोषित किया गया। पर आवेदिका की नियुक्ति में टाल-मटोल किया जा रहा था।
आवेदिका ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का सहारा लिया। उसने चयन प्रक्रिया संबंधी सूचनाएँ माँगी। आयोग ने आवेदन स्वीकृत करते हुए बाल विकास परियोजना पदाधिकारी से मंतव्य माँगा। बाल विकास परियोजना पदाधिकारी के प्रतिवेदन के अनुसार आंगनबाड़ी केन्द्र गंगाचक मलकाना (पूर्वी) कोड सं० 172 पर आवेदिका का चयन सेविका के पद पर दिनांक 5807 को हो गया है तथा वह प्रशिक्षण प्राप्त कर केन्द्र का संचालन कर रही है। (वाद सं० 2157/07-08, रा०सू०आ०)
पोरस कुमार यादव, सहोड़ा, अंचल-संग्रामपुर, भाया तारापुर, जिला मुंगेर ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अधीन जमीन बन्दोबस्ती वाद सं० 3/93-94, 4/93-94, 1/94-95, एवं 2/94-95 के संपूर्ण अभिलेख एवं कृत कार्रवाई की सूचना माँगी।
राज्य सूचना आयोग ने वाद सं० 1463/07-08 में 8,807 को इस निर्देश के साथ वाद समाप्त कर दिया था कि आवेदक शेष सूचनाएँ अनुमंडल पदाधिकारी, तारापुर, मुंगेर से प्राप्त कर लें। आवेदक ने पुनः आवेदन देकर कहा कि अनुमंडल पदाधिकारी से उन्हें कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई। अत: वाद सं० 1463/07-08 को अगली सुनवाई हेतु मंजूर कर लिया गया। अनुमंडल पदाधिकारी को निदेशित किया गया कि आवेदक को माँगी गयी सूचना 22.11.07 तक देते हुए आयोग को सूचित करें।
दिनांक 6.3.08 की अनुमंडल पदाधिकारी, तारापुर ने उपस्थित होकर बताया कि आवेदक ने प्राप्ति रसीद देते हुए आयोग को सूचित किया है कि देय सूचना मिल गई है। (वाद सं० 2164/07-08, T0q03T0)
भरत साह पिता, स्व० कुलबुल साह, चुनौटी कुआँ, फुलवारी शरीफ, पटना ने राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन के लिए फुलवारीशरीफ प्रखंड कार्यालय में दिनांक 17 जनवरी 2004 को आवेदन दिया था। प्रखंड विकास पदाधिकारी ने सभी औपचारिकता-पूरी करके आवेदन अपने पत्रांक 155 दिनांक 27 जनवरी, 2004 के माध्यम से अनुमंडलाधिकारी, पटना सदर को भेज दिया था। भरत साह ने कई बार अनुमंडल कार्यालय का चक्कर लगाया, परन्तु कार्यालय ने उन्हें उल्टा-सीधा समझकर लौटा दिया। तत्पश्चात भरत साह ने जिलाधिकारी, पटना के जनता दरबार में दिनांक 12 अक्टूबर 2006 को अर्जी लगाई, परन्तु वहाँ भी उन्हें निराशा हाथ लगी। थक-हार कर भरत साह ने दिनांक 12 फरवरी, 2008 को सूचना के अधिकार क माध्यम से अपना आवेदन ग्रामीण विकास विभाग क लोक सूचना पदाधिकारी क पास भेजा।
जानकारी सूचना केन्द्र के माध्यम से प्राप्त आवेदन को विभाग ने ज्ञापांक 2121 दिनांक 22 फरवरी, 2008 को प्रखंड विकास पदाधिकारी, फुलवारी शरीफ, पटना के पास भेज दिया। इस बीच कोई सूचना नहीं दी गई। भरत साह ने दिनांक 11 अप्रील 2008 को प्रथम अपील की और इनके आवेदन को अनुमंडलाधिकारी, पटना सदर को भेज दिया गया। इस दौरान भी इन्हें किसी तरह की सूचना नहीं दी गई। पुन: भरत साह ने दिनांक 20 मई, 2008 को द्वितीय अपील की। इस अपील के बाद भरत साह को दिनांक 10 जून 2008 को राष्ट्रीय वृद्धवस्था पेंशन योजना का डाक घर में खोले गए खाता का नम्बर बता दिया गया। भरत साह ने अपने खाता सं० 41286384 के माध्यम से 800 रुपये प्राप्त किए। यह सभी कार्रवाई प्रखंड विकास कार्यालय द्वारा निष्पादित की गई। परन्तु स्थानीय वार्ड पार्षद ने पहले से दिए गए, भरत साह के पीला कार्ड को वापस ले लिया।
जब वाद सं० 7917/08-09 राज्य सूचना आयोग, बिहार के कार्यालय में दिनांक 18 जुलाई को खुलनेवाला था, स्थानीय वार्ड पार्षद ने अपने विरुद्ध कार्रवाई के खौफ से 17 जुलाई की देर रात भरत साह को पीला कार्ड लौटा दिया। आज भरत साह के पास वृद्धवस्था पेंशन पासबुक के साथ पीला कार्ड भी है।
प्रवीण क. लाड, मुम्बई ने एडीशनल जेनरल मैनेजर एवं अपीलीय प्राधिकार सेंट्रल रेलवे के पास आवेदन दिया था। उन्होंने दिनांक 11 अगस्त, 2004 को अपनी शिकायत में श्री शिवाजी गणेश नायडू, न्यूट्रल कट्रोल एट कैरेज वर्कशॉप, मर्टूगा, सेंट्रल रेलवे के बारे में सूचनाएँ माँगी थी। लोक सूचना पदाधिकारी ने दिनांक 27 अप्रील 2006 को पत्र के जरिए सूचित किया कि कार्यालय द्वारा जाँच कर श्री नायडू पर जुर्माना लगाया गया। उन्होंने यह सूचना भी दी कि नए आरोपों के आलोक में जाँच पुन: प्रारंभ की गई है लेकिन जाँच प्रक्रिया प्रभावित होने के कारण इस संबंध में सूचना नहीं दी जा सकती।
सूचना से असंतुष्ट होकर आवेदक ने 8 मई 2006 को अपील दायर की जहाँ लोक सूचना पदाधिकारी के निर्णय को सही ठहराया गया। तब 7 अगस्त 2006 को आवेदक ने द्वितीय अपील दायर की।
केन्द्रीय सूचना आयोग ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद निम्नलिखित निर्णय दिया :-
शिक्षा निदेशालय के आदेशों को न मानने पर दिल्ली के एक स्कूल पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। निदेशालय ने स्कूल से बखास्त भारती दंपत्ति को नियुक्त करने का आदेश दिया था जिसे स्कूल ने नहीं माना। निदेशालय के दो बार कहने के बावजूद नियुक्ति न होने पर भारती दंपत्ति ने सूचना के अधिकार के माध्यम से जब इसका जवाब माँगा तो सूचना आयोग ने यह निर्णय दिया। यह सूचना के अधिकार के अन्तर्गत लगायी गयी अब तक की सबसे बड़ी जुर्माना राशि है।
यह मामला कीर्ति नगर के एस. डी. सेकेन्डरी स्कूल का है। स्कूल में भौतिकी प्रयोगशाला सहायक के पद पर कार्यरत पारूल भारती ने अपने लैब इंचार्ज के खिलाफ पुलिस में मई 1999 में यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी जिसके बाद स्कूल ने भारती और उनके पति को बखास्त कर दिया था। उनके पति राजीव स्कूल में सामाजिक विज्ञान पढ़ाते थे। बखास्तगी के बाद उन्होंने स्कूल के बारे में दिल्ली महिला आयोग से शिकायत की। महिला आयोग ने स्कूल से कहा कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष लोगों का पैनल गठित कर इस मामले की सच्ची तस्वीर पेश करे। पैनल के गठन के बदले स्कूल ने पारूल और राजीव को अनुशासनिक कार्रवाई कर निलंबित कर दिया।
इसके बाद भारती दंपत्ति ने शिक्षा निदेशालय में शिकायत की। शिक्षा निदेशालय ने स्कूल को आदेश दिया कि या तो वह राजीव और पारूल को नियुक्त करे या आर्थिक सहायता और स्कूल की मान्यता के निरस्तीकरण के लिए तैयार रहे। निदेशालय के आदेशों को मानने की बजाए स्कूल ने बखास्तगी को जायज ठहराने का दबाव बनाया।
अन्त में हर जगह से निराश होकर भारती दंपत्ति ने सूचना के अधिकार के माध्यम से जवाब माँगा कि क्यों अब तक निदेशालय के आदेशों के बाद भी उनकी नियुक्ति नहीं हुई। लेकिन स्कूल ने उनकी अर्जी नजरअंदाज करते हुए कहा कि सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूल इस कानून के दायरे में नहीं आते। उनके दूसरे आवेदन का भी कोई जवाब नहीं मिला। अन्ततः मामला सूचना आयोग के पास पहुँचा।
आयोग ने स्कूल के जन सूचना अधिकारी को झूठी और भ्रामक सूचना देने के लिए भारती दंपत्ति को 25000-25000 हजार रुपये देने का आदेश दिया। साथ ही सूचना आयुक्त एम. एम. अंसारी ने मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए स्कूल प्रशासन को आदेश दिया कि वह भारती दंपत्ति को दो लाख रुपये क्षतिपूर्ति जुर्माना दे। आयोग ने यह भी आदेश दिया है कि स्कूल की मान्यता रद्द कर दी जाए और वित्तीय सहायता तुरंत बंद की जाए।
सूचना के अधिकार के माध्यम से बरसों से लटके काम किस प्रकार चंद महीनों में हो रहे हैं, इसका उदाहरण हाल ही में देखने को मिला। नोएडा की ऊषा माथुर सरोजनी नगर के केन्द्रीय विद्यालय की सेवानिवृत्त प्राचार्या हैं। पिछले 15 सालों से स्कूल प्रशासन ने उनका पैसा रोक रखा था। दफ्तरों के अनेक चक्कर काटने के बाद भी उनका रुका हुआ पैसा नहीं मिला। स्कूल से लेकर शिक्षा विभाग तक उन्होंने अपने बकाए के लिए गुहार लगाई, लेकिन हर जगह सिर्फ असफलता ही मिली।
हर जगह से निराशा हो चुकी ऊषा माथुर ने हिम्मत तो नहीं हारी लेकिन उनका शरीर जवाब देने लगा। शारीरिक तकलीफ के कारण उन्होंने दफ्तरों के चक्कर लगाने बंद कर दिए। इसी दौरान उन्होंने सूचना के अधिकार के बारे में सुना। अधिक जानकारी के लिए उन्होंने आरटीआई हल्पलाइन में फोन लगाकर सूचना कानून के इस्तेमाल के बारे में जानकारी हासिल की। तत्पश्चात उन्होंने सूचना के कानून के तहत एक अर्जी दायर की।
अर्जी का सकारात्मक जवाब न मिलने पर मामला आयोग के पास गया। सूचना आयुक्त एम. एम. अंसारी ने दोषी अधिकारियों को फटकार लगाते हुए ऊषा माथुर का बकाया तुरंत वापस करने को कहा। फलत: ऊषा का 15 साल से पड़े बकाए का चंद महीनों में ही भुगतान हो गया।
सूचना के अधिकार के जरिए जानकारी नहीं देने पर जन सूचना अधिकारियों और संस्थानों पर गाज गिरनी जारी है। हाल ही में यह गाज गिरा रांची विश्वविद्यालय पर। पदोन्नति के लिए दोहरे मापदंड अपनाये गए ।
अपनाने पर रांची विश्वविद्यालय पर 4 लाख रुपये का क्षतिपूर्ति जुर्माना लगाया गया है। साथ ही सूचना न देने पर विश्वविद्यालय के पूर्व जन सूचना अधिकारी पर 40 हजार रुपये जुर्माना लगाया गया। जुर्माने की यह राशि पूर्व जन सूचना अधिकारी सुधांशु कुमार वर्मा के वेतन से काट ली जाएगी। आयोग ने विश्वविद्यालय को सूचना देने के नौ अवसर दिए थे, लेकिन इसके बाद भी जब आवेदकों को सूचना नहीं दी गई तो सूचना आयुक्त गंगोत्री कुजूर ने यह कठोर निर्णय दिया।
यह निर्णय विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसरों की आरटीआई अर्जी के जवाब में आया है। प्रोफेसर अभिताभ होरे और पीएन पांडे ने विश्वविद्यालय प्रशासन से उनकी पदोन्नति के लिए वरिष्ठता को तरजीह न देने की वजह जाननी चाही थी।
प्रोफेसर होरे और पांडे ने 2005 में पोस्ट ग्रेजुएट जिएलॉजी विभाग में प्रमुख के पद पर पदोन्नत किए गए के एन. दूबे की नियुक्ति को चुनौती दी थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि यह नियुक्ति गलत तरीकों से की गई है और इसमें उनकी वरिष्ठता का ख्याल नहीं रखा गया।
आरटीआई दायर करने से पहले श्री पांडे ने विवि के चांसलर से इसकी शिकायत की थी। इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और 1973 में दूबे के चयन में भी गड़बड़ी का आरोप लगाया। न्यायालय ने यह मामला चांसलर के पास वापस भेज दिया। विश्वविद्यालय के रवैये से निराश होकर श्री होरे और पांडे ने आरटीआई के माध्यम से इसकी जानकारी माँगी। प्रारंभिक स्तर पर जब कोई जानकारी नहीं मिली तो मामला सूचना आयोग के पास पहुँचा। आयोग ने मामले में कठोर रूख अपनाते हुए विश्वविद्यालय को दो-दो लाख रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में दोनों आवेदकों को देने का आदेश दिया।
दिल्ली की 80 वर्षीया लक्ष्मी देवी खिड़की ग्राम में रहती हैं। उन्होंने मई, 2005 में वृद्धवस्था पेंशन के लिए एम०सी०डी० कार्यालय में आवेदन दिया। अनेक बार कार्यालय में जाने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ। अंत में उन्होंने एक गैर सरकारी संगठन 'सतर्क नागरिक संगठन' के शिविर में जाकर सम्पक किया। संगठन की पहल से जाँच के उपरांत यह पता चला कि उनका आवेदन कार्यालय से लापता है। उन्हें पुनः आवेदन देने के लिए कहा गया। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दोबारा आवेदन देने के बाद पेंशन स्वीकृति के संबंध में सूचना माँगी गई। परिणामत: बहुत तत्परता से उनका पेंशन प्रतिमाह 350/- रुपये स्वीकृत हो गया। उन्हें जनवरी, 2007 में 1750/- (पाँच महीने के लिए) पेंशन प्राप्त हुआ।
पूर्वी दिल्ली के स्लम एरिया में रहनेवाले नन्नू एक दैनिक मजदूर हैं। उनका राशन कार्ड कहीं खो गया। तब उन्होंने द्वितीय प्रति के लिए जनवरी, 2004 में खाद्य एवं असैनिक आपूर्ति विभाग में आवेदन दिया। उन्होंने अगले तीन माह तक कई बार कार्यालय का चक्कर काटा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कार्यालय के पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया। अंत में उन्होंने सूचना के अधिकार का प्रयोग करते हुए सूचना माँगी कि उनके आवेदन की अद्यतन स्थिति क्या है तथा उनके आवेदन पर कार्रवाई करने वाले पदाधिकारी का नाम और आवेदन के निष्पादन में कोई रुचि नहीं लेने के लिए उन पर कौन सी कार्रवाई हुई? सूचना की माँग संबंधी आवेदन समर्पित करने के एक सप्ताह के अंदर एक आपूर्ति निरीक्षक आवेदक से मिला और उन्हें सूचना दी कि उनका कार्ड बन गया है। अगले दिन जब कार्ड प्राप्त करने नन्नू कार्यालय गए तो उनका बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया गया। उनसे अनुरोध किया गया कि सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत दिए गए आवेदन को वापस ले लें।
अशोक गुप्ता ने दिल्ली विद्युत बोर्ड को एक नए विद्युत कनेक्शन हेतु फरवरी, 2001 में आवेदन दिया। कनेक्शन लगाने के लिए उनसे नाजायज पैसे माँगे गए। पैसा देने से इंकार करने से उनके आवेदन पर एक साल तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। फरवरी, 2002 में उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दिया जिसमें निम्नलिखित सूचनाओं की माँग की गई :-
(क) आवेदन कार्यालय में प्राप्त होने की तिथि से अब तक उनके आवेदन पर दैनिक प्रगति क्या हुई?
(ख) उन पदाधिकारियों/कर्मियों का नाम और पदनाम जिन्हें आवेदन पर कार्रवाई करनी है और जिनके द्वारा अबतक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
(ग) चूँकि भारतीय विद्युत अधिनियम के तहत आवेदन देने की तिथि से नया कनेक्शन 30 दिनों के अंदर आवेदक को देना है अत: संबंधित पदाधिकारियों / कर्मचारियों ने भारतीय विद्युत अधिनियम के प्रावधान का उल्लंघन किया है।
(घ) क्या दिल्ली विद्युत बोर्ड समय पर नया कनेक्शन नहीं देने के दोष में उन दोषी पदाधिकारियोंकर्मचारियों को दंड देने की कार्रवाई पर विचार कर रहा है?
(च) यदि हाँ तो कितने दिनों के अंदर?
(छ) आवेदक को नया कनेक्शन कब मिलेगा?
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन देने से कार्यालय में हड़कप मच गया। परिणामतः मार्च, 2002 में अशोक गुप्ता को नया विद्युत कनेक्शन मिल गया।
ध्यानचंद पाटिल ने डिस्ट्रिक्ट स्पोट्स आफिस, पुणे, महाराष्ट्र की सूचना का अधिकार क तहत सूचना उपलब्ध कराने हेतु चार आवेदन दिए। डिस्ट्रिक्ट स्पोट्स ऑफिसर ने गलत सूचना उपलब्ध करायी। श्री पाटिल से महाराष्ट्र सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत उक्त लोक सूचना पदाधिकारी के निर्णय के विरुद्ध उप निदेशक के समक्ष अपील दायर की। नवम्बर, 2004 में उप निदेशक द्वारा महाराष्ट्र सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत 8,000/- (आठ हजार रु० मात्र) जुर्माना लोक सूचना पदाधिकारी पर लगाया गया। भ्रामक एवं गलत सूचना उपलब्ध कराने के लिए महाराष्ट्र सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत लोक सूचना पदाधिकारी पर जुर्माना लगाने का संभवतः यह पहला मामला है।
दिल्ली की त्रिवेणी जब भी जन वितरण प्रणाली की दुकान पर चावल, गेहूँ लाने जाती तो कहा जाता कि स्टॉक नहीं है। कई महीने तक उन्हें चावल नहीं मिला। यही नहीं, उन्हें 14 लीटर के बदले 10 लीटर मिट्टी तेल मिलता था। 25 के०जी० गेहूँ के बदले 10-15 के०जी० मिलता था। उस पर गेहूँ 2/- रु० की जगह 5/- रु० प्रति के०जी० दिया जाता। त्रिवेणी ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत उन्हें आपूर्ति किए गए राशन से संबंधित दस्तावेज की माँग की। साथ ही उस कैशमेमो की भी माँग की जो उनके नाम पर निर्गत दिखाया गया था। राशन कागजात में 2/- रु० की दर से 25 के०जी० गेहूँ, 14 लीटर किरासन तेल एवं 10 के०जी० चावल प्रत्येक माह दिखाया गया था और विगत एक साल से भी पहले से प्राप्ति दिखाई जा रही थी। जो कैशमेमो उसके नाम से निर्गत किया गया था उसपर अंगूठे का निशान था, जबकि वह पढ़ी लिखी है और बराबर हस्ताक्षर करती हैं। अब त्रिवेणी को उचित कीमत पर सभी सामग्री प्राप्त होने लगी है।
'परिवर्तन' ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जून, 2005 से संबंधित बिक्री पंजी एवं स्टॉक पंजी प्राप्त कर जाँच एवं निरीक्षण किया। यह दिल्ली के वेलकम कॉलोनी से संबंधित था। उस क्षेत्र में 182 परिवार रहते हैं। 4650 के०जी० गेहूँ की जगह मात्र 595 के०जी० गेहूँ की आपूर्ति की गई थी। इस प्रकार वितरण मात्र 13 प्रतिशत और शेष 87 कालाबाजारी में बेच दिया गया। 1820/- के०जी० चावल की जगह पर मात्र 110 के०जी० चावल वितरित हुआ। इस प्रकार मात्र 6 वितरण हुआ और शेष 94 कालाबाजारी में बेच दिया गया। दुकानदार द्वारा हमेशा बताया जा रहा था कि सरकार से स्टॉक नहीं मिला है। इस तरह जब पूरा मामला प्रकाश में आया तो जन-वितरण प्रणाली के कामकाज में अद्भुत सुधार हुआ।
दिल्ली के पटपड़गंज इलाका में दूषित पेयजल की आपूर्ति हो रही थी। इसकी वजह थी जल आपूर्ति पाइप का जीर्णशीर्ण होना। कुछ जगहों पर नाले का पानी मिलकर जल को दूषित कर रहा था जिससे इलाके के लोग रोगग्रस्त हो रहे थे। इस संबंध में दिल्ली जल बोर्ड से शिकायत की गई। लोगों द्वारा कार्यालय का कई चक्कर लगाया गया। लेकिन कोई असर नहीं पड़ा। तब सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सूचना माँगी गई कि पूर्व में जो शिकायत की गई थी उसकी अद्यतन स्थिति क्या है? दोषी पदाधिकारियों,कर्मचारियों पर अबतक कौन-सी कार्रवाई हुई? आवेदन समर्पित करने के दो दिनों के अंदर मरम्मति का कार्य किया गया। दिल्ली जल बोर्ड ने विभिन्न जगहों पर पेयजल की जाँच भी कराई और आवेदन के जवाब में जाँच प्रतिवेदन दिया।
दिल्ली के पाण्डव नगर इलाके में हाल ही में जल आपूर्ति पाइप बदली गई थी। उसमें दूसरे दिन से ही पानी का जबरदस्त रिसाव होने लगा। पाण्डव नगर के निवासियों ने दिल्ली जल बोर्ड को कई शिकायत पत्र भेजे। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अंत में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत निम्नलिखित सूचनाएं मांगी गई :-
(क) पूर्व में किए गए शिकायत आवेदन की अद्यतन स्थिति। अपदाधिकारी/ कर्मचारियों के नाम जिन्हें ये कार्य करना था और जिन्होंने अबतक नहीं किया।
(ख) पाइपलाईन के संविदा की प्रति।
(ग) कार्य पूरा होने का प्रमाण-पत्र की प्रति और बिल की प्रति।
(घ) उन पदाधिकारियों कर्मचारियों के नाम जिन्होंने कार्य पूरा होने का प्रमाण-पत्र निर्गत किया।
सूचना संबंधी आवेदन का ऐसा असर हुआ कि तीन दिनों के अंदर पाइपलाईन की मरम्मत करा दी गई।
म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ दिल्ली द्वारा एक सामुदायिक गार्बेज हाउस संग्रह क्षेत्र की मरम्मत की गई - पटपड़गंज में जून, 2002 में स्थानीय लोगों ने देखा कि केवल गार्बेज हाउस के पलोर पर काम किया गया। दीवार आदि नहीं बनायी गयी और न प्लास्टर किया गया। लोगों ने सूचना के अधिकार
अधिनियम के तहत सूचना माँगी कि उन्हें संविदा की प्रति दी जाए। संविदा की प्रति देखने से ज्ञात हुआ कि लोहा के एक दरवाजा एवं दिवाल तथा प्लास्टर आदि का काम किया जाना था। यह भी पता चला कि दिवाल, प्लास्टर तथा लोहा का गेट आदि का भुगतान ठेकेदार द्वारा प्राप्त कर लिया गया है। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन के बाद प्लास्टर करने का काम प्रारंभ कर दिया गया और लोहा का दरवाजा भी लगा दिया गया।
दिल्ली जगदम्बा केम्प में स्थित एक स्लम एरिया में सार्वजनिक शौचालय का संचालनकर्ता बच्चों एवं जवान सबों से शौचालय का प्रयोग करने पर एक रु० प्रति प्रयोग लेता था। यह सिलसिला काफी अरसे से चल रहा था। एक दिन लोगों को यह जानकारी मिली कि विकलांग एवं 12 वर्षों से नीचे आयु समूह के बच्चों से पैसा नहीं लिया जाता है। लोगों ने इस मुद्दे पर शौचालय के संचालनकर्ता से विरोध जतलाया लेकिन वह उन्हें भ्रम में डालता रहा। आखिरकार जब सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत संविदा की प्रति की माँग की गई तब संचालनकर्ता द्वारा तुरंत विकलांग एवं 12 वर्ष से नीचे आयु समूह के बच्चों से पैसा लेना बंद कर दिया।
छतीसगढ़ राज्य के सुरगुना जिला के लक्ष्मणगढ़ ग्राम में सिंचाई विभाग द्वारा वर्ष 2005 में तीन लाख दस हजार रुपए में एक तालाब का निर्माण कार्य स्वीकृत किया गया। एक सप्ताह कार्य करने वाले मजदूरों के द्वारा कार्य करने पर एक रौल बनाया गया। तीन सप्ताह के कार्य के लिए तीन रौल बनाया गया। यह योजना 'काम के बदले अनाज' के अंतर्गत ली गई। तालाब के निर्माण कार्य में गड़बड़ी की शिकायत मिली। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मस्टर रौल की माँग की गई। बहुत परेशानी एवं कठिनाई से दो मस्टर रौल प्राप्त हुए। 17 अक्टूबर, 2005 को एक जन सुनवाई की गई। एक मस्टर रौल में 320 मजदूर के नाम, अगूठे का निशान और काम के बदले अनाज लेने का विवरण दर्ज था जबकि यथार्थ में केवल 63 मजदूर ही कार्यरत थे। 257 मजदूरों का नाम फर्जी पाया गया। मस्टर रौल में अंगूठे का निशान भी सही नहीं था। जन सुनवाई के बाद एक प्रतिनिधिमंडल जिला दण्डाधिकारी से मिला जिन्होंने उपयुक्त कार्रवाई का आश्वासन दिया। बाद में उनके द्वारा कार्रवाई भी की गई।
कपिल जैन, पूर्वी दिल्ली के विश्वासनगर के रहने वाले हैं। उनके पड़ोसी ने 1993 में एक गैर सरकारी प्लास्टिक रीसाइकलिंग फैक्टरी स्थापित कर ली। इस फैक्ट्री से फैलनेवाले प्रदूषण के कारण कपिल का जीवन नरक हो गया। यहाँ तक कि उनके घर की दीवारे फैक्टरी चलने से हिलती रहती थीं। पुलिस में सूचना दर्ज की गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वह निराश हो गए। घर बेचने की भी बात सोचने लगे। अंत में उन्होंने डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस के कार्यालय में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दिया। सूचना माँगी गई कि उन्होंने जो शिकायत पत्र दिया था उसका क्या हुआ। दिल्ली पॉल्यूशन कन्ट्रोल कमिटी ने जवाब दिया कि उस प्रदूषित फैक्टरी को बंद करा दिया गया।
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत केवल आवेदन देने की बात कहे जाने से ही पाँच महिलाओं को चार माह का वृद्धवस्था पेंशन आसानी से मिल गया। तिलोनिया (राजस्थान) की पाँच महिलाओं को वृद्धवस्था पेंशन का भुगतान विगत चार माह से रोक दिया गया था। रामकरन ने पाँचों महिलाओं को अनुमंडल पदाधिकारी के समक्ष हाजिर किया और कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दिया जा रहा है। अनुमंडल पदाधिकारी ने तुरत संबंधित पदाधिकारी से मामले की जानकारी ली। उस पदाधिकारी ने बताया कि इन महिलाओं की जन्म तिथि अंकित नहीं है। जन्मतिथि प्रमाण-पत्र समर्पित करने पर ही इन्हें पेंशन मिलेगा। अनुमंडल पदाधिकारी ने तुरत पेंशन देने का आदेश दिया और संबंधित पदाधिकारी को निदेशित किया कि वे जन्म प्रमाण-पत्र संबंधित ग्राम के पटवारी से प्राप्त कर लें।
सहायक के पद पर कार्यरत सुधीर नायक का एक वर्ष में ही बॉम्बे म्युनिसिपल कॉरपोरेशन मुख्यालय में स्थानान्तरण कर दिया गया। पूर्व में पदस्थापित जगह पर उन्होंने बहुत ईमानदारी एवं मेहनत से काम किया था। उन्होंने वाडों की सफाई एवं अन्य व्यवस्था में अभूतपूर्व सुधार लाया था। सभी नागरिक उनके कार्यों से प्रसन्न थे। लेकिन कुछ लोगों को उनकी ईमानदारी पूर्वक कार्य करने से नुकसान होने लगा। उनलोगों के दबाव से इनका स्थानान्तरण कर दिया गया। वार्ड के सदस्य एन० गणेशन ने महाराष्ट्र सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत निम्न सूचनाओं की माँग की :-
(क) सुधीर नायक का स्थानान्तरण का प्रस्ताव किस पदाधिकारी द्वारा दिया गया?
(ख) नियम के अनुसार तीन वर्ष के पूर्व किसी पदाधिकारी को स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता तो समय के पूर्व उनके स्थानान्तरण का कारण क्या है?
(ग) क्या यह किसी कानून या परिपत्र का उल्लंघन है? स्थानान्तरण संबंधी संचिका की छायाप्रति निर्गत की जाए।
इस आवेदन का परिणाम यह हुआ कि कुछ ही दिनों में सुधीर नायक को पुन: उसी वार्ड में पदस्थापित कर दिया गया।
रमेश पोंगडे ने 40 वर्षों तक सरकारी सेवा करने के बाद अवकाश प्राप्त किया। 40 वर्षों में से 27 वर्षों तक उन्होंने पुणे म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में कार्य किया। लेकिन जब उन्हें पहला पेंशन मिला तो 7,000/- रु० की जगह 5,000/- रु० ही मिले। अगले चार वर्षों में पुणे म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को पोंगडे ने कई पत्र लिखे और सरकार को 16 अभ्यावेदन समर्पित किए। पाँच बार पेंशन न्यायालय शिविर में भी भाग लिया। जब उन्होंने पूरा पेंशन की मांग की तो उनसे नाजायज़ पैसे की मांग की गयी। रमेश ने सूचना का अधिकार अधिनियम का सहारा लिया। तीन महीने के अंदर सरकार द्वारा उनका पेंशन 5000/- रु. से 8000/- कर दिया गया और विगत चार वर्षों की कुल बकाया राशि 1,78,000/-रु. का भी भुगतान कर दिया गया।
रमेश प्रसन्न है की उन्हें सूचना के अधिकार से पूरा लाभ मिला। उनके द्वारा इसका खूब प्रचार प्रसार भी किया जा रहा है।
स्त्रोत: पंचायती राज विभाग, बिहार सरकार
अंतिम सुधारित : 2/21/2020
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