जलाशय, भारतवर्ष में मत्स्य-उत्पादन का एक महत्वपूर्ण साधन का निर्माण करते हैं। वर्तमान समय में, देश में जलाशय की मात्स्यिकी के अधीन क्षेत्रफल लगभग 3.0 मिलियन हेक्टेयर होना अनुमानित किया गया है और नये जलाशयों / बन्द बाड़ों के लगातार जुड़ते जाने से, इस क्षेत्रफल में, आगामी वर्षों में इससे आगे वृधि होने की संभावना है। जलाशयों के अधीन उपलब्ध जल के बड़े क्षेत्रफल होने के बावजूद भी, मात्स्यिकी के दृष्टिकोण से इन जल-निकायों का उपयोग कम है। जलाशयों की सभी श्रेणियों से औसत उत्पादकता लगभग 15 कि.ग्रा./हे./वर्ष अनुमानित की गई है, यद्यपि कई गुनी वृधि की संभावना विद्यमान है जैसाकि देश में कुछ लघु, मध्यम और बड़े जलाशयों में प्रदर्शित किया गया है। जलाशयों के उत्पादन की शासन-पद्धति को शासित करने वाले जीवविज्ञान संबंधी और सरसी जीव विज्ञान सम्बन्धी कार्यों के कम मूल्यांकन और भंडारण करने के कार्यक्रमों की कमी ने जलाशयों की मात्स्यिकी की संभावनाओं का अनुकूलतम से नीचे उपयोग दिया है। यह आशा की जाती है कि गुणवत्तापरक अंगुलिकाओं के पूरक भंडारण करने के धारण के माध्यम से, स्वत: भंडारण के माध्यम से मत्स्यभंडारों में वृद्धि करने, जालों के समुचित आकार के अंगीकरण करने, मछलियाँ मारने के अनुकूलतम प्रयासों और बंद क्षेत्रों और बंद मौसमों के प्रभावी होने (मुख्य रुप से मध्यम और बड़े मौसमों में जहाँ स्वत: भंडारण हो जाता है), औसत उत्पादकता छोटे जलाशयों से 500 कि.ग्रा./हे./वर्ष; मध्यम जलाशयों से 200 कि.ग्रा./हे./वर्ष और बड़े जलाशयों से 100-150 कि.ग्रा.हे./वर्ष का स्तर बढ़ाया जा सकता है।
जलाशयों की विभिन्न श्रेणियों के लिये अनेक वर्षों से विकसित सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन के अभ्यास, बड़े और मध्यम जलाशयों के लिये भंडारण करने-सह-मछलियाँ पकड़ने के अभ्यास को और छोटे जलाशयों के लिये रखिए और अभ्यास कीजिए आवश्यक बना देते हैं। किन्तु, प्रबंध के इन अभ्यासों की सफलता राज्य सरकारों द्वारा जलाशयों की समुचित नीतियों का निर्माण करना आवश्यक बना देंगीं जिन्हें आशयित लाभार्थियों, सामाजिक-आर्थिक लाभों को विचारार्थ लेना चाहिये जो लाभार्थियों को, विशेष रुप से समाज के निर्धनों में से निर्धनतम भाग; मानव संसाधन विकास, मात्स्यिकी के प्रबंध के अधिकारों, प्रजनन के क्षेत्रों के संरक्षण और बचाव; पट्टे की नीति, अगले और पिछड़े जुड़ावों इत्यादि को प्रोद्भूत करेगीं। इससे आगे, जलाशय में मत्स्य-उत्पादन के क्रिया-कलाप करने के लिये इस नीति को मात्स्यिकी विभाग तक स्पष्ट और बंधन मुक्त पहुँच भी प्रदान की जाने चाहिये।
भारतवर्ष में जलाशयों में मत्स्य-उत्पादन की संभावना पर विचार करते हुए, उदार पूँजी-निवेश, ग्रामीण जनसंख्या के लिये रोजगार के अवसर बढ़ाने के अतिरिक्त, मछलियों की भारी मात्रा में फसल प्रदान कर सकते हैं। किन्तु, जलाशयों में मात्स्यिकी के विकास की सफलता, लाभार्थियों द्वारा दोनों-भंडारण करने और फसल काटने के लिये वैज्ञानिक मापदंड अंगीकार करने को शामिल करते हुए, पट्टे की समुचित नीतियाँ, जलाशयों के चयन और कार्यान्वयन करने वाले अभिकरणों की प्रतिबद्धता के द्वारा वृहद् रुप से मनवाई जायेंगीं। राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.) ने यह प्रस्ताव रखा है कि देश में जलाशयों के 3.0 मिलियन हेक्टेयर के क्षेत्रफल में से, कम से कम 50 प्रतिशत भाग पाँच वर्षों की अवधि के अंदर इसके जलाशय की मात्स्यिकी के विकास के कार्यक्रम के अन्तर्गत लिया जायेगा।
जलाशयों का आकार, उसके प्रकार और किये जाने वाले पूँजी-निवेशों की धनराशि, मत्स्य-उत्पादन में संभावित वृधियाँ, रोजगार के सृजन इत्यादि के लिये एक प्रमुख निर्धारक कारक होगा। देश में जलाशयों के विभिन्न आकारों की मत्स्य उत्पादन की संभावना और उनकी उत्पादकता की समझ के आधार पर, इन जल-निकायों को निम्नलिखित आकार वाले समूहों में वर्गीकृत किया गया है:
क्र.सं. |
श्रेणी |
जल-विस्तार का क्षेत्रफल |
1.0
|
लघु जलाशय |
|
श्रेणी ‘क’ |
40-200 |
|
श्रेणी ‘ख’ |
201-1000 |
|
2.0 |
मध्यम जलाशय |
1001-5000 |
3.0 |
बड़े जलाशय |
5001 और इससे ऊपर |
राज्य सरकार (मात्स्यिकी विभाग), जलाशय की मात्स्यिकी के विकास के कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिये मुख्य अभिकरण होगी। वे एन.एफ.डी.बी. के कार्यक्रम के अन्तर्गत विकसित किये जाने वाले जलाशयों के चयन, लाभार्थी को जल-निकाय पट्टे पर देने अर्थात् पट्टाधारक, भंडारण करने और फसल काटने के क्रिया-कलापों का अनुश्रवण और मूल्यांकन करने, अगले और पिछले स्वस्थ जुड़ावों की स्थापना करने में लाभार्थियों की सहायता करने, तकनीकी समर्थन देने और समय-समय पर लाभार्थियों की क्षमता का निर्माण करने के लिये उत्तरदायी होंगीं। ये दिशा-निर्देश राज्यों के लाभ के लिये विकसित किये गये हैं ताकि इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सहायता के लिये बनाये गये प्रस्ताव देश में जल्लशय की मात्स्यिकी के विकास के विभिन्न पैरामीटरों पर बोर्ड की अवधारणा को पर्याप्त रुप से प्रतिबिम्बित कर सकें।
जलाशयों में मात्स्यिकी के धारणीय विकास के लिये पट्टे की अवधि और पट्टे की धनराशि एक पूर्वापेक्षा होती है। लाभार्थियों को जलाशयों में मात्स्यिकी का विकास एवं धारण करने की अनुमति देने के लिये, विशेष रुप । से उन्हें, जो मध्यम और बड़ी श्रेणियों के अन्तर्गत आते हैं, न्यूनतम पाँच (5) वर्ष की अवधि अनिवार्य होती है। किन्तु, 10-15 वर्षों से अधिक की अवधि का पट्टा वांछनीय होगा क्योंकि जलाशय के विकास में लाभार्थियों का एक बड़ा हिस्सा होगा और वे धारणीयता की कीमत पर लघु-अवधि के लाभ नहीं देखेंगे। इससे आगे, पट्टे सहकारी समितियों को केवल समुचित प्रोत्साहनों के साथ एक प्रतियोगितात्मक आधार पर दिये जाने चाहिये। राज्य सरकार, पट्टे की धनराशि के प्राप्तकर्ता के रुप में, प्रश्नगत जलाशय पर एन.एफ.डी.बी. के साथ पट्टे की वास्तविक आय या लाइसेंस की वास्तविक धनराशि या नीलामी की प्राप्त वास्तविक धनराशि की 25 प्रतिशत की भागीदारी करने की अपेक्षा की जाती है।
वर्तमान समय में, जलाशयों के लिये पट्टे का मूल्य, उक्त जल-निकाय से मत्स्य-उत्पादन के ऐतिहासिक आँकड़ों पर विस्तृत रुप से निश्चय किया गया है। अधिकांश मामलों में यह आँकड़ा बंदी के पहले कुछ वर्षों से सम्बन्ध रखता है, जब जल-निकाय में सामान्यतया एक पौष्टिकता संबंधी विस्फोट होता है अर्थात् जीव-विज्ञान सम्बन्धी उत्पादकता में अचानक वृधि जो मछलियों को बड़े जैवपिंड की ओर अग्रसर करती है। किन्तु, एक धारणीय भंडारण करने के कार्यक्रम के अभाव में, यह पौष्टिकता संबंधी विस्फोट कदाचित् कई वर्षों में समाप्त होता है और लम्बी अवधि वाला पौष्टिकता संबंधी विस्फोट शुरु हो जाता है और मछलियों का जैवपिंड बहुत अधिक गिर जाता है। प्रारंभिक उत्पादन (मत्स्य जैव-पिंड) या उत्पादकता के आधार पर पट्टे के मूल्य पर विचार करने का कोई भी प्रयास अव्यावहारिक हो सकता है और यह लाभार्थी के लिये निरुत्साहक होगा जो प्राय: चुकौती की असफलता इत्यादि की ओर अग्रसर करेगा। पट्टे के मूल्य का एक यथार्थवादी मूल्यांकन करने की अनुभूति देने के लिये, निम्नलिखित मानदंडों पर विचार किया जा सकता है:
(1) जल-अवधारण का समय और जलाशयों के प्रभावी भंडारण का स्तर
(2) जलाशय में मछली मारने में बाधाएं
(3) आपे से बाहर हो जाने वाली समस्याएं, विशेष रुप से छोटे जलाशयों के मामले में
(4) जलाशय के पानी के अन्य उपयोगकर्ता अभिकरणों के साथ उपयोग करने में संघर्ष
(5) जलाशय के विद्यमान मत्स्य-प्राणिजगत, हिंसक प्रजातियों की उपलब्धता पर विशेष केन्द्रीकरण के साथ
(6) जलाशय में स्वत: भंडारण की सीमा
(7) जलाशय से पिछले 5-7 वर्षों के मत्स्य उत्पादन का औसत
जलाशयों में मत्स्य-विकास का समर्थन करने के लिये एन.एफ.डी.बी. निम्नलिखित दो घटकों की सहायता करेगा
जलाशय की मात्स्यिकी के विकास का मुख्य सहारा भंडारण करना होगा और धारणीय आधार पर मत्स्यउत्पादन को सुलभ बनायेगा। सामान्यतया, कटला कटला (कटला), लेबियो रोहिता (रोहू), चिर्हिनस मृगाल (मृगाल) जैसे मत्स्य-प्रजातियों से मिलकर बनी हुई भारतीय मेजर कायँ, सम्पूर्ण देश में जलाशयों का भंडारण करने के लिये महत्वपूर्ण प्रजातियों का निर्माण करेंगीं। कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण लाभार्थी से परामर्श करके अतिरिक्त प्रजातियों जैसे एल.बाटा, एल.कैलबसु और स्टेनोफारिंगोडोन इडेल्ला (ग्रास कार्प) के आवश्यकता पर आधारित भंडारण करने पर भी विचार कर सकते हैं।
उलटने-पलटने वाले नियम के रुप में, छोटे जलाशय और वे जलाशय जो मध्यम श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। जहाँ स्वत:-भंडारण करना संभव नहीं है, उन्हें जल निकाय की उत्पादकता की संभावना का उपयोग करने के लिये नियमित भंडारण करने के कार्यक्रम की आवश्यकता होगी। स्वत: भंडारण करने के अभाव में, यह वार्षिक भंडारण करना अनिवार्य हो जाता है, अन्यथा जल-निकाय की उत्पादन की संभावना अनुपयुक्त / कम उपयुक्त रहेगी। बड़े जलाशयों में पूरक भंडारण करने की तब तक जरुरत पड़ेगी जब तक कि भंडारणों की पुन: पूर्ति सुनिश्चित करने के लिये जल निकाय में प्रजनन करने वाली जनसंख्या की महत्वपूर्ण बड़े पैमाने पर स्थापना नहीं कर दी जाती जिनकी वार्षिक आधार पर फसल काटी जा चुकी है। इस श्रेणी में वे मध्यम जलाशय भी शामिल होंगे जहाँ स्वत: भंडारण होता रहता है।
एन.एफ.डी.बी. के कार्यक्रम में 1,000 अंगुलिकाओं की एक मानक भंडारण करने की दर के साथ जलाशयों में भंडारण करने का मनोचित्रण है। जलाशय के आकार, जलधारण करने की क्षमता, हिंसक पशुओं की व्याप्ति और उत्पादक जल के क्षेत्रफल के आधार पर, कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण के लिये लचीलापन होगा। किन्तु, यह सुनिश्चित किया जायेगा कि मानक भंडारण करने की दर (1000 अंगुलिकाएं प्रति हेक्टेयर) से यह विचलन मध्यम और बड़े जलाशयों के मामले में 500 अंगुलिकाएं प्रति हेक्टेयर से कम और छोटे जलाशयों के मामले में 2000 अंगुलिकाएं प्रति हेक्टेयर से अधिक न गिरे। किन्तु, बड़े जलाशयों में भंडारण करने की दर 250 अंगुलिकाएं/हे. तक सीमित रहेगी जिसमें कैटफिश की प्रजातियों का आधिपत्य बना हुआ है।
आई.एम.सी., माइनर कार्यों और ग्रास कार्प की 100 मि.मी. तक की अंगुलिकाओं के भंडारण करने के लिये एन.एफ.डी.बी. द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता, प्रति अंगुलिका एक रुपये (रु.1/) होगी। अंगुलिकाओं की कुल संख्या, जिनके लिये निधियाँ प्रदान की जायेंगीं, जलाशय के प्रभावी जल-क्षेत्र के आधार पर निर्धारित की जायेगी। इस लागत में वे सभी इनपुट शामिल होंगे जो वाणिज्यिक आधार पर अंगुलिकाओं के उत्पादन पर किये जायेंगे, चाहे वे ‘एक्स-सितु (भूमि पर आधारित नर्सरियों में) या ‘इन-सितु (पेनों और पिंजड़ों में) के हों और भंडारण करने के लिये जलाशय के स्थल तक उसके परिवहन के लिये हों। पट्टा-धारक या कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण यह सुनिश्चित करने के लिये कि सही आकार और संख्याओं की अंगुलिकाएं जलाशय में भंडारित की गई हैं, प्रत्येक स्तर पर पर्याप्त अनुश्रवण और पर्यवेक्षण के साथ यह क्रिया-कलाप करेगा।
8.1 परिचय
उत्पादन की ओर उन्मुख किसी भी क्रिया-कलाप का प्रमुख घटक, कौशल का उच्चीकरण होता है। यह उस समय और अधिक महत्व रखता है जब आशयित लाभार्थी का/की जन्मजात तकनीकी कौशल/क्षमता कम होती है। और इस प्रकार क्रिया-कलाप की सफलता या असफलता एक प्रमुख कारण हो सकती है। जलाशयों में मात्स्यिकी के विकास करने के एन.एफ.डी.बी. के उद्देश्यों पर इस समय विपरीत प्रभाव पड़ सकता है यदि मछुआरे के तकनीकी कौशल अपर्याप्त होते हैं। अतः , जलाशय की मात्स्यिकी के विकास में मानव संसाधन विकास की इस महत्वपूर्ण अपेक्षा को पूरा करने के लिये, बोई उन मछुआरों को प्रशिक्षित करने के लिये मनोचित्रित करता है जो उन पट्टाधारकों का गठन करता है जिनको मछलियाँ मारने के उद्देश्य से जल-निकाय पट्टे पर दिया गया है। चूंकि यह एक ऐसा प्रशिक्षण कार्यक्रम है जो एन.एफ.डी.बी. द्वारा वित्तपोषित जलाशयों से जुड़ा हुआ है, अत: पाँच दिन का प्रशिक्षण कार्यक्रम पर्याप्त है और प्रदर्शन के साथ उसकी व्यवस्था की गई है।
8.2 इकाई की लागत (प्रशिक्षण)
इकाई की इस लागत में पाँच (5) दिन की एक मानक प्रशिक्षण अवधि सम्मिलित है और इस कार्यक्रम के अन्तर्गत निम्नलिखित क्रिया-कलापों का वित्तपोषण किया जायेगा:
(1) मछुआरों को सहायता: मछुआरे रु.125/- प्रतिदिन के हिसाब से दैनिक भत्ते के लिये पात्र होंगे और आने जाने की यात्रा (रेल/बस/ऑटोरिक्शा) के व्यय की प्रतिपूर्ति वास्तविक, वशर्ते अधिकतम रु.500/-, खर्चे के अनुसार की जायेगी।
(2) संसाधन वाले व्यक्ति को मानदेय: प्रशिक्षण का आयोजन करने के लिये, कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण प्रत्येक प्रशिक्षण कर्यक्रम के लिये संसाधन वाले एक व्यक्ति की सेवाएं ले सकता है। संसाधन वाले व्यक्ति को रु.1250/- का मानदेय दिया जा सकता है और आने-जाने की यात्रा के व्ययों (रेल/बस/ऑटोरिक्शा) की वास्तविकताओं के अनुसार, वशर्ते अधिकतम रु.1000/-, की प्रतिपूर्ति की जायेगी।
(3) कार्यान्वयन करने वाले अभिकरणों को सहायताः कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण, कार्यक्रम का आयोजन करने के लिये रु.75 /प्रशिक्षणार्थी /दिन के अनुसार अधिकतम 5 दिनों की अवधि के लिये धनराशि प्राप्त करने के लिये पात्र होगा। इस लागत में प्रशिक्षणार्थी के परिचय और सहमति कराने के व्यय और पाठ्य-क्रम सामग्री /प्रशिक्षण की किटें इत्यादि शामिल होंगे।
कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण से एक विस्तृत परियोजना प्रस्ताव, एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जयेगी जो प्रस्तावित क्रिया-कलाप की व्यवहार्यता भी समाविष्ट करेगा। यह प्रस्ताव इन दिशा-निर्देशों के साथ संलग्न फार्म । (आर.एफ.डी.) के अनुसार प्रस्तुत किया जायेगा। प्रस्तावों का प्रणाली-बद्ध और सुव्यवस्थित मूल्यांकन और बोर्ड से उनका अनुमोदन सुनिश्चित करने के लिये, कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण प्रत्येक तिमाही अर्थात् अप्रैल, जुलाई, अक्टूबर और जनवरी के प्रारम्भ में प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे।
सामान्यतया, निधियाँ दो समान किश्तों में जारी की जायेंगीं। पहली किश्त, जो परियोजना की कुल लागत की 50% से अधिक नहीं होगी, एन.एफ.डी.बी. द्वारा प्रस्ताव के अनुमोदन पर जारी की जायेगी। दूसरी किश्त, जलाशय के भंडारण के सफलतापूर्वक पूर्ण होने और प्रत्येक जलाशय के लिये स्थापित अनुश्रवण समिति के द्वारा प्रमाणीकरण पर जारी की जायेगी।
चूँकि जलाशयों में मात्स्यिकी के विकास की चरम सफलता भंडारण करने के कार्यक्रम द्वारा निर्धारित की जायेगी, अत: क्रिया-कलापों का अनुश्रवण करने और जल-निकाय में अंगुलिकाओं के भंडारण करने पर निगाह रखने के लिये एक समिति का गठन किया जाना अनिवार्य होता है। निम्नलिखित संगठनों । अभिकरणों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए उक्त समिति का गठन किया जा सकता है:
(1) जिला राजस्व विभाग का प्रतिनिधि
(2) सिंचाई ऊर्जा विभाग का प्रतिनिधि
(3) स्थानीय निकाय का प्रतिनिधि
(4) पट्टाधारक का प्रतिनिधि
(5) मात्स्यिकी विभाग का प्रतिनिधि
कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण, क्रिया-कलाप के भौतिक और वित्तीय प्रगति के सम्बन्ध में प्रत्येक तिमाही अर्थात् अप्रैल, जुलाई, अक्टूबर और जनवरी के प्रारंभ में एक प्रगति रिपोर्ट भी प्रस्तुत करेगा। यह प्रगति रिपोर्ट उपलब्धियों, कार्यान्वयन में बाधाओं, इत्यादि पर प्रकाश डालते हुए कार्य-निष्पादन का आलोचनात्मक मूल्यांकन प्रदान करेगी।
कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण, एन.एफ.डी.बी. द्वारा उनको जारी की गई निधियों के सम्बन्ध में उपभोग प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करेंगे। ऐसे प्रमाण-पत्र, अद्ध वार्षिक आधार पर अर्थात् प्रत्येक वर्ष की जुलाई और जनवरी की अवधि में फार्म III (आर.एफ.डी.) में प्रस्तुत किये जायेंगे। ये उपभोग प्रमाण-पत्र उस बीच में भी प्रस्तुत किये जा सकते हैं कि यदि वे क्रिया-कलाप जिनके लिये निधियाँ पूर्व में ही जारी कर दी गई थीं, वे पूरे हो चुके हैं और किसान द्वारा शेष कार्यों को पूरा करने के लिये सहायता की अगली खुराक की जरुरत है।
(1) एक पूर्वापेक्षा के रुप में, जलाशय की मात्स्यिकी के विकास के लिये प्रस्तावित योजना वित्तीय रुप से व्यवहार्य, सामाजिक रुप से स्वीकार्य, पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सुरक्षित होनी चाहिये। योजना में प्रस्तावित तकनीकी मापदंड, जलाशय की मात्स्यिकी के लिये विकसित वैज्ञानिक मानदंडों के अनुरूप होने चाहिये। ऋणकर्ता की चुकौती की क्षमता को पूरा करने के लिये पर्याप्त आधिक्य का सृजन करने के लिये योजना हृष्ट-पुष्ट होनी चाहिये।
(2) मात्स्यिकी विभाग, मछली मारने वाली सभी नावों और उपस्करों का पंजीकरण करेगा और जलाशय में परिनियोजित प्रयासों का अनुमान लगाने के लिये ऐसी नावों और उपस्करों के पंजीकरण कार्यालय का रख-रखाव करेगा।
(3) लाभार्थी, जलाशय में भंडारण की गई मछलियों की अंगुलिकाओं और राज्य इनपुटों का पूरा अभिलेख और नाव की प्रत्येक इकाई के लिये मछलियों की फसल काटी गई पकड़ों और उनके द्वारा प्रयोग किये गये जालों के प्रतिदिन के अभिलेख का रख-रखाव करेगा। यह आँकड़ा निर्धारित अंतरालों पर राज्य सरकार और एन.एफ.डी.बी. को उपलब्ध कराया जायेगा।
(4) लाभार्थी, कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण से परामर्श करके, जलाशय से काटी गई फसल की मछलियों के विपणन के लिये समुचित प्रबंध करेंगे।
(5) कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण को सुनिश्चित करना चाहिये कि लाभार्थी जलाशय की मात्स्यिकी के सभी पहलुओं जैसे बीज उगाने और भंडारण करने, मछली मारने वाले उपस्करों का कुशलतापूर्वक उपयोग करने और मछलियों का फसलोत्तर प्रबंध करने में पर्याप्त रुप से प्रशिक्षित हैं।
(6) कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण, इस क्रिया-कलाप के अन्तर्गत एन.एफ.डी.बी. द्वारा जारी की गई निधियों के लिये एक पृथक् खाता सुस्थापित करेगा।
(7) कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि भंडारण करने और फसल काटने के क्रिया-कलाप वैज्ञानिक मानदंडों के अनुसार किये जा रहे हैं और फसल काटने का कोई भी प्रयोग जो जलाशय की मात्स्यिकी की धारणीयता पर विपरीत प्रभाव डालता हो, उसकी कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण के द्वारा अनुमति नहीं दी जानी चाहिये। कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण कठोरता से बंद मौसम को प्रभावी भी बनायेगा और जहाँ कहीं अनिवार्य हो, वहाँ जलाशयों में बंद क्षेत्रों को प्रभावी बनायेगा जहाँ मछलियों के ब्रूड के स्टॉक और किशोरों की रक्षा करने के लिये स्वत: भंडारण होता है।
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम सुधारित : 1/7/2020
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