অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

खरीफ दलहनी फसलें

अरहर

उन्नत प्रभेद

उन्नत प्रभेद

बुआई की दूरी

तैयार होने का समय

औसत उत्पादन (क्विं./हे.)

विशेष गुण

बिरसा अरहर-1

60 x 20 सें.मी.

180 दिन

12-15

मिश्रित खेती के लिए उपयुक्त

बहार

75 x 25 सें.मी.

220 दिन

20-25

मिश्रित खेती के लिए उपयुक्त नरेंद्र

कृषि कार्य

(क) जमीन की तैयारी: दो-तीन बार खेत की अच्छी जुताई करके पाटा चला दें। जुताई के समय गोबर की सड़ी खाद 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में अच्छी तरह मिला दें। अरहर टांड जमीन की फसल है, इसलिए खेत में पानी का जमाव नही होना चाहिए।

(ख) बुआई का समय: अरहर की बुआई मध्य जून से मध्य जुलाई तक कर देना चाहिए।

(ग)  बीज दर: 20 किलो प्रति हेक्टेयर।

(घ)  उर्वरक: 25:50:25 किग्रा. एन.पी.के. प्रति हें., चूना-4 क्विं./हें. ।

उर्वरक

मात्रा

जीवाणु खाद

यूरिया

12 कि./हें.

बुआई से पहले बीज को

डी.ए.पी.

112 कि./हें.

जीवाणु खाद (राईजोबियम कल्चर)

म्यूरेट ऑफ़ पोटाश

40 कि./हे.

से उपचार करना लाभदायक है

(ङ)   निकाई-गुड़ाई: दो बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता है। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 25 से 30 दिनों बाद एवं दूसरी 40 से 45 दिनों बाद करें।

(च)  कटनी, दौनी एवं बीज भंडारण: अरहर की फली जब पक जाए तो हँसुए से पौधों को काटकर धूप में सूखा दें। डंडे के सहारे पौधों को पीटकर दाना अलग कर लें। अरहर के दानें को धूप में अच्छी तरह सुखा कर भंडारण करें।

उरद

उन्नत प्रभेद

उन्नत प्रभेद

बुआई की दूरी

तैयार होने का समय

औसत उत्पादन (क्विं./हें.)

विशेष गुण

टी-9, पन्त.यू-19 बिरसा उरद-1

30 x10 सें.मी.

75 से 80 दिन

15-20

रोग अवरोधी, फलियों का एक बार पकना एवं मिश्रित खेती के लिए भी उपयुक्त

कृषि कार्य

(क)  जमीन की तैयारी: दो तीन बार देशी हल से खेत की अच्छी तरह जुताई करके पाटा चला दें। जुताई के समय गोबर की सड़ी खाद 5 टन प्रति हें. की दर से खेत में अच्छी तरह मिला दें। उरद ऊँची जमीन की फसल है, अत: खेत में पानी का जमाव नहीं होना चाहिए।

(ख) बुआई-गुड़ाई: 1. बुआई का उचित समय मध्य जून से मध्य जुलाई, 2. उरद विलम्ब से बुआई के लिए भी उपयुक्त है। मध्य अगस्त तक बुआई करके अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती।

(ग)  बीज दर: 30 किलो प्रति हेक्टेयर।

(घ)  उर्वरक: 25:50:25 किग्रा. एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर।

उर्वरक

मात्रा

जीवाणु खाद

यूरिया

12 कि./हें.

बुआई से पहले बीज को

डी.ए.पी.

112 कि./हें.

जीवाणु खाद (राईजोबियम कल्चर)

म्यूरेट ऑफ़ पोटाश

40 कि./हें.

से उपचारित करना लाभदायक है

(ङ)   निकाई-गुड़ाई: दो बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता है। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 20 दिनों बाद एवं दूसरी 40 दिनों बाद करना लाभप्रद है।

(च)  कटनी, दौनी एवं बीज भंडारण: उरद की फलियाँ एक बार पक कर तैयार हो जाती है। पकने पर फलियों का रंग काला हो जाता है एवं पौधा भी पीला होने लगता है। पौधों की कटाई एक बार हँसुए के द्वारा करके धूप में सुखाना चाहिए। दौनी करके दाना अलग कर लेना उचित है। दानों को धूप में अच्छी तरह सुखा कर भंडारण करें।

मूंग

उन्नत प्रभेद

उन्नत प्रभेद

बुआई की दूरी

तैयार होने का समय

औसत उत्पादन (क्विं./हे.)

विशेष गुण

के.851, पूसा विशाल (खरीफ) एसएमएल 668 (गरमा)

30 10 सें.मी.

60 से 65 दिन

12-15

रोग अवरोधी, गर्मी में बुआई एवं के लिए उपयुक्त

कृषि कार्य

(क)  जमीन की तैयारी: दो तीन बार देशी हल से खेत की अच्छी तरह जुताई करके पाटा चला दें। जुताई के समय गोबर की सड़ी खाद 5 टन प्रति हें. की दर से खेत में अच्छी तरह मिला दें। मूंग ऊँची जमीन में लगाई जाने वाली फसल है, अत: खेत में पानी का जमाव नहीं होना चाहिए।

(ख) बुआई का समय: बुआई का उचित समय मध्य जून से मध्य जुलाई है। मूंग गर्मी में बुआई के लिए भी उपयुक्त है, जिसकी बुआई मध्य फरवरी से मध्य मार्च तक करना उत्तम होता है।

(ग)  बीज दर: 30 किलो प्रति हेक्टेयर।

(घ)  उर्वरक: 25:50:25 किग्रा. एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर।

उर्वरक

मात्रा

जीवाणु खाद

यूरिया

44 कि./हें.

बुआई से पहले बीज को

डी.ए.पी.

112 कि./हें.

जीवाणु खाद (राईजोबियम कल्चर)

म्यूरेट ऑफ़ पोटाश

40 कि./हें.

से उपचारित करना लाभदायक है

(ङ)   निकाई-गुड़ाई: दो बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता है। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 15-20 दिनों बाद एवं दूसरी 35 दिनों बाद करें।

(च)  कटनी, दौनी एवं बीज भंडारण: मूंग की फलियाँ एक बार में पक कर तैयार नहीं होती है। पकी हुई फलियों की तोड़ाई 2-3 बार में पूरी होती है। फलियों को धूप में अच्छी तरह सुखा कर दौनी करके दाना को अलग कर लें। मूंग के दानों को धूप में सुखा कर भंडारण करें।

कुलथी

उन्नत प्रभेद

उन्नत प्रभेद

बुआई की दूरी

तैयार होने का समय

औसत उत्पादन (क्विं./हे.)

विशेष गुण

बिरसा कुलथी-1

30 10 सें.मी.

100 से 105 दिन

10-12

विलम्ब से बुआई के लिए उपयुक्त

कृषि कार्य

(क)  जमीन की तैयारी: दो तीन बार देशी हल से खेत की अच्छी तरह जुताई करके पाटा चला दें। कुलथी की खेती ऊपर वाली जमीन में होती है, जिसमें पानी का जमाव नहीं होना चाहिए।

(ख) बुआई का समय: बुआई का उचित समय अगस्त है।

(ग)  बीज दर: 20 किलो प्रति हेक्टेयर।

(घ)  उर्वरक: 20:40:20 किग्रा. एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर।

उर्वरक

मात्रा

जीवाणु खाद

यूरिया

10 कि./हें.

बुआई से पहले बीज को

डी.ए.पी.

88 कि./हें.

जीवाणु खाद (राई०जोबियम कल्चर)

म्यूरेट ऑफ़ पोटाश

40 कि./हें.

से उपचारित करना लाभदायक है

(ङ)   निकाई-गुड़ाई: दो बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता है। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 20 दिनों बाद एवं दूसरी 35-40 दिनों बाद करना लाभप्रद है।

(च)  कटनी, दौनी एवं बीज भंडारण: कुलथी की पलियाँ एक बार पक कर तैयार हो जाती है। पकने पर फलियों का रंग भूरा हो जाता है तथा पौधे पीले पड़ने लगते हैं। पके हुए पौधों को हँसुए से काट कर धूप में सुखा कर दौनी करके दाना अलग कर लें। कुलथी के दानों को धूप में अच्छी तरह सुखा कर ही भंडारण करें।

राजमूंग (राईसबीन)

उन्नत प्रभेद : आर.बी.एल.-1 किस्म राजमूंग का एक उन्नत किस्म है जो झारखण्ड राज्य के लिए अनुशंसित है। यह किस्म लगभग 116 दिनों में पककर तैयार हो जाता है। इसकी औसत उपज क्षमता 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

(क)   जमीन की तैयारी: दो बार देशी हल से जुताई कर पाटा चला दें। जुताई के बाद जमीन से घास-फूस आदि निकाल दें।

(ख)   बुआई का समय: मध्य जून से मध्य जुलाई।

(ग)   लगाने की विधि: इसे सामान्यत: क्यारियों में लगाया जाता है। पंक्तियों से पंक्तियों के बीच की दूरी 30 सें.मी. रखा जाता है। बीजों को 4-6 सें.मी. गहराई में लगायें। लगाने के बाद क्यारियों को अच्छी तरह से ढंक दें।

(घ)   बीज दर: 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।

(ङ)   उर्वरक: 20:40:20 किग्रा. एन.पी.के. प्रति हें. ।

(च)  निकाई-गुड़ाई: राजमूंग फसल में दो बाद निकाई-गुड़ाई कर दें। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 15-20 दिनों बाद एवं दूसरी 35 दिनों बाद।

(छ)  कटनी, दौनी एवं बीज भंडारण: फसल पकते समय पत्तियाँ पीला होने लगती है। फलियों का रंग हरा से भूरा हो जाता है। इस अवस्था में फसल को जड़ से काट कर छोटे-छोटे गठरियाँ बना लें। एक-दो दिन धूप में सुखाने के बाद डंडे से पीटकर बीजों को अलग कर लें। भंडारण के लिए कीटनाशक दवाओं से उपचारित बोरियों का प्रयोग करें।

 

स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार

अंतिम सुधारित : 2/22/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate