भारत हमेशा से जनतान्त्रिक मूल्यों और परम्पराओं का मुख्य वाहक रहा है| इसमें संदेह नहीं कि यह विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है| अनेकानेक बदलावों के बावजूद, समाज के अनेक स्तंभ यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत में जनतंत्र बचा हुआ है| स्वैच्छिकवाद ऐसा ही एक स्तंभ है|
पिछले दशकों के अनेक दूरगामी परिवर्तनों ने भारतीय जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित किया है| इसी पृष्ठभूमि में, सार्वजनिक जीवन में, और साथ ही अभिशासन की संस्थाओं के भीतर, नैतिकता का खुले रूप में क्षरण हुआ अह| बड़े पैमाने पर निर्धनता, बेरोजगारी और निरक्षरता ने इस अस्तव्यस्त और विपदापूर्ण स्थिति को और भी जटिल बना दिया है| इस स्थिति का तकाजा है कि विशेषकर वंचित तबकों की प्रगति व आम जनों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए सक्रियता से सामाजिक कार्रवाई की जाए|
इस मोड़ पर जन कल्याण के बुनियादी सिद्धांतों पर चलने वाले स्वैच्छिक विकास संगठन आम जनता के हितों की रक्षा और मानव प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं| आस्था, ज्ञान और क्षमता से युक्त ये संगठन स्वैच्छिक विकास कार्य की उपयोगिता का पहले ही इजहार कर चुके हैं और पारदर्शी और जबाबदेह शासन, सामाजिक न्याय, समता और गरिमा, अनेकता के प्रति सम्मान जैसे मूल्यों को आधार बनाकर राष्ट्र-निर्माण की चुनौती का सामना कर रहे हैं|
भारत का विशाल स्वैच्छिक क्षेत्र समाज के लगभग हर हिस्से की विधतापूर्ण जरूरतों पर ध्यान देने का प्रयास कर रहा है और स्वैच्छिक संगठन अपने आप में उस विविधता के प्रतिनिधि हैं जो राष्ट्रों के समुदाय में भारत को निराला रूप प्रदान करती है| स्वैच्छिक समूहों को अलग-अलग नाम दिए जाते हैं, जैसे-जन-संगठन, जमीनी संगठन, संसाधन संगठन, मानव-अधिकार संगठन, सामाजिक कार्रवाई समूह, सहायता संगठन, नेटवर्क आदि| इन संगठनों के अलग-अलग मानदंड और कार्य सम्बन्धी नियम है, और इनमें एक बात समान है कि वे सभी दृष्टि और प्रतिबद्धता से प्रेरित हैं|
समूहों के बीच कोई ठोस विभाजक रेखा नहीं और एक ही संगठन की विभिन्न भूमिकाएँ हो सकती हैं|
सभी संगठन इस बात से सहमत हैं की दृष्टि और प्रतिबद्धता की समानता पर आधारित मूलभूत मार्गदर्शी सिद्धांत विकसित करने की जरूरत है| वाणी के सदस्यों का यह दृढ़ विचार था कि एक राय पर पहुँचने के लिए धीमी, पर ठोस विकास प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए| वर्तमान दस्तावेज इसी प्रयास का परिणाम है|
अभी इस दस्तावेज में उन संगठनों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जिनका संस्थागत आधार है और जो क़ानूनी रूप से गठित हुए हैं, यानि ऐसे संगठन जो अपने कार्य की लागत जुटाते हैं और या तो अकेले या फिर एक नेटवर्क की पद्धति से क्षेत्र क्रियान्वयन एजेंसियों के साथ काम करते हैं|
ऐसे संगठनों को स्वैच्छिक विकास संगठन कहा जाता है|
यहाँ उद्देश्य दूसरों की इस दस्तावेज की परिधि से बाहर रखना नहीं, बल्कि यह है कि शुरू में सिमित संख्या में संगठनों पर इसे लागू किया जाए, इस प्रक्रिया से सीखा जाये और फिर आवश्यक संसोधन करके समग्र और व्यापक पैमाने पर इसे लागू किया जाये तभी यह दस्तावेज समूचे स्वैच्छिक क्षेत्र को अपनी परिधि में ले पायेगा|
इसका तत्काल लक्ष्य यह है कि पहले वाणी के सदस्य इसे अपनाएँ| इसके साथ ही वाणी के नजदीकी महत्वपूर्ण नेटवर्कों से इन सिद्धांतों को स्वीकार करने हेतु आग्रह किया जायेगा|
यह नया नाम- स्वैच्छिक विकास संगठन- भारतीय सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बन गया है| स्वैच्छिक विकास संगठनों के सम्बन्ध में स्पष्ट नीति के आभाव में प्रत्यक्ष प्रशासन धारा से बाहर के सभी संगठन तथा उद्योग/व्यवसाय एक ही श्रेणी में ला दिए गये हैं| इस प्रक्रिया में स्वैच्छिकवाद की भावना का बुरी तरह से क्षरण हुआ है| कार्य के बुनियादी मूल्यों और कार्यगत सिद्धांतों को पुनर्जीवित करना आवश्यक है और परिवर्तन लाने के लिए एक पहचान जरुरी है| इसीलिए यह नया आवश्यक है|
स्रोत: जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|
अंतिम सुधारित : 2/22/2020
इस पृष्ठ पर दिव्यांगजन से सम्बंधित आलेख अधिकार आधा...