3 जनवरी 2016 को 103वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने ‘प्रौद्योगिकी विजन दस्तावेज 2035’ का अनावरण किया। दस्तावेज में 2035 के भारतीयों का उल्लेख करते हुए उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का विवरण दिया गया है। यह वर्ष 2035 में उपलब्ध होने वाली प्रौद्योगिकियों का उल्लेख मात्र नहीं है बल्कि एक विजन है, जिसके तहत हमारे देश के नागरिक वर्ष 2035 में किस प्रकार प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करेंगे, इसका ब्योरा भी है। इस दस्तावेज को पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को समर्पित किया गया है।
दस्तावेज की प्रस्तावना में प्रधानमंत्री ने आशा व्यक्त की है कि प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान एवं मूल्यांकन परिषद (टाइफैक) द्वारा तैयार 12 क्षेत्रीय प्रौद्योगिकी रोडमैप वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को प्रेरित करेगा। उल्लेखनीय है कि टाइफैक ने ‘प्रौद्योगिकी विजन 2035’ दस्तावेज भी तैयार किया है। यह आवश्यक है कि हर युवा अपनी क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल करे और राष्ट्र के लाभ के लिए उनकी क्षमताओं का पूरा उपयोग किया जाए। इसके लिए यह जरूरी है कि हमारे बच्चों और युवाओं की पोषण, स्वास्थ्य, ज्ञान, कौशल, संपर्कता और पहचान की आवश्यकताएं पूरी की जाएं। श्री नरेन्द्र मोदी ने बुद्धिजीवी वर्ग, विश्वविद्यालयों और थिंक टैंकों का आवाहन किया कि वे विजन को पूरा करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करें। इस दस्तावेज के अनावरण के बाद श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के एकीकरण के साथ नए रणनीतियां बनाने का प्रयास करेगी।
तैयार हो जाने के बाद रोडमैप को सरकार को पेश किया जाएगा और सरकार उपरोक्त क्षेत्रों में प्रौद्योगिकियों को अपनाने के संबंध में काम करेगी। दस्तावेज में कहा गया है कि प्रौद्योगिकी नागरिकों को अधिकार संपन्न बनाने के साथ देश को भी अधिकार संपन्न करेगी।
‘प्रौद्योगिकी विजन दस्तावेज 2035’ का लक्ष्य सुरक्षा, समृद्धि में बढ़ोत्तरी और प्रत्येक भारतीय की अस्मिता को सुनिश्चित करना है। इसका उल्लेख संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी भाषाओं के संबंध में दस्तावेज में ‘हमारी आकांक्षा’ या ‘विजन वक्तव्य’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। विजन दस्तावेज में 12 विशेषाधिकारों (छह वैयक्तिक और छह सामूहिक) का उल्लेख भी किया गया है जो सभी भारतीय नागरिकों को उपलब्ध होंगे। ये इस प्रकार हैं :
विजन दस्तावेज के अनुसार ये विशेषाधिकार भारत के प्रौद्योगिकी विजन के केंद्र में हैं। इन विशेषाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकियों का निर्धारण किया गया है-
1. जिन्हें तेजी से तैनात किया जा सके,
2. जिन्हें प्रयोगशाला से व्यवहार में लाया जा सके,
3. जिनके लिए लक्ष्य अनुसंधान आवश्यक है और
4. जो अभी भी कल्पना में हैं।
प्रौद्योगिकियों के इन अंतिम वर्गों के संबंध में इंटरनेट ऑफ थिंग्स, वियरेबल टेक्नालॉजी, सिंथेटिक बायोलॉजी, ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस, बायो प्रिंटिंग और रिजरेटिव मेडिसिन जैसे उत्कृष्ट ‘ब्लू स्काई’ अनुसंधान उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा सटीक कृषि और रोबोट आधारित खेती, वर्टिकल खेती, इंटरेक्टिव फूड, ऑटोनोमस व्हेकिल, बायोलियोमिनेसंस, इमारतों की 3डी प्रिंटिंग, भूकंप की भविष्यवाणी, मौसम प्रौद्योगिकियां, हरित खनन आदि ऐसी अन्य प्रौद्योगिकियां हैं जिनसे मानव की वर्तमान और भावी पीढि़यों की आवश्यकताएं पूरी की जा सकेंगी।
दस्तावेज में प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों का हवाला भी दिया गया है, जिन्हें हम एक राष्ट्र के रूप में हल करेंगे-
प्रौद्योगिकी का समाज पर प्रभाव संबंधी तथा पूंजी आधारित और श्रम शक्ति आधारित विकल्प के ऊपर बहस होती रही है। पूंजी आधारित प्रौद्योगिकी विशेषकर भारत में जहां मानव दीर्घकालीन अवधि से कृषि भारतीय जनसंख्या का मुख्य आधार रही है। भारतीय कृषि की गाथा, रोजगार सृजन, आजीविका, खाद्य, पोषण और पारिस्थितिकी सुरक्षा में अपनी बहु-आयामी सफलता के एक वैश्विक प्रभाव के साथ, बेहद शानदार रही है। कृषि और इससे संबंधित गतिविधियां भारत में कुल सकल घरेलू उत्पाद में 30 फीसदी का योगदान करती है। हरित क्रांति से परिवर्तन के प्रथम दौर का शुभारंभ हुआ था। भारत गेहूँ, चावल, चीनी, मूंगफली के साथ-साथ काफी, नारियल और चाय जैसी नकदी फसलों के मामले में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत की दृष्टि अब दूसरी हरित क्रांति के लिए पूर्वी भारत पर केंद्रित है। उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पादकता और किसानों के कल्याण जैसे दोहरे लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ कृषि में निवेश वृद्धि की आवश्यकता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा समय-समय पर बल दिया गया है।
समूचे परिदृश्य में, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने कृषक समुदाय के लिए जागरूकता अभियान और कृषि-ज्ञान में वृद्धि पर जोर दिया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में सुधार और बेहतर सिंचाई एवं ग्रामीण विद्युतीकरण जैसे सहायता उपायों के अतिरिक्त एनडीए सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना पर भी खास जोर दिया है। केंद्र सरकार द्वारा फरवरी, 2015 में इस योजना का शुभारंभ किसानों को ‘मृदा कार्ड’ जारी करने के लिए किया गया है, जिसमें व्यक्तिगत खेतों के लिए आवश्यक पोषकों और उर्वरकों के लिए फसल के अनुसार सलाह दी जाएगी। इसका उद्देश्य आगतों के विवेकपूर्ण उपयोग के माध्यम से उत्पादकता में सुधार के लिए किसानों को सहायता प्रदान करना है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के शब्दों में, यह अत्यंत महत्वपूर्ण पहल किसानों को उनकी फसलों की उत्पादकता में सुधार के साथ-साथ विविधिकरण के लिए भी एक सुनहरा अवसर प्रदान करेगी। इसके माध्यम से देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए निश्चित रूप से महत्वपूर्ण योगदान दिया जाएगा।
मृदा स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जागरूकता और खाद की भूमिका से पूर्वी भारत में भी अधिक खाद्यान उत्पादन में सहायता के साथ-साथ मध्य प्रायद्वीपीय भारत में उत्पादन में हो रही गिरावट को दूर करने में भी मदद मिलेगी। पूर्वी भारत में अनाज, चावल और गेहूँ में वृद्धि से स्थानीय स्तर पर खाद्यान्न भंडार बनाने के लिए एक अवसर मिलेगा। इससे पंजाब और हरियाणा पर कृषि दबाव में भी कमी होगी। मूलत:, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का शुभारंभ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एक सफल मॉडल के तौर पर सामने आने के बाद किया गया। वर्ष 2003-04 से स्वयं में यह एक तथ्य है कि सरकार के सूत्रों के अनुसार मृदा स्वास्थ्य देखभाल के लिए वैज्ञानिक उपायों की पहल के मामले में गुजरात मृदा स्वास्थ्य कार्ड पेश करने वाला प्रथम राज्य रहा है। गुजरात में 100 से ज्यादा मृदा प्रयोशालाएं स्थापित की गई थीं और इस योजना का परिणाम काफी संतोषजनक रहा था। इसकी शुरुआत के बाद से, गुजरात की कृषि आय 2000-01 में 14,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 2010-11 में उच्चतम 80,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गई थी।
जुलाई, 2015 में, केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि प्रथम बार मृदा प्रबंधन कार्य प्रणालियों और मृदा स्वास्थ्य बहाली को प्रोत्साहन देने के लिए 3 वर्ष की अवधि में कृषि जनसंख्या के व्यापक स्तर पर 14 करोड़ कार्ड धारकों को एक बार में शामिल किया जाएगा। सही मायनों में, कृषि के अंतर्गत नई भूमियों को लाने के लिए किसी भी ठोस कदम की अनुपस्थिति के साथ कृषि में तेजी से उत्पादन के हस्तक्षेपों ने पहले से फसलों को प्रभावित किया है और कृषि भूमियों से मूल्यवान पोषक तत्वों से वंचित किया है। विशेषज्ञ और कृषि वैज्ञानिकों ने अक्सर यह कहा है कि भारत के विभिन्न भागों में एक अकाल और सूखे की संभावना हो सकती है। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि यदि आवश्यक सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए अगले 10 वर्षों के समय भोजन की कमी हो सकती है। विशेषज्ञों ने भूमि में अधिक विविधता के लिए जेनेटिक खाद्य कृषि के महत्व पर भी चर्चा की है। कृषि मंत्रालय ने इस तथ्य पर जोर दिया है कि अधिक दालों और हरी सब्जियों को उगाया जा सके क्योंकि यह भूमि में प्राकृतिक बदलाव ला सकती है। जाने-माने विशेषज्ञ और ‘हरित क्रांति के जनक’ एम. एस. स्वामीनाथन के अनुसार विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती के लिए विकल्प की आवश्यकता है। मृदा स्वास्थ्य स्थितियों के बारे में जागरूकता से इन गतिविधियों को और अधिक आसान एवं परिणामोन्मुख बनाया जा सकेगा। राज्यों में मृदा के अध्ययन भी यह दिखाते हैं कि दालें, सूरजमुखी, बाजरा अथवा चारा और सब्जियों जैसी वैकल्पिक फसलों को प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है।
इस प्रकार से हम यह समझ सकते हैं कि मृदा स्वास्थ्य कार्य तंत्र का उद्देश्य निश्चित रूप से कुछ अत्यावश्यक क्रांतिकारी परिवर्तन और देश के कृषि परिदृश्य में हितकारी प्रभाव लाने में मदद प्रदान करना है।
इस योजना के साथ वास्तव में बहुत सी महत्वपूर्ण पहलें जुड़ी है। इसके अंतर्गत, सरकार फसल विविधिकरण को अपनाने वाले किसानों की मदद कर सकती है। किसान भूमि की उर्वरा शक्ति के कारक को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और नई मूल्य संवर्द्धित फसलों की ओर आकर्षित हो सकते हैं। इससे कृषि में जोखिम घटाने में मदद मिलेगी और संपूर्ण खेती प्रक्रिया की लागत में भी कमी आएगी।
कुछ राज्य पहले से ही मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी कर रहे हैं, लेकिन यह देखा गया था कि राज्यों में मृदा स्वास्थ्य कार्ड के नमूने, परीक्षण और वितरण के मामले में समान मानक नहीं थे। इन सभी पर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए, केंद्र सरकार ने एक मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल का शुभारंभ करने जैसे सही कदम उठाए हैं। यह मृदा नमूनों के पंजीकरण, मृदा नमूनों के परीक्षण परिणामों को दर्ज करने और उर्वरक सिफारिशों के साथ मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) को बनाने के लिए उपयोगी साबित होगा।मई, 2015 में मोदी सरकार के कार्यालय का एक वर्ष पूर्ण होने पर कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा, ‘’यह एक एकल, जेनरिक, समान, वेब आधारित सॉफ्टवेयर है, जिस पर www.soilhealth.dac.gov.in, लिंक के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।
कृषि मंत्रालय में अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल का उद्देश्य राज्य सरकारों द्वारा प्रदत्त आम उर्वरक सिफारिशों अथवा आईसीएआर क द्वारा विकसित मृदा परीक्षण-फसल प्रतिक्रिया (एसटीसीआर) फॉर्मूले को विकसित करने के आधार पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाना और जारी करना है।
इस योजना को 568.54 करोड़ रुपए के एक परिव्यय के साथ 12वीं योजना के दौरान कार्यान्वयन के लिए स्वीकृति दी जा चुकी है। वर्तमान वर्ष (2015-16) के लिए केंद्र सरकार की सहभागिता के तौर पर 96.46 करोड़ रुपए का आवंटन किया जा चुका है। अन्यथा इस योजना को भारत सरकार और राज्य सरकारों के बीच 50.50 की सहभागिता के तर्ज पर कार्यान्वित किया जाना है।
मृदा की गुणवत्ता में सुधार, बेहतर पोषक मूल्यों और अधिक फसलों के संदर्भ में, विशेषज्ञ का कहना है कि वर्तमान में प्राथमिक पोषकों के लिए किसानों द्वारा आम उर्वरक सलाहों का अनुसरण किया जाता है, द्वितीयक और सूक्ष्म पोषक तत्वों की अक्सर अनदेखी की जाती है। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा, ‘’ हम अक्सर सल्फर, जिंक और बोरोन जैसे पोषक तत्वों की कमी से जूझते हैं। यह खाद्य उत्पादकता बढ़ाने में एक सीमित तत्व बन चुके हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना इन समस्याओं का समाधान करेगी।‘’
सरकार प्रभावी ढंग से मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की भव्य सफलता की ओर काफी महत्वाकांक्षी रूप से अग्रसर है और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रस्ताव दिया गया है कि देश में सभी किसानों के पास वर्ष 2017 तक अपना मृदा स्वास्थ्य कार्ड होगा। 2014-15 के एनडीए शासन के प्रथम वर्ष में, 27 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की गई थी और 2015-16 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड को तैयार करने के लिए सभी राज्यों के लिए 100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।
संसाधन की बहुतायत है, उसे श्रम शक्ति के संदर्भ में बाधक माना जाता है और यह बहस की जाती है कि उससे रोजगार कम होंगे। विजन दस्तावेज इस मिथक को तोड़ता है और उसका कथन है कि प्रौद्योगिकी से श्रम शक्ति को कुशल बनाया जा सकता है, जिससे समाज की आवश्यकताएं पूरी की जा सकेंगी।
इस दस्तावेज में ‘कार्रवाई का आह्वान’ जैसी प्रमुख गतिविधियों के बारे में भी बताया गया है। इसमें पहली गतिविधि ज्ञान का सृजन है। दूसरी गतिविधि के अनुसार विकास और नवाचार के लिए इको प्रणाली तैयार करने के बारे में उल्लेख किया गया है। प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन की गतिविधि भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस दस्तावेज में भावी भारत के बारे में रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। हर क्षेत्र के लिए जो प्रौद्योगिकी रोडमैप दिया गया है, उसके अनुसार भविष्य की प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं विकास पहलें और नीतियों की जानकारी दी गई है।
स्रोत: पत्र सूचना कार्यालय
अंतिम सुधारित : 2/21/2020
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